यह है प्रयागराज का पठारी इलाका, यहां तो सरकारी पोषाहार भी गरीबों को नहीं होता नसीब

Malnutrition in Prayagraj जिले के यमुनापार स्थित पहाड़ी इलाकों में कुपोषित बच्चों की तादाद बढ़ रही है। सरकारी पोषाहार भी गरीबों को उचित रूप से नहीं दिया जाता। आंगनबाड़ी केंद्रों में मिलने वाला पोषाहार पशुओं का आहार बन जाता है। इसकी शिकायत भी ग्रामीणों ने की लेकिन हुआ कुछ नहीं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 06 Sep 2020 07:54 AM (IST) Updated:Tue, 29 Sep 2020 12:25 AM (IST)
यह है प्रयागराज का पठारी इलाका, यहां तो सरकारी पोषाहार भी गरीबों को नहीं होता नसीब
प्रयागराज के यमुनापार का पठारी इलाके में पोषाहार पात्रों को नहीं मिलता।

प्रयागराज, जेएनएन। यह है प्रयागराज के यमुनापार का पठारी इलाका। यहां के पठारी गांवों में गरीबी को सरकार की ओर से दिया जाने वाला पोषाहार भी नहीं मिल पाता है। शायद यही कारण है कि यहां कुपोषित बच्चों की तादाद बढऩे लगी है। आरोप है कि आंगनबाड़ी केंद्रों में मिलने वाला पोषाहार पशुओं का आहार बन जाता है। कई बार इसकी शिकायत भी ग्रामीणों ने की लेकिन हुआ कुछ नहीं। इसमें अधिकारियों की लापरवाही भी कहीं न कहीं से नजर आती है। जी हां हम बात कर रहे हैं शंकरगढ़ विकास खंड की।

माता-पिता पहाड़ पर पत्थर तोड़ते हैैं तो मासूमों को मिलता है निवाला

विकास खंड शंकरगढ़ के ग्राम सभा कोहडिय़ा दद्दा का पहाड़ पर रहने वाले यश आदिवासी (6) पुत्र फूलचंद्र आदिवासी एवं अरुण आदिवासी (10) वर्ष पुत्र रामबहोर पैदा होने के एक साल बाद से ही कुपोषित हैैं। अब भी दोनों बेहद कमजोर हैैं। चलने-फिरने में इन्हें सहारे की जरूरत होती है। आर्थिक रूप से कमजोर घरवाले इनका इलाज भी नहीं करा पा रहे हैैं। माता-पिता दिन भर पहाड़ पर पत्थर तोड़ते हैैं तो किसी तरह परिवार का पेट भरता है। इसी प्रकार रूम खेरहट के जैन (6) पुत्र राकेश सेन के माता-पिता दोनों दिव्यांग हैं। कुपोषण के कारण बेटा जैन भी दिव्यांग हो गया। राकेश ने बताया कि न तो पोषाहार मिलता है और न ही कोटे की दुकान से खाद्यान्न ही मिलता है। इसी गांव का छोटू आदिवासी (6) पुत्र गेंदलाल भी कुपोषण का शिकार है।

समाजसेवी बोले-गरीबों को कोटेदार नहीं देता राशन

समाजसेवी धर्मराज पाल ने बताया कि इन गरीबों को कोटेदार द्वारा राशन तक सही से नहीं दिया जाता है। ग्रामीणों ने बताया कि आंगनवाड़ी में मिलने वाला पोषाहार पशुओं का आहार बन जाता है। कई दफा इसकी शिकायत की गई मगर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी।

आठ साल पहले डीएम ने गांव को लिया था गोद

शंकरगढ़ के बेहद पिछड़े ककरहा गांव की पहाड़ बस्ती को लगभग छह साल पहले तत्कालीन डीएम ने गोद लिया था। वह कई दफा पूरे अमले के साथ बस्ती में आए थे। तब सड़क एवं स्वास्थ्य के साथ ही शिक्षा के लिए योजनाएं शुरू करने का प्रस्ताव बना था मगर डीएम का तबादला हो जाने के कारण कोई भी योजना परवान नहीं चढ़ सकी। 

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