मौलवी लियाकत अली और जून का यह महीना, वीर क्रांतिकारी की गाथा पर पढ़िए प्रयागराज के बीएड छात्र की कविता

​​​​​मूलरूप से कौशांबी के महगांव में जन्मे लियाकत अली ने आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के बाद खुद को इलाहाबाद में मुगलिया सल्तनत का सूबेदार घोषित करते हुए विद्रोही रूप में स्वतंत्र सरकार का गठन कर दिया था. पांच जून को इलाहाबाद में राष्ट्रीय आक्रोश प्रखर हुआ।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Mon, 14 Jun 2021 07:30 AM (IST) Updated:Mon, 14 Jun 2021 09:05 AM (IST)
मौलवी लियाकत अली और जून का यह महीना, वीर क्रांतिकारी की गाथा पर पढ़िए प्रयागराज के बीएड छात्र की कविता
वीर मौलवी लियाकत अली पर इविंग क्रिश्चियन कॉलेज में बीएड के छात्र सत्य प्रिय ने वीर रस की कविता लिखी

प्रयागराज, जेएनएन। जून के महीने में इतिहासकारों और जानकारों को मौलवी लियाकत अली जरूर याद आते हैं। यही वह महीना है जब 1857 में मौलवी लियाकत अली ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मेरठ से क्रांति की ज्वाला जलने पर इलाहाबाद में स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाई थी। ​​​​​मूलरूप से कौशांबी के महगांव में जन्मे लियाकत अली ने आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के बाद खुद को इलाहाबाद में मुगलिया सल्तनत का सूबेदार घोषित करते हुए विद्रोही रूप में स्वतंत्र सरकार का गठन कर दिया था।

पांच जून को इलाहाबाद में राष्ट्रीय आक्रोश प्रखर हुआ। सरकार की सभी गतिविधियों का संचालन करने के लिए खुसरोबाग को मुख्यालय बनाया। 11 जून को जनरल नील दल-बल लेकर ब्रिटिश सत्ता का प्रभाव जमाने के लिए इलाहाबाद पहुंचा। 17 जून को उसने खुसरोबाग में चल रही स्वतंत्र सरकार को बेदखल करने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी। उसके क्रूर सैनिकों और मौलवी लियाकत अली के रणबांकुरों में टकराव हो गया। रात होने पर मौलवी लियाकत अली खुसरोबाग से निकलने में कामयाब हो गए और कानपुर पहुंच गए। इसके बाद मुंबई भी गए जहां उन्हें अंग्रेजों के सैनिकों ने गिरफ्तार कर काला पानी की जेल भेज दिया। इन्हीं वीर मौलवी लियाकत अली पर इविंग क्रिश्चियन कॉलेज में बीएड के छात्र सत्य प्रिय द्विवेदी ने वीर रस की कविता लिखी है। आप भी पढ़िए सत्य प्रिय की यह रचना...

मौलवी लियाकत अली

इलाहाबाद के इतिहास में संघर्षों की कहानी है।

हर पथ हर चौराहे पर किसी शहीद की निशानी है।।

है कृतज्ञ आपका हर मोहल्ला और गली गली।

आपके सिंहों की हर दहाड़ को सलाम, हे अली!

पूछो ज़रा इनके कुर्ते से भी किस ब्रांड का है।

ये दो चार का नही प्रेरक अखिल ब्रह्मांड का है।।

कर्तव्यों का किरीट पहने, शहर ए तहजीब के रखवाले थे।

भारद्वाज की भूमि पर वो आहूति देने वाले मतवाले थे।।

इतिहास के पन्नो से रह गए दूर तुम, हे महाबली।

मात्र दस दिन नहीं सहस्त्र क्षणों के राजा थे अली।।

मातृ भूमि को बचाने, तब जवानियां चली।

अंग्रेजों के कानों तक जा पहुंची स्वतंत्रता की खलबली।।

था वो प्राण-पालक आखिरी मुगल बहादुर शाह का।

कौशांबी से निकला ले आदेश दिल्ली के बादशाह का।।

व्यूह रचना का था वो महारथी,

बनकर आधुनिक स्वतंत्रता का सारथी।।

नव पल्लव-सी आजादी से प्रफुल्लित प्रयाग था।

विपत्ति और वक्त के विपरीत, यह अनोखा त्याग था।।

आहा! आजाद हुए जब जन जन तब हंस रहा प्रयाग था।

पर क्षणिक शांति के बाद आने वाला दुर्भाग्य था।

नियामत और कासिम जैसे आगे आए दो कोतवाल थे।

अली ने नियुक्त किए कई वीर बांकुरे जो विकराल थे।।

सैफुल्ला और सुखराम हुए चायल के तहसीलदार थे।

आई घड़ी जब लड़ने की वीर खड़े लिए तलवार थे।।

एक तरफ थी सेना विशाल आधुनिक हथियार लिए।

एक ओर वीर खड़े स्वाभिमान और तलवार लिए।।

महावीरों रहो तैयार देखो ये शहादत का पल है।

कर दो-दो हाथ दिखाओ जो तुम में छुपा बाहुबल है।।

जागो-जागो-जागो जंग जगाने आई है हमको।

शोणित से आज हमारे सूर्य उग करेगा दूर तम को।।

खुद में छुपी चिंगारी को आग बन छा जाना होगा।।

भवानी के सिंहों गरजो काल को हराना होगा।।

कर कुछ यूं विचार मन में, जब चमकी होगी तलवारें।

योद्धाओं के कौशल से, टन-टन टकराई होगी तलवारें।।

गोलियों का उत्तर देते, जरूर तोपों से निरुत्तर हुई होगी तलवारें।

भारती रोयी होगी, जब शहीदों के हाथों से गिरी होगी तलवारें।।

खुसरोबाग से चली सत्ता के समांतर एक सरकार थी।

निज, समाज और प्रांत हेतु लड़ी लड़ाई अधिकार की।।

हुए थे अली सेवक और रक्षक स्वयं तीरथ-राज के।

फांसी झूले सिंह सारे लिए स्वप्न सुनहरे आज के।।

— सत्य प्रिय द्विवेदी

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