नमो देव्यै महादेव्यै: सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर प्रतापगढ़ से बालीवुड जा पहुंची ज्योति

प्रतापगढ़ के भावनपुर जेठवारा के अधिवक्ता प्रेम कुमार त्रिपाठी की बेटी ज्योति नारी को ताकत देने वाली कविताएं रचती हैं। देश के सैनिकों के लिए पलकों में आकाश किताब लिखी। मुंबई में संघर्ष करते हुए सीरियल परमावतार कृष्णा में मौका मिला। एक फिल्म भी मिली।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Tue, 12 Oct 2021 10:20 AM (IST) Updated:Tue, 12 Oct 2021 01:34 PM (IST)
नमो देव्यै महादेव्यै: सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर प्रतापगढ़ से बालीवुड जा पहुंची ज्योति
संघर्ष से ज्योति के सपनों को मिली उड़ान, नारी के उत्थान को बना लिया मिशन

प्रतापगढ़, जागरण संवाददाता। बेटी होने का मतलब साधारण पढ़ाई, कुछ दिन नौकरी की तलाश और फिर सात फेरे। इस सोच के बंधन को तोड़कर आगे बढ़ना आसान नहीं था, पर ज्योति ने मजबूत इच्छा शक्ति के जरिए ऐसा किया है। रूढि़वादी बंधनों को दरकिनार कर वह अपने पिता के सपनों की भी ज्योति बनी। अब उनका मिशन ही है नारी उत्थान, नारी सम्मान और स्वाभिमान। ज्योति के इस प्रयास को खूब सराहा भी जा रहा है।

नारी को ताकत देने वाली कविताएं रचती हैं ज्योति

प्रतापगढ़ के भावनपुर जेठवारा के अधिवक्ता प्रेम कुमार त्रिपाठी की बेटी ज्योति नारी को ताकत देने वाली कविताएं रचती हैं। देश के सैनिकों के लिए पलकों में आकाश किताब लिखी। मुंबई में संघर्ष करते हुए सीरियल परमावतार कृष्णा में मौका मिला। एक फिल्म भी मिली। ज्योति को कोरोना काल में तो ऐसा लगा कि अब तो घर लौट जाना पड़ेगा, पर हार नहीं मानी। वह कहती हैं कि बेटी को कम आंकने वालों की सोच को बदलना होगा। यह काम बेटी ही कर सकती है। मेरे पापा कहते हैं कि मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए। इन्हीं पंक्तियों से शक्ति लेकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की।

पढ़ने में मेधावी लेकिन अभिनय और साहित्य में दिलचस्पी

पढ़ाई में हमेशा टॉपर रही, लेकिन मेरी अभिनय और साहित्य में अधिक रुचि होने लगी। पहला काव्यपाठ संजय पुरुषार्थी के नेतृत्व में किया और वहां से कब संगम से समुद्र आ गई पता ही नहीं चला। मुश्किलों से लड़ते हुए, दकियानूसी समाज के ताने भी सुने। देवी स्वरूपा बेटियों की ताकत का एहसास इस समाज को कराने की मेरी जिद मुझे इस मुकाम पर ले आई। कई बड़े मंचों पर बालीवुड के सितारों से सम्मान मिला तो हौसले को पंख लगे। अंत में बस इतना ही...सफर की मुश्किलें हों पांव में छाले हों या कांटे, कभी मायूसी के नगमे मुझे गाने नहीं देती। मैं भूखे पेट भी सो जाऊं तो ये शुक्र है रब का, मेरी खुद्दारी मुझको हाथ फैलाने नहीं देती...।

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