माहू कीट दिलाएगा गाजर घास से आजादी

जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा बनी गाजर घास (पार्थेनियम स्टीरोफोरस) से अब मुक्ति मिल सकती है। माहू कीट के जरिए इससे जंग लड़ी जाएगी।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 07:39 PM (IST) Updated:Thu, 13 Aug 2020 06:07 AM (IST)
माहू कीट दिलाएगा गाजर घास से आजादी
माहू कीट दिलाएगा गाजर घास से आजादी

अमलेंदु त्रिपाठी, प्रयागराज : जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा बनी गाजर घास (पार्थेनियम स्टीरोफोरस) से आजादी मिल सकती है। माहू कीट के जरिए इससे जंग लड़ी जाएगी। इस दिशा में चल रहे शोध के प्रारंभिक नतीजे उत्साहवर्धक रहे हैं। बोटॉनिकल सर्वे ऑफ इंडिया से जुड़े ईश्वर शरण डिग्री कालेज के असिस्टेंट लेक्चरर डॉ. एचपी पाडेय के शोध का दावा ऐसा ही है।

गाजर घास यानी पार्थेनियम स्टीरोफोरस, कंपोजिटी कुल का पौधा है, यह 1950 में अमेरिका से आयातित गेहूं के साथ भारत पहुंचा था। जहा भी यह होता है, वहा मिट्टी को विषाक्त कर देता है। यूजीसी के एक प्रोजेक्ट पर काम करते डॉ. पांडेय ने पाया है कि सर्दियों में यदि सरसों, मटर, मूली के खेत से माहू कीट लाकर इसे गाजर घास में छोड़ा जाए तो गाजर घास की वृद्धि रुक जाती है। असल में माहू कीट, गाजर घास के तने में लगे फ्लोयम ऊतक की चालनी नलिकाओं में अपने मुख के अग्र भाग से फ्लोयम रस चूस लेते हैं। इससे पौधे की वृद्धि व प्रजनन की प्रक्रिया रुक जाती है।

चकौंध से भी प्रबंधन संभव: गाजर घास के जैव प्रबंधन पर जारी शोध में यह बात सामने आई है कि केसिया प्रजाति चकौध या कसौजी का पौधा भी कारगर हो सकता है। गंगा और यमुना के कछारी इलाकों में कैसिया आक्सीडेंटलिस व कैसिया टोरा के बीज गाजर घास के पास फैलाए गए। जो पौधे उगे, उनकी जड़ों से निकले एलीलो नामक रसायन ने गाजर घास का अंकुरण रोक दिया। वैसे गाजर घास का अंकुरण जरूर रुका लेकिन चकौंध फैल गया। यह भी हानिकारक घासों की श्रेणी में है पर गाजर घास जैसा नहीं।

कई तरह की बीमारियों का वाहक

जहां भी गाजर घास होती है वहां अन्य वनस्पतियां नहीं पनपतीं। असल में यह मिट्टी को विषाक्त करने के साथ ही दूसरी वनस्पतियों का प्रजनन रोक देती है। यह सिर्फ जैव विविधता के लिए खतरा नहीं है, इसके परागकण हवा में पहुंचते हैं तो आंख में जलन, लालिमा और पानी आने जैसी समस्या होती है। एलर्जिक अस्थमा के अलावा साइनस, गले में खरास, दाद, खुजली के लिए भी गाजर घास कुछ हद तक जिम्मेदार है। जो दुधारू जानवर इसे खाते हैं तो उनका दूध कई बार कसैला हो जाता है। औषधीय पौधों के साथ इसका जेनेटिक करप्शन होता है तो उनका गुण भी प्रभावित होने लगता है।

नहीं है कोई प्राकृतिक शत्रु

डॉ. पांडेय बताते हैं कि पार्थेनियम स्टीरोफोरस भारतीय उप महाद्वीव का पौधा नहीं है, इसलिए इसका कोई प्राकृतिक शत्रु नहीं विकसित हुआ। इसीलिए इसे नियंत्रित करने का ठोस उपाय अब तक नहीं खोजा जा सका। अब शोध में तमाम बातें सामने आ रही हैं। माहू को लेकर हुआ यह शोध बायो हेराल्ड इंटरनेशनल जर्नल और वीकली साइंस इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित है। यह भी संभावना बलवती हो चली है कि जल्द ही किसानों को प्रशिक्षण देकर माहू कीट के जरिए गाजर घास पर अंकुश लगाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।

chat bot
आपका साथी