महात्मा गांधी का छह दफे हुआ प्रयागराज में आगमन, ​​​​​1942 में आखिरी बार आए बापू, ठहरते थे आनंद भवन में

किरन बताती हैं कि पिता मुंशी कन्हैयालाल 1940 में आनंद भवन और स्वराज भवन के चीफ केयर टेकर बनाए गए। 44 साल तक उन्होंने यह जिम्मेदारी संभाली। वह बताती हैं कि बापू छह बार आए और इनमें से पांच बार आनंद भवन में ही ठहरे थे।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 07:40 AM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 07:58 PM (IST)
महात्मा गांधी का छह दफे हुआ प्रयागराज में आगमन, ​​​​​1942 में आखिरी बार आए बापू, ठहरते थे आनंद भवन में
आनंद भवन के चीफ केयर टेकर रहे मुंशी कन्हैयालाल की बेटी किरन बाला पांडेय ने साझा किए किस्से

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र हो और संगमनगरी का नाम नहीं आए ऐसा हो ही नहीं सकता है। महात्मा गांधी छह बार यहां आए। इनमें से पांच बार वह आनंद भवन में रुके थे। यह कहना है करीब चालीस साल तक आनंद भवन के चीफ केयर टेकर रहे मुंशी कन्हैयालाल की बेटी किरन बाला पांडेय का।

कमला नेहरू अस्पताल का भी किया था उदघाटन

किरन बताती हैं कि पिता मुंशी कन्हैयालाल 1940 में आनंद भवन और स्वराज भवन के चीफ केयर टेकर बनाए गए। 44 साल तक उन्होंने यह जिम्मेदारी संभाली। वह बताती हैं कि बापू छह बार आए और इनमें से पांच बार आनंद भवन में ही ठहरे थे। दो बार कांग्रेस की बैठकों के सिलसिले में और तीन बार अन्य कारणों से आए थे। 1942 में वह कमला नेहरू अस्पताल का उद्घाटन करने आए थे। आजादी के आंदोलन की अगुवाई करने से पूर्व भी वे एक बार यहां आए। तब जानसेनगंज के पास एक होटल में रुके और शहर घूमकर आगे चले गए थे। बापू आखिरी बार आनंद भवन जून 1942 में आए थे।

प्रयाग से था खास रिश्ता

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में  हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाक्टर संतोष कुमार सिंह बताते हैं कि आजादी से पहले आनंद भवन कांग्रेस मुख्यालय था। 1930 में नेहरू परिवार स्वराज भवन से आनंद भवन में रहने आ गया। इसके बाद से स्वराज भवन कांग्रेस का घोषित कार्यालय बन गया। 1942 के आंदोलन में ब्रिटिश सरकार ने स्वराज भवन को जब्त कर लिया और आजादी तक यह अंग्रेजों के कब्जे में ही रहा। वह बताते हैं कि बापू का प्रयाग से रिश्ता बहुत प्रगाढ़ था। जून 1942 में जब आखिरी बार वे आनंद भवन आए थे तो उनसे मिलने बड़ी संख्या में लोग आनंद भवन पहुंच गए। भीड़ ज्यादा होने से सबसे व्यक्तिगत मुलाकात संभव नहीं थी तो बापू ने आनंद भवन की छत से लोगों को संबोधित किया था।

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