Birth Anniversary: प्रयागराज का कटरा गवाह है आजाद की पहलवानी व उनकी खिचड़ी का

शहर में आजाद का निश्चित ठिकाना नहीं था लेकिन कटरा में उनके ठहरने के कुछ स्थान जरूर थे। ऐसा ही एक है दुर्गा मां की गली में प्राचीन बरगद का पेड़। उन दिनों वहां शिवमंदिर भी था। आजाद उसी मंदिर व पेड़ के नीचे रहते थे।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Fri, 23 Jul 2021 07:00 AM (IST) Updated:Fri, 23 Jul 2021 06:10 PM (IST)
Birth Anniversary: प्रयागराज का कटरा गवाह है आजाद की पहलवानी व उनकी खिचड़ी का
आज हम महान क्रांतिकारी और भारत मां के सच्चे सपूत चंद्रशेखर आजाद की 115 वीं जन्मतिथि मना रहे हैं।

प्रयागराज, अमलेंदु त्रिपाठी। Jagran Special आज हम महान क्रांतिकारी और भारत मां के सच्चे सपूत चंद्रशेखर आजाद की 115 वीं जन्मतिथि मना रहे हैं। याद कर रहे हैं उनके शौर्य को। जगह जगह कार्यक्रम होंगे। संगमनगरी में तो एक तरह से पर्व जैसा उत्साह है। प्रयागराज में पुराने बुजुर्ग लोग ही नहीं, नए लड़के भी आजाद के बारे में पढ़-सुनकर सब जान चुके हैं। वे इसे गौरव की बात मानते हैं कि आजाद से उनके शहर का नाता रहा है। ये जरूर दुखद रहा कि वे प्रयागराज में शहीद हुए लेकिन वह देश के लिए मर मिटे और यह भी प्रयागराज के लिए गौरव की बात है।

खास बात

- अक्सर जाते थे कचहरी और भरद्वाज मुनि आश्रम के सामने अखाड़े में।

- दुर्गा मां की गली में प्राचीन बरगद का पेड़ भी होता था ठिकाना।

- खतरा भांप कर चले जाते थे सर सुंदरलाल छात्रावास परिसर में।

- रात में जब मच्छर अधिक काटते तो लगाते थे दंड बैठक।

ये स्‍थल हैं स्‍वतंत्रता आंदोलन के साक्षी

क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को अमरत्व देने वाली संगमनगरी की धरती तमाम प्रसंगों की साक्षी है। स्वतंत्रता आंदोलन को परवान चढ़ाने के लिए आजाद ने इसी शहर से ताना बना तो बुना ही, उनकी व्यक्तिगत पसंद, नापसंद को भी शहर ने खूब देखा है। कटरा, कचहरी, घंटाघर, अल्फ्रेड पार्क (अब चंद्रशेखर आजाद पार्क), इलाहाबाद विश्वविद्यालय, रसूलाबाद, आनंद भवन ऐसे ही बातों के साक्षी हैैं। शहर में आजाद का निश्चित ठिकाना नहीं था लेकिन कटरा में उनके ठहरने के कुछ स्थान जरूर थे। ऐसा ही एक है दुर्गा मां की गली में प्राचीन बरगद का पेड़। उन दिनों वहां शिवमंदिर भी था। आजाद उसी मंदिर व पेड़ के नीचे रहते थे। वह कब रहेंगे, किसी को कुछ नहीं पता होता।

अखाड़े में भी जाते थे आजाद

स्थानीय निवासी विभूति द्विवेदी जिनका मकान नंबर 642 तब भी होता था, अपने बाबा स्व. चंद्रभूषण दुबे से सुने वृत्तांत के आधार पर बताते हैं कि पड़ोस में ही स्व. सरयू प्रसाद सिंह की मां थीं। वह आजाद के भोजन का ख्याल रखती थीं। भोजन कर आजाद बरगद के पेड़ के नीचे विश्राम करते। रात में कई बार जब मच्छर काटते तो उठकर कसरत करना शुरू कर देते। कभी मुगदर भांजते तो कभी दंड बैठक करते। कचहरी और भरद्वाज मुनि आश्रम के सामने स्थित अखाड़े में भी जाकर दांव भी आजमाते। दंडबैठक के साथ मुगदर भांजते और जोड़ीदार मिलने पर कुश्ती में भी हाथ आजमाते थे। यहीं रहने वाले भारतरत्न वार्ष्णेय डिप्टी एसपी पद से सेवानिवृत्त हैं। उन्होंने भी अपने पिता से कई किस्से सुन रखे हैं। बताते हैं कि उन दिनों यहां बाग थी। पुलिस की आहट मिलते ही वह उसमें चले जाते। खतरा अधिक होता तो सर सुंदरलाल छात्रावास की चहारदीवारी भी फांद जाते।

खिचड़ी था आजाद का पसंदीदा भोजन

दुर्गा मां की गली निवासी रामजी स्वरूप ने भी पिता से आजाद के कई किस्से सुन रखे हैं। बताते हैैं कि स्व. सरयू प्रसाद सिंह की मां को मोहल्ले के लोग ही नहीं आजाद भी अम्मा ही कहते और प्राय: उनसे खिचड़ी बनवाते। यह उनका पसंदीदा भोजन था। एक वजह यह भी थी कि खिचड़ी जल्दी बनती थी और अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती। अपने संस्मरण में क्रांतिकारी यशपाल ने भी कानपुर का जिक्र करते हुए लिखा है कि आजाद को खिचड़ी पसंद थी। जब संगठन के लोग जुटते तो एक बाल्टी में खिचड़ी पकती थी। उसे परात में रखकर चारों तरफ बैठकर सभी खाते। इसमें छुआछूत अथवा अन्य भेद नहीं होता था।

 

जानें, ये क्‍या कहते हैं

श्रीवरनाथ व्‍यायामशाला के पहलवान भरतलाल कहते हैं कि भरद्वाज मुनि आश्रम के सामने स्थित श्री वीरनाथ व्यायामशाला शहर की पुरानी व्यायामशालाओं में है। मैं इस अखाड़े में 50 साल से अधिक समय से आ रहा हूं। हमारे गुरु बताते थे कि यहां आजाद भी आया करते थे। हालांकि बहुत कम लोग ही जान पाते थे कि वह आजाद हैं।

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