Magh Mela 2021 : 'अमृत सिद्धि' योग में कल्पवास का श्रीगणेश, 28 को दिनभर रहेगा पूर्णिमा का प्रभाव, संगम में स्नान पर मिलेगा 10 अश्वमेध यज्ञ का पुण्य
पराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय बताते हैं कि 27 जनवरी की रात 12.32 बजे लग जाएगी। जो 28 जनवरी की रात 12.32 बजे तक रहेगी। दिनभर गुरुपष्य नक्षत्र व सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग रहेगा। इसके अलावा मकर राशि में सूर्य गुरु शुक्र व शनि का संचरण करेंगे।
प्रयागराज,जेएनएन। समस्त भवसागर से पार पाकर मोक्ष की प्राप्ति की संकल्पना साकार करने को संगम तीरे कल्पवास की परंपरा है। सदियों से चली आ रही यह परंपरा 21वीं सदी में भी कायम है। घर-गृहस्थी से दूर, समस्त सुख-सुविधाओं का त्याग करके गृहस्थ कल्पवास करने आते हैं। यह ऐसा तप है जिसमें गृहस्थ माहभर संन्यासी के समान रहते हैं। संगम तीरे 28 जनवरी पौष पूर्णिमा से कल्पवास का विधिवत शुभारंभ होगा। इस दिन मेला क्षेत्र गृहस्थ तपस्वियों से गुलजार हो जाएगा। अबकी पौष पूर्णिमा गुरुवार के दिन है। इस दिन गुरुपुष्य नक्षत्र व सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग रहेगा, जो सफलता व संपन्नता देने वाला माना जाता है। उक्त अवसर पर संगम में स्नान करने वाले को 10 अश्वमेध यज्ञ कराने के बराबर पुण्य की प्राप्ति होगी।
पराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय बताते हैं कि 27 जनवरी की रात 12.32 बजे लग जाएगी। जो 28 जनवरी की रात 12.32 बजे तक रहेगी। दिनभर गुरुपष्य नक्षत्र व सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग रहेगा। इसके अलावा मकर राशि में सूर्य, गुरु, शुक्र व शनि का संचरण करेंगे। धर्म सिंधु व निर्णय सिंधु के अनुसार एक राशि में चार ग्रहों का संचरण होने से शुभ व सौभाग्य की स्थिति बनेगी। इस पुण्य बेला में संकल्प लेकर धार्मिक अनुष्ठान आरंभ करने वाले की समस्त कामनाएं पूर्ण होंगी। बताते हैं कि पौष पूर्णिमा पर संगम तीरे कल्पवास शुरू करने वाले साधकों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। समस्त साधकों के पितर भी तृप्त होंगे।
माघ मास में है कल्पवास की परंपरा
तीर्थराज प्रयाग में संगत तट पर पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करने की परंपरा है। दिन में तीन समय (सुबह, दोपहर व शाम) गंगा स्नान, एक समय भोजन, दिनभर प्रभुनाम का जप करने में कल्पवासियों का समय व्यतीत होता है। रामायण का पाठ, सुंदरकांड का पाठ करने के साथ संतों के शिविर में जाकर प्रवचन सुनते हैं।
12 साल में पूर्ण होता है कल्पवास
कल्पवास करने वाले लोगों को लगातार 12 साल संगम तीरे आना पड़ता है। 12 साल बाद कल्पवास पूर्ण माना जाता है। अगर कोई बीच में किसी वर्ष नहीं आता तब उसे नए सिरे से कल्पवास का संकल्प लेकर उसे पूर्ण करना पड़ता है।
घर-परिवार से नहीं होता वास्ता
कल्पवासियों का घर-परिवार से कोई वास्ता नहीं होता। सुख अथवा दु:ख की स्थिति होने पर भी कल्पवासी माघ मेला क्षेत्र छोड़कर नहीं जाते। मेला क्षेत्र छोडऩे पर उनका कल्पवास खंडित हो जाता है।