Kargil Vijay Diwas 2021: जरा याद करो कुर्बानी... प्रतापगढ़ के बलिदानी विजय को शासन-प्रशासन ने भुलाया

जांबाज देशभक्त लांस नायक विजय शुक्ल ने खुद को बलिदान कर दिया था। सेना का यह बहादुर कुंडा के पीथीपुर गांव का था। उनके बलिदान पर लोगों को गर्व है पर भी कि सरकार जनप्रतिनिधियों व प्रशासन ने उनकी यादों को नहीं संजोया।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 06:50 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 06:21 PM (IST)
Kargil Vijay Diwas 2021:  जरा याद करो कुर्बानी... प्रतापगढ़ के बलिदानी विजय को शासन-प्रशासन ने भुलाया
नेताओं ने वादा किया था कि स्मारक पर लगेगा मेला, नहीं चढ़ाने आते दो फूल भी

प्रतापगढ़, जागरण संवाददाता। कारगिल के युद्ध में प्रतापगढ़ का लहू भी शामिल था। जांबाज देशभक्त लांस नायक विजय शुक्ल ने खुद को बलिदान कर दिया था। सेना का यह बहादुर कुंडा के पीथीपुर गांव का था। उनके बलिदान पर लोगों को गर्व है, पर भी कि सरकार, जनप्रतिनिधियों व प्रशासन ने उनकी यादों को नहीं संजोया।

जब कारगिल का युद्ध छिड़ा था तो बेल्हा का यह लाल दुश्मनों को ललकार रहा था। बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए विजय 26 जुलाई 1999 को मातृ भूमि की गोद में सिर रखकर सदा-सर्वदा के लिए सो गए। तिरंगे में लिपटे उनके पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन को हजारों लोग गए थे। अफसर और नेता सब जमे थे। वादों के फूल बरसे थे, जो अब मुरझा चुके हैं। इस परिवार को केंद्र सरकार की ओर से एक पेट्रोल पंप मिला। शकरदहा पुलिस चौकी का नामकरण विजय के नाम पर होने के सिवा कुछ न मिला। जबकि सैनिक के परिवार में देश प्रेम की वही लहर अब भी है। विजय का बेटा शिवशंकर युवाओं को सेना में जाने का प्रशिक्षण देता है। इसके लिए वह पूर्व सैनिकों से टिप्स लेता है।

गांव-घर के लोगों ने लगवाई प्रतिमा

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा। यह पंक्ति पीथीपुर में अब तक सार्थक न हो सकी। मेला तो दूर जिम्मेदार लोग दो फूल भी चढ़ाने को नहीं आते। अब तक शहीद का स्मारक तक न बन सका। बलिदानी का स्मारक सरकार के न बनवाने पर घर व गांव के लोग आगे आए। अपने लाल की प्रतिमा तैयार कराकर छोटा सा स्मारक बनाकर उसकी स्थापना की। जिला मुख्यालय के अधिवक्ता जय प्रकाश मिश्र ने साथियों के साथ मिलकर कटरा रोड पर आइटीआइ परिसर में विजय पार्क बनवाया। विजय के पिता केदार नाथ शुक्ल, पत्नी गुडिय़ा देवी, बेटे शिव शंकर, बेटी दीपा शिखा, दिव्या व सौम्या को प्रशासन की यह बेरुखी अखरती है। वह कहते हैं कि सैनिक के रूप में विजय का जो कर्तव्य था, उन्होंने निभाया। देश पर खुद को मिटा दिया। उसके बाद सरकार को उनकी यादों को जीवंत रखने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

सड़क तो ऐसी कि हिल जाए शरीर

कारगिल शहीद विजय के घर तक 22 साल बाद भी सही-सलामत सड़क नहीं है। कई अफसरों ने शहीद स्थल को दुरुस्त कराने, नाला निर्माण, इंटरलाकिंग वाली सड़क बनवाने, गांव में अस्पताल खुलवाने का आश्वासन दिया था। यह सब कोरा रह गया। जो सड़क है उस पर चलना जोखिम भरा है। कोई गिरे तो अस्पताल पहुंच जाए। शहीदों के नाम पर सरकार की तमाम योजनाएं चलती हैं, पर वास्तव में वह किस हाल में हैं, इसे पीथीपुर में देखा जा सकता है। लांस नायक के परिवार के श्याम लाल, संजय, संदीप, कप्तान शुक्ला व चंद्रदेव आदि स्वजनो की आंखें इस दिवस के पहले से ही नम हो जाती हैं। यह आंसू केवल सैनिक की यादों के ही नहीं होते, बल्कि उनके परिवार के साथ हो रही उपेक्षा पर भी बहते हैं।

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