महान योद्धा Alha Udal की स्मृतियां प्रयागराज से जुड़ी हैं, चिल्ला-गौहानी के इसी तालाब में करते थे स्‍नान

यमुनापार के जसरा ब्लाक मुख्यालय से लगभग छह किलोमीटर पश्चिम दिशा में चिल्ला गौहानी गांव बसा है। इसी गांव में आल्हा-ऊदल से जुड़ा एक भवन है जिसको ग्रामीण उनकी बैठक या कोर्ट बताते हैं। इस स्थल को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Fri, 26 Feb 2021 10:02 AM (IST) Updated:Fri, 26 Feb 2021 10:02 AM (IST)
महान योद्धा Alha Udal की स्मृतियां प्रयागराज से जुड़ी हैं, चिल्ला-गौहानी के इसी तालाब में करते थे स्‍नान
इस स्थल को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।

प्रयागराज, जेएनएन। जिला मुख्यालय से तकरीबन पचास किलोमीटर दूर बारा तहसील के जसरा विकास खंड के ग्राम चिल्ला-गौहानी में महान योद्धा आल्हा ऊदल की स्मृतियां बिखरी पड़ी हैं। इस गांव में एक बड़ा तालाब है जिसके बारे में कहा जाता है एक जमाने में यहां पर आल्हा-ऊदल और उनके परिवारीजन स्नान करने आते थे। ऐतिहासिक महत्व का यह तालाब वर्तमान में उपेक्षित पड़ा है। इसके तमाम भू-भाग पर कब्जा कर लिया गया है। खेती के अलावा इस पर सरकारी नलकूप तक लगा दिया गया है। ग्रामीणों की शिकायत के बाद भी जीर्णोद्धार की प्रशासन को चिंता नहीं है। 

आल्हा-ऊदल ने बनवाया था यहां काफी बड़ा तालाब

यमुनापार के जसरा ब्लाक मुख्यालय से लगभग छह किलोमीटर पश्चिम दिशा में चिल्ला गौहानी गांव बसा है। इसी गांव में आल्हा-ऊदल से जुड़ा एक भवन है, जिसको ग्रामीण उनकी बैठक या कोर्ट बताते हैं। इस स्थल को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। यहां से करीब चार सौ मीटर दूर पर तालाब है। ग्रामीणों की मानें तो इस तालाब को आल्हा ऊदल ने ही बनवाया था जिसके चलते ही इसका नाम उन्हीं दोनों के नाम पर पड़ गया।

सरकारी अभिलेखों में 47 बीघे में दर्ज है यह तालाब

चिल्ला गौहानी गांव के श्यामकांत मिश्र बताते हैं कि सरकारी अभिलेखों में यह तालाब 47 बीघा दर्ज है जबकि वर्तमान में करीब 20 बीघे ही बचा है। तालाब की शेष जमीन पर कब्जा कर लिया गया है। लोग खेती करने लगे हैं। खास यह कि तालाब की जमीन पर ही सरकारी नलकूप और टंकी का निर्माण कराया गया है। गांव तक जाने वाला संपर्क मार्ग भी इस तालाब की जमीन पर बन गया है। ग्रामीणों की मानें तो आल्हा ऊदल तालाब में स्नान करते थे। इसके लिए उनकी बैठक से तालाब तक एक सुरंग भी बनी थी। इसी रास्ते से दोनों इस तालाब तक पहुंचते थे।

पहले पानी से लबालब रहता था तालाब, अब है सूखा

ग्रामीण बताते हैं कि पहले इस तालाब में पत्थरों की सीढिय़ां बनी थीं जो अब गायब हो चुकी हैं। गांव के लोगों ने खुद के खर्च पर तालाब में नई सीढिय़ां बनवा दी हैं। एक चबूतरा भी बनवाया गया है जहां बैठकर लोग भजन-कीर्तन आदि करते हैं। गांव वाले बताते हैं कि पहले इस तालाब में इतना पानी रहता था कि इससे करीब एक दर्जन गांव के खेतों की सिंचाई की जाती थी लेकिन अब सूखा पड़ा है। प्रशासनिक उपेक्षा से अब तालाब पर संकट मंडरा रहा है।

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