जानिए प्रयागराज कहां में लगती थी आल्हा-ऊदल की अदालत, अपनी कचहरी मेंेबैठकर करते थे न्याय
महोबा के महान योद्धाओं आल्हा और ऊदल के चरण संगम की धरती पर भी पड़े हैं। जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर बारा तहसील के जसरा ब्लाक के ग्राम चिल्ला गौहानी में पत्थरों से निर्मित एक भवन है जिसको ग्रामीण आल्हा-ऊदल की बैठक या कचहरी कहते हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। महोबा के महान योद्धाओं आल्हा और ऊदल के चरण संगम की धरती पर भी पड़े हैं। जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर बारा तहसील के जसरा ब्लाक के ग्राम चिल्ला गौहानी में पत्थरों से निर्मित एक भवन है जिसको ग्रामीण आल्हा-ऊदल की बैठक या कचहरी कहते हैं। पास में ही एक तालाब है जिसका जुड़ाव दोनों महान योद्धाओं से भी बताया जाता है। कहते हैं कि यहां पर आल्हा-ऊदल लोगों को न्याय प्रदान करते थे।
भवन में बने हैं आधा दर्जन कमरे, आंगन और बरामदा
चिल्ला गौहानी गांव के श्यामकांत मिश्र बताते हैं कि आल्हा-ऊदल की कोर्ट गांव से दक्षिण दिशा में स्थित है। भवन को बनाने में पत्थरों का प्रयोग किया गया है। जो तकरीबन पांच फिट लंबे और तीन से चार फिट चौड़े हैं। पत्थरों की मोटाई तकरीबन डेढ़ से दो फिट है। सामने की ओर मुख्य प्रवेश द्वार है जिसकी छत गोल पत्थरों पर टिकी हुई है। भवन के अंदर दो बड़े कमरे और चार से पांच छोटे कमरे हैं। बरामदा और आंगन भी है सभी की छतें पत्थरों से ही बनी हैं।
बिना किसी मसाले के एक-दूसरे से जुड़े हैं भारी पत्थर
आल्हा-ऊदल की कचहरी कहे जाने वाले इस भवन की खास बात यह है कि इसको बनाने में काफी बड़े आकार के भारी पत्थरों को प्रयोग किया गया है जो बिना किसी मसाले के एक के ऊपर एक रखे गए जिससे भवन तैयार हुआ है। श्यामकांत मिश्र बताते हैं कि भवन की छतों में भी किसी मसाले का प्रयोग नहीं किया गया है। भवन करीब दो से तीन बीघा क्षेत्र में विस्तृत है।
कोर्ट भवन से चार सौ मीटर दूर बने तालाब तक जाती है सुरंग
श्यामकांत बताते हैं कि कचहरी से तकरीबन चार सौ मीटर दूरी पर एक तालाब है। बुजुर्ग इस तालाब को भी आल्हा-ऊदल से जोड़ते हैं। बचपन में पिता स्व.शोभनाथ मिश्र से सुना था कि वर्ष 1904 में सूखा पड़ा था तो तालाब की खोदाई कराई जा रही थी। खोदाई के दौरान तालाब के बीच एक चौखट दिखाई पड़ी थी जिसे खोलने का प्रयास किया गया था किंतु रात होने पर काम बंद कर देना पड़ा था। बताते हैं कि रात में इतनी तेज बारिश हुई कि पूरा तालाब लबालब भर गया, बाद में वह चौखट दिखाई नहीं दी। कहते हैं कि तालाब तक सुरंग थी जिससे आल्हा-ऊदल तालाब में जाकर नहाते थे, संभवत: चौखट उसी का मुहाना था। कहते हैं कि तालाब की खोदाई कराई जाए तो संभव है कुछ तथ्य निकले। एक बार उन्होंने निजी प्रयास किया था लेकिन खर्च ज्यादा होने के चलते बात आगे नहीं बढ़ सकी। बताया कि तालाब का रकबा 52 बीघे से ज्यादा है किंतु मौके पर 20-25 बीघा ही बचा है।
संरक्षित है चिल्ला गौहानी गांव में स्थित यह विरासत
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के वरिष्ठ संरक्षण सहायक पंकज तिवारी के मुताबिक 1920 में इस भवन को संरक्षित किया गया था। रखरखाव के कुछ कार्य भी कराए गए हैं। ग्रामीण इसमें पशु आदि बांधते थे जिसके बाद इसमें लोहे का दरवाजा भी लगवाया गया। देखरेख के लिए एक कर्मचारी भी तैनात किया गया है। ऐतिहासिक भवन के चारों ओर बाउंड्री वॉल भी बनाने पर विचार किया जा रहा है। कहा कि जनश्रुतियों के मुताबिक यहां कभी आल्हा-ऊदल रहे थे। भवन की ऐतिहासिकता के बारे में उनके पास कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है।