Karva Chauth 2021: त्रिग्रहीय योग करवा चौथ पर दिलाएगा समृद्धि, जानें व्रत संबंधी अन्य महत्वपूर्ण बातें
Karva Chauth 2021 ज्योतिर्विद आचार्य अविनाश राय बताते हैं कि रविवार को रोहिणी नक्षत्र है। रोहिणी में चंद्रमा उच्चता को प्राप्त करता है। तुला राशि में सूर्य मंगल शुक्र ग्रह का संचरण होगा। इससे व्रती महिलाओं के ऋण रोग व बाधाएं खत्म होंगी। निरोगता लंबी आयु सौभाग्य की प्राप्ति होगी।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। कार्तिक कृष्णपक्ष की चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्थी अर्थात करक चतुर्थी तिथि (करवाचौथ) सुख-समृद्धि व सौभाग्य की प्रतीक है। अखंड सौभाग्य, पति की लंबी आयु के लिए सुहागिन महिलाएं रविवार को निर्जला रहकर करवाचौथ का व्रत रखेंगी। सूर्यास्त के बाद मेहंदी रचे हाथों में लाल चूड़ी, मांग में सिंदूर, लाल साड़ी, आभूषण सहित सोलह श्रृंगार करके मां गौरी, भगवान शंकर, गणेश व कार्तिकेय को पुष्प, अक्षत, धूप, दीप आदि अर्पित करके करवाचौथ कथा का पाठ करेंगी।
करवा चौथ पर इस बार त्रिग्रहीय योग का संयोग है
करवा चौथ पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति को चलनी से देखने के बाद सौभाग्यवती महिलाएं व्रत का पारण करेंगी। व्रती महिलाओं को सौभाग्य, पुत्र, पौत्र के साथ निश्चल लक्ष्मी (अधिक समय साथ रहने वाली) की प्राप्ति होती है। इस बार करवा चौथ पर त्रिग्रहीय योग का दुर्लभ संयोग होगा, जिससे व्रती महिलाओं की समस्त कामनाएं पूर्ण होंगी।
निरोगता, लंबी आयु सौभाग्य की होगी प्राप्ति : आचार्य अविनाश
ज्योतिर्विद आचार्य अविनाश राय बताते हैं कि रविवार को रोहिणी नक्षत्र है। रोहिणी में चंद्रमा उच्चता को प्राप्त करता है। वहीं, तुला राशि में सूर्य, मंगल व शुक्र ग्रह का संचरण होगा। इससे व्रती महिलाओं के ऋण, रोग व बाधाएं खत्म होंगी। निरोगता, लंबी आयु सौभाग्य की प्राप्ति होगी।
सूर्यास्त के बाद करें पूजन : आचार्य अविनाश
आचार्य अविनाश बताते हैं कि सुबह व्रत का संकल्प लेने वाली महिलाएं दिन में न सोएं। रविवार को सूर्यास्त 5.42 बजे होगा। इसके बाद गोधुली बेला में शाम 5.45 से 6.45 बजे तक पूजन का मुहूर्त है। इसके बाद शाम 7.05 से 8.45 तक वृष की स्थिर लग्न रहेगी। वृष राशि में चंद्रमा का संचरण है, इसलिए पूजन का यह उपयुक्त मुहूर्त है। चंद्रोदय रात 8.34 बजे होगा।
व्रती महिलाएं ऐसे करें पूजन : आचार्य विद्याकांत
पराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय के अनुसार करवाचौथ की व्रती महिलाएं पूजा घर में बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर उसमें भगवान शिव-पार्वती, गणेश व स्वामी कार्तिकेय को स्थापित करें। फिर काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उससे तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के करवे को रखकर पूजन आरंभ करें। पूजन में 10 अथवा 13 करवे शामिल होने चाहिए। करवों में लड्डू का नैवेद्य रखें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर करवाचौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें। चंद्रोदय होने पर उनका का पूजन कर चलनी की ओट से देखें फिर उसी से पति को देखकर अर्घ्य दें। इसके बाद ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों व पति के माता-पिता (सास-ससुर) को भोजन कराकर उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा दें। सास को एक लोटा, वस्त्र व विशेष करवा देकर आशीर्वाद प्राप्त करें। सास जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को उक्त सामग्री भेंट करें।
इन मंत्रों का करें उच्चारण
आचार्य विद्याकांत पांडेय बताते हैं कि पूजन स्थल पर स्थापित देवी-देवताओं का अलग-अलग मंत्रों से पूजन होना चाहिए। इसमें 'ऊं शिवायै नम:' से पार्वती का, 'ऊं नम: शिवाय' से शिव का, 'ऊं षण्मुखाय नम:' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ऊं गणेशाय नम:' से गणेश का तथा ऊं 'सोमाय नम:' का जाप करते हुए चंद्रमा का पूजन करें।
निरोगी काया देता है चंद्रमा
करवाचौथ व्रत में चंद्रमा की पूजा धार्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। चंद्रमा मन का कारक एवं औषधियों को संरक्षित करता है। कार्तिक मास में औषधियों के गुण विकसित अवस्था में होते है। यह गुण उन्हें चंद्रमा से ही प्राप्त होता है। ये व्यक्ति के स्वास्थ्य और निरोगी काया को बनाता है। करवाचौथ के व्रत में चंद्रमा को अघ्र्य देने का विधान इसी कारण है। इससे मानव को आयु, सौभाग्य और निरोगी काया की प्राप्ति होती है।