Magh Mela 2021: मिलन और विदाई की बेला में छलके कल्‍पवासियों के नैन

Magh Mela 2021 कमलावती देवी के कल्पवास का 11वां वर्ष था। कहती हैं कोरोना संक्रमण काल में कल्पवास करने आत्मीय तृप्ति हुई। लगा जैसे विपत्ति काल में साक्षात ईश्वर हमारे साथ थे। यहां रहकर कल्पवासियों से आत्मीय रिश्ता बन गया था जिनसे बिछड़ने का कष्ट है।

By Rajneesh MishraEdited By: Publish:Sat, 27 Feb 2021 07:13 PM (IST) Updated:Sat, 27 Feb 2021 07:13 PM (IST)
Magh Mela 2021: मिलन और विदाई की बेला में छलके कल्‍पवासियों के नैन
Magh Mela 2021 कल्‍पवासियों में घर लौटने की खुशी तो मेला क्षेत्र छोडऩे का गम भी था।

प्रयागराज,जेएनएन। जिस संगम तीरे भोर से कर्णप्रिय मंत्रों की गूंज होती थी। मंत्र सुनकर कदमों को बरबस जड़वत कर देते थी। आध्यात्मिक ऊर्जा के इस अनूठे क्षेत्र का दृश्य शनिवार को बदला-बदला सा था। कल्पवासी भजन-पूजन करने के बजाय सामान समेटने में व्यस्त थे। घर से आए सगे-संबंधी उनका हाथ बंटने में लगे रहे। कल्पवासियों के समक्ष यह पल अजीब सा धर्म संकट लेकर आया था। उन्हें घर लौटकर अपनों से मिलने की खुशी थी, वहीं मेला क्षेत्र छोडऩे का गम भी सता रहा था। माहभर टेंट में रहकर कल्पवासियों में बना आपसी संबंध बिछडऩे की अनुमति नहीं दे रहा था। दिल को दिलासा देने के लिए कल्पवासियों ने नंबरों का आदान-प्रदान किया, सुख-दु:ख में मिलने और पुन: अगले वर्ष आने का संकल्प लेकर मेला क्षेत्र से रवाना हुए।

आते समय जितनी खुशी होती है उतना ही जाते समय होता है गम

मेजा तहसील के खूंटा गांव के देवमूर्ति पांडेय के कल्पवास का 14वां साल था। बताते हैं संगम तीरे माहभर बिताकर आध्यात्मिक, आंतरिक व मानसिक ऊर्जा मिलती है। कल्पवास में आने के लिए जितनी खुशी होती है उतना ही इस क्षेत्र को छोडऩे का गम रहता है। संगम की रेती से हमारा जो जुड़ाव हुआ है, उसे व्यक्त करने में शब्द असमर्थ हैं। छिंदवाड़ा से आए मोहनलाल कहते हैं कि कोरोना संक्रमण काल में कल्पवास करना चुनौतीपूर्ण था। अबकी प्रवचन, रामलीला व रासलीला बड़े स्तर पर नहीं हुए। लेकिन, भजन-पूजन व संतों का सानिध्य पहले की तरह हुआ। अब मेला क्षेत्र छोडऩे पर बहुत कष्ट हो रहा है।

जल्‍द आए अगला कल्‍पवास

कमलावती देवी के कल्पवास का 11वां वर्ष था। कहती हैं कोरोना संक्रमण काल में कल्पवास करने आत्मीय तृप्ति हुई। लगा जैसे विपत्ति काल में साक्षात ईश्वर हमारे साथ थे। यहां रहकर कल्पवासियों से आत्मीय रिश्ता बन गया था, जिनसे बिछड़ने का कष्ट है। चित्रकूट के राजेश्वर प्रसाद कहते हैं घर-गृहस्थी में लौटने की खुशी है। लेकिन, मेला क्षेत्र छोडऩे का गम उससे अधिक है। मन कर रहा है कि जल्द अगला कल्पवास आए जिससे हम पुन: यहां आ जाएं।

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