मशहूर तबला वादक पंडित प्रभु दत्त बाजपेयी की पुण्य स्मृति पर प्रयागराज में संगीत समारोह रविवार को

भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत के प्रसिद्ध तबला वादक पं. प्रभुदत्त बाजपेयी का जन्म सन् 1950 ई 0 में प्रयागराज में हुआ। पिता ईश्वर प्रेमजी माँ कृष्णमयी के आर्शीवाद से उनकी तबले की प्रारम्भिक शिक्षा प्रो. लालजी श्रीवास्तव के यहाँ प्रारम्भ हुई। वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी रहे

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Sat, 20 Feb 2021 04:21 PM (IST) Updated:Sat, 20 Feb 2021 04:21 PM (IST)
मशहूर तबला वादक पंडित प्रभु दत्त बाजपेयी की पुण्य स्मृति पर प्रयागराज में संगीत समारोह रविवार को
प्रभुदत्त बाजपेयी सेवा पथ फाउंडेशन की ओर से रविवार को संगीत समारोह का आयोजन किया जाएगा।

प्रयागराज, जेएनएन।  प्रभुदत्त बाजपेयी सेवा पथ फाउंडेशन की ओर से रविवार को संगीत समारोह का आयोजन किया जाएगा। शालिनी बाजपेयी ने एक प्रेस वार्ता में पत्रकारों को बताया कि 21 फरवरी को पंडित प्रभु दत्त बाजपेयी की पुण्य स्मृति में आयोजित संगीत समारोह में मुख्य अतिथि आकाशवाणी प्रयागराज के निर्देशक लोकेश शुक्ला, सांसद फूलपुर केसरी देवी और सचिव प्रयाग संगीत समिति अरुण कुमार होंगे। 

कौन थे पंडित प्रभुदत्त

भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत के प्रसिद्ध तबला वादक पं. प्रभुदत्त बाजपेयी का जन्म सन् 1950 ई 0 में प्रयागराज में हुआ। पिता ईश्वर प्रेमजी, माँ कृष्णमयी  के आर्शीवाद से उनकी तबले की प्रारम्भिक शिक्षा प्रो. लालजी श्रीवास्तव  के यहाँ प्रारम्भ हुई।  वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी रहे है और प्रयागराज संगीत समिति के टॉपर प्रवीण में। बहुत कम उम्र में ही प्रभुदत्त ने प्रयागराज में अपनी प्रतिभा से सबके दिल में विशिष्ट जगह बना ली थी। वह सभी प्रतियोगिताओं में प्रथम आते रहे। उनकी कला माता-पिता का आध्यात्मिक आशीर्वाद व गुरू की शिक्षा ने आपको प्रसिद्धि दिलवाना शुरू कर दिया। यहाँ से निकलकर प्रभुनाथ शिमला रेडियो स्टेशन में कार्यरत रहे। फिर दिल्ली आ गए।


एक मुलाकात के बाद बदल गई जीवन की राह

दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान उनकी मुलाकात पं. किशन महाराज के दामाद विश्व विख्यात कथक नृत्यकार पं. विजय शंकर से हुई और फिर आगे चलकर यह मुलाकात बड़े भाई और गुरू के मित्र के रूप में बदल परिवर्तित हो गई। पं .विजय शंकर सानिध्य में उन्होंने चालीस दिन का चिल्ला किया। इसके बाद  पं. प्रभुदत्त बाजपेयी  नेपीछे मुड़कर नही देखा। दिल्ली से मुम्बई पहुँच कर फिर विदेशों तक अपनी तबले की थाप से भारत ही नहीं पूरे विश्व में अपने नाम का डंका बजाया।

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