सुनिए डॉक्टरों की दास्तां, कोविड वार्ड में ड्यूटी से लौटने पर घर में बेटे से छिपकर जाते हैं कमरे में

अस्पताल में भर्ती मरीजों की जान बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा रहे हैं तो परिरवार के लोगों को सुरक्षित रखने की मजबूरी भी है। डाक्टरों की आंखें तब भर उठती हैं जब डयूटी से घर लौटने पर बच्चों से छिप छिपाकर कमरे में दाखिल होना पड़ता है।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Sun, 09 May 2021 07:00 AM (IST) Updated:Sun, 09 May 2021 07:00 AM (IST)
सुनिए डॉक्टरों की दास्तां, कोविड वार्ड में ड्यूटी से लौटने पर घर में बेटे से छिपकर जाते हैं कमरे में
कोरोना काल के दौरान फर्ज अदायगी में डाक्टरों को न अपनी जान की परवाह न परिवार की फिक्र

प्रयागराज, जेएनएन। कोरोना संकट काल में पहले मोर्चे पर मौजूद रहने वाले हर शख्स को तमाम तरह की दिक्कतों और झंझावतों से गुजरना पड़ रहा है लेकिन वे बिना घबराए या झिझके काम पर लगे हैं। कोरोना संक्रमण के इस कालखंड में कोविड ड्यूटी कर रहे डाक्टरों व अन्य चिकित्सा स्टाफ को बेहद कठिन परिस्थितियों से दो चार होना पड़ रहा है। अस्पताल में भर्ती मरीजों की जान बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा रहे हैं तो वहीं घर के लोगों को सुरक्षित रखने की मजबूरी भी है। डाक्टरों की आंखें उस समय भर उठती हैं जब डयूटी से घर लौटने पर अपने मासूम बच्चों से छिप छिपाकर अलग कमरे में दाखिल होना पड़ता है। 21 दिनों तक एक ही घर में रहते हुए परिवार से अलग सोना भी उनके लिए तकलीफदेह होता है।

 
मरीज की जान बचाना है फर्ज
ड्यूटी लेवेल थ्री कोविड अस्पताल में लगी है। विंग ए और बी में एचडीयू में भर्ती मरीजों की चिकित्सा अपने जूनियर डाक्टरों व पैरामेडिकल स्टाफ के साथ करनी पड़ती है। दोनों विंग में 84 मरीज भर्ती हैं। हर एक के पास जाना पड़ता है। कोविड सुरक्षा मानक के तहत सावधानी तो बरतते ही हैं लेकिन, संक्रमण का खतरा तो हर समय बना ही रहता है। एक डाक्टर के लिए अपनी जान और परिवार तो है ही, लेकिन सर्वप्रथम फर्ज मरीज की जान बचाने का रहता है। मरीज को अपने हाथ से खाना भी खिलाना पड़ता है, मरीज बेहोशी की हालत में बेड से गिर पड़ता है तो उसे उठाना भी पड़ता है।
ड्यूटी पूरी होने पर घर जाते हैं तो चार साल के बेटे आयुष से छिप कर और कभी-कभी तो पर्दे की ओट लेते हुए अपने सेपरेट कमरे में दाखिल होना पड़ता है। पापा के घर आने पर बेटा दौड़ता हुआ आकर लिपट न जाए इससे बचने की कोशिश अक्सर आंखें नम कर देती है। परिवार से अलग ही एक कमरे में सोते हैं और खाना भी अलग ही रहता है।
डा. राजकुमार चौधरी, एसोसिएट प्रोफेसर सर्जरी विभाग, मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज


मरीज की सेवा के लिए बने हैं
हमने तो पहले भी कोविड मरीजों के इलाज के लिए ड्यूटी की थी, इन दिनों भी कर रहे हैं। यह सभी के लिए कठिन समय है। ड्यूटी करके घर लौटते हैं तो खुद को एक कमरे में आइसोलेट कर लेते हैं। जब ड्यूटी पर होते हैं तो सिर्फ मरीज दिखता है। मन में यही सोचते हैं कि किसी तरह से संक्रमित मरीज यहां से स्वस्थ होकर अपने घर परिवार में जाएं। कभी-कभी मरीज की तबीयत अचानक से बिगडऩे की सूचना मिलती है तो उस समय केवल मास्क पहनकर ही उसके पास भागते हुए जाना पड़ता है। क्योंकि पीपीई किट पहनने में 10 से 15 मिनट लगते हैं और मरीज की जान 15 सेकेंड में भी जा सकती है इसलिए उस वक्त अपनी जान की फिक्र छोड़कर मरीज की जान बचाने भागना ही पड़ता है। घर में पत्नी का पूरा सहयोग मिलता है। ड्यूटी से लौटते ही सबसे पहले बाथरूम का रुख करते हैं। कपड़ों को अलग ही रखकर धुलने की प्रक्रिया, नहाने के बाद ही दूसरे कमरे में जाने की आदत पड़ चुकी है। हालांकि यह टाइम हम डाक्टरों के लिए ही नहीं, बल्कि जरूरी सेवाओं में लगे सभी लोगों के लिए कठिन है।
मेजर डा. जितेंद्र शुक्ला, असिस्टेंट प्रोफेसर मेडिसिन विभाग, मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज

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