Magh Mela 2021 : त्रिजटा की डुबकी लगाकर कल्पवासियों ने किया प्रस्थान, तंबुओं के शहर में अब छाने लगी वीरानगी
Magh Mela 2021 त्रिजटा स्नान करने वालों का कल्पवास ही पूर्ण माना जाता है। यही कारण है कि मेला क्षेत्र में माघी पूर्णिमा स्नान के बाद हजारों संत व कल्पवासी रुके थे। द्वितीया तिथि रविवार को लग गयी थी। इससेभोर से संतों व कल्पवासियों का स्नान शुरू हो गया।
प्रयागराज, जेएनएन। फाल्गुन कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि पर संतों व कल्पवासियों ने त्रिजटा स्नान किया। संगम तीरे माहभर से जप-तप में लीन कल्पवासी करने के बाद घर-गृहस्थी में वापस लौट गए। इसके साथ मेला क्षेत्र से कल्पवासी विहीन हो गया है।
भोर से शुरू हो गया था स्नान-दान का सिलसिला
त्रिजटा स्नान करने वालों का कल्पवास ही पूर्ण माना जाता है। यही कारण है कि मेला क्षेत्र में माघी पूर्णिमा स्नान पर्व के बाद हजारों संत व कल्पवासी रुके थे। द्वितीया तिथि रविवार को लग गयी थी। इससे सोमवार की भोर से संतों व कल्पवासियों का स्नान शुरू हो गया। संगम के अलावा अरैल, गंगा के रामघाट, गंगोली शिवालय, अक्षयवट, काली मार्ग आदि घाटों पर स्नान स्नान-दान का सिलसिला दोपहर बाद तक चलता रहा।
प्रसाद स्वरूप तुलसी और जौ का पौधा साथ ले गए
संगम की रेती पर घर, सगे-संबंधियों से दूर, सुख-सुविधाओं का त्याग करके गृहस्थ पौष पूर्णिमा से भजन, पूजन में लीन थे। अधिकतर कल्पवासी माघी पूर्णिमा का स्नान करके मेला क्षेत्र से रवाना हो गए थे। जो रुके थे उन्होंने त्रिजटा का स्नान करके दान-पुण्य किया। मेला क्षेत्र छोडऩे से पहले तीर्थपुरोहित के मंत्रोच्चार के बीच पूजन करके पूर्वजों को नमन करके भूलचूक की क्षमा याचना की। कल्पवासी प्रसाद स्वरूप तुलसी और जौ का पौधा अपने साथ ले गए। जौ को कल्पवास आरंभ करते समय शिविर के बाहर बोया था, जो पौधा के रूप ले चुका है। उसे साथ ले जा रहे हैं।
महाशिवरात्रि तक रुकने वालों की संख्या कम
कल्पवासियों के साथ संत-महात्मा भी अपने मठ-मंदिर रवाना हो रहे हैं। जबकि कुछ महात्मा अभी महाशिवरात्रि तक मेला क्षेत्र में रहेंगे। लेकिन, रुकने वालों की संख्या काफी कम है।