इलाहाबाद विश्वविद्यालय का Amarnath Jha Hostel, इससे जुड़ी हैं देश की कई महान विभूतियाें की यादें

एक बार भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उनसे पूछा-इस छात्रावास ने काफी संख्या में देश को वरिष्ठ अधिकारी दिए हैं। इसका राज क्या है। हाजिर जवाब डॉ. अमरनाथ झा ने कहा-सर दिस इज अवर ट्रेड सीक्रेट।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 27 Feb 2021 03:10 PM (IST) Updated:Sat, 27 Feb 2021 03:10 PM (IST)
इलाहाबाद विश्वविद्यालय का Amarnath Jha Hostel, इससे जुड़ी हैं देश की कई महान विभूतियाें की यादें
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अमरनाथ झा छात्रावास ने बहुत से प्रशासनिक अफसर और शिक्षाविद् दिए हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हास्टलों का अपना इतिहास रहा है। यहां की गौरवमयी परंपरा रही है। अधिकांश हास्टल विश्वविद्यालय से जुड़ी महान विभूतियों के नाम पर ही रखे गए हैं। इन्हीं में एक हास्टल हैं अमरनाथ झा छात्रावास। इस छात्रावास ने देश को बहुत से प्रशासनिक अफसर और शिक्षाविद् दिए हैं। पहले इस छात्रावास का नाम म्योर हास्टल था। संयुक्त प्रांत के गर्वनर विलियम म्योर के नाम पर इस हास्टल का नाम रखा गया था। 1866 में म्योर सेंट्रल कालेज की स्थापना विलियम म्योर के संयुक्त प्रांत का गर्वनर रहने के दौरान हुई थी। म्योर हास्टल की स्थापना 1878 में सर अल्फ्रेड कामिंस लायन ने की थी।

म्योर हास्टल से 19 वर्षों तक जुड़े रहे अमरनाथ झा

इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि डॉ.अमरनाथ झा म्योर हास्टल से 19 वर्ष तक जुड़े रहे। 23 मार्च 1947 को वे वार्डेन के रूप में आखिरी बार इस छात्रावास में गए थे। 1955 में वे जब बिहार लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष थे तो अंतिम बार 16 अगस्त 1955 को इस छात्रावास के नवागंतुकों के साथ चाय-पान के लिए आए थे। यह उनकी इलाहाबाद तथा छात्रावास में अंतिम उपस्थिति थी।

1956 में म्योर हास्टल बन गया अमरनाथ झा छात्रावास
 म्योर हास्टल से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 15वें कुलपति डॉ.अमरनाथ झा का बेहद लगाव था। वे 1928 से 1947 तक इस छात्रावास के संरक्षक रहे। कुलपति हो जाने के बाद भी झा इस छात्रावास के संरक्षक बने रहे। दो सितंबर 1955 को उनके निधन के बाद 1956 में म्योर हास्टल का नाम अमरनाथ झा छात्रावास रख दिया गया। प्रो.तिवारी बताते हैं कि पहले यह छात्रावास म्योर सेंट्रल कालेज परिसर में एक मामूली बंगले में था। तब इसे गवर्नमेंट हास्टल कहा जाता था। फिर इसे म्योर हास्टल नाम दिया गया। वर्तमान छात्रावास 1912 में 68 हजार रुपये की लागत से बना था। 1930 में इसका आकार बढ़ाया गया।

हास्टल को देशव्यापी ख्याति मिली
प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि इस हास्टल को देशव्यापी ख्याति मिली है। प्रो. अमरनाथ झा के समय इस छात्रावास के इतने अधिक छात्र इंपीरियल सिविल सर्विस, इंपीरियल फारेस्ट सर्विस, इंपीरियल पुलिस सर्विस तथा अन्य सेवाओं में आते थे। यहां रहने मात्र का अवसर मिलना सफलता का आधार माना जाता था। एक बार भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उनसे पूछा-इस छात्रावास ने काफी संख्या में देश को वरिष्ठ अधिकारी दिए हैं। इसका राज क्या है। हाजिर जवाब डॉ. अमरनाथ झा ने कहा-सर दिस इज अवर ट्रेड सीक्रेट।

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