यह है बदरे आलम का कन्हैया जो 40 किलो मीटर की रफ्तार में 90 डिग्री पर मुड़ जाता है
शहर की सड़कों पर इस समय बदरेआलम का घोड़ा अपनी रफ्तार से लोगों को भादों में भी सावन का एहसास करा रहा है। शहर की सड़कों पर जब कन्हैया घोड़ा टक-टक की आवाज के साथ रफ्तार भरता है तो उसके देखने वालों की भीड़ सड़क के किनारे जुट जाती है।
प्रयागराज, जेएनएन। सावन में गहरेबाजी का अपना अलग ही मजा होता है। लेकिन शहर की सड़कों पर इस समय बदरेआलम का घोड़ा अपनी रफ्तार से लोगों को भादों में भी सावन का एहसास करा रहा है। शहर की सड़कों पर जब कन्हैया घोड़ा टक-टक की आवाज के साथ रफ्तार भरता है तो उसके देखने वालों की भीड़ सड़क के किनारे जुट जाती है। कन्हैया अपने रफ्तार और शानदार चाल के लिए इन दिनों चर्चा में है। इसके मालिक भी इसकी सेहत का भरपूर ख्याल रखते हैं। यह जिस रफ्तार से दौड़ता रहता है, मालिक के इशारे पर उसी रफ्तार से मुड़ जाता है। प्रतिदिन इसे आहार में चार किलो चना, दो लीटर दूध के साथ 250 ग्राम बादाम दिया जाता है।
25 किलोमीटर तक का सफर करता है हर रोज
वैसे तो कन्हैया में कई खूबियां है लेकिन उसकी दो खूबी उसे चर्चा में बनाए हुए है। प्रतिदिन 20 से 25 किलो मीटर का सफर तय करता है। वह जिस रफ्तार से दौड़ता रहता है उसी रफ्तार से 90 डिग्री के कोण पर अपने मालिक के इशारे पर मुड़ जाता है। सुबह के वक्त म्योहाल, हिन्दू हास्टल चौराहा, सुभाष चौराहा, विवेकानंद चौराहा पर कन्हैया की रफ्तार देखने के लिए लोग खड़े रहते हैं। कन्हैया के स्वास्थ्य के प्रति बदरे आलम का जुनून भी अलग दिखाई देता है। कहीं से भी आते हैं तो सबसे पहले कन्हैया के पास जाकर उस पर हाथ फेरते हैं उसके बाद वह दूसरा काम करते हैं। इसे परिवार का एक सदस्य मानते हुए इसके लिए दो गायों को भी पाला है जिसका दूध प्रतिदिन कन्हैया पीता है। बदरेआलम कन्हैया को हल्का चना खिलाकर प्रतिदिन रेड़ी यानी बग्घी में लगाकर उसकी दौड़ कराते हैं। कटरा मनमोहन पार्क से कन्हैया दौड़ शुरू करता है। फिर शहर के प्रमुख स्थानों से होते हुए फाफामऊ उसके बाद वहां से संगम फिर संगम से सिविल लाइंस, हाईकोट होते हुए वापस कटरा आता है।
चार बीघा में घोड़ा के लिए की है चना की खेती
घुड़सवारी का शौक रखने वाले बदरेआलम ने कन्हैया के लिए चार बीघा में चना की खेती कर रखी है। शंकरगढ़ के नारीबारी में उन्होंने चना की फसल लगा रखी है। बताया कि बाजार से चना खरीदना सही नहीं होता है। इस वजह से खुद चना की खेती करता हूं। खान पान के साथ सफाई का भी बेहतर प्रबंध रहता है। कन्हैया पर प्रतिमाह लगभग 25 से 30 हजार रुपये का खर्च आता है।
दिल्ली से बनाई है रेड़ी
बदरे आलम के बाबा शेख फरीद भी घुड़सवारी का शौक रखते थे। बदरे आलम भी 15 वर्ष की उम्र से घुड़सवारी कर रहे हैं। बदरे आलम की इस समय उम्र 68 वर्ष हो चुकी है। घुड़सवारी के लिए यह दिल्ली से रेड़ी यानि बग्घी मंगाई हैं जिसकी कीमत इस समय लगभग 35 हजार रुपये हो चुकी है।