कोरोना महामारी से बचने के लिए घर में रहना तो बढ़िया है पढ़ते रहना, अच्छी दोस्त बन गईं हैं किताबें
कालिंदीपुरम कॉलोनी में रहने वाले जेपी तिवारी हों या अल्लापुर निवासी मनोहर शुक्ला गोविंदपुर के राकेश तिवारी हों या प्रीतम नगर कॉलोनी के सनातन पांडेय इनका कहना है कि चिंता और घबराहट से तो कहीं अच्छा है कि किताबें पढ़कर समय व्यतीत करें।
प्रयागराज, जेएनएन। अजीब बेचैनी और घबराहट भरा वक्त चल रहा है। घर से निकलने पर कोरोना की चपेट में आने का खतरा और घर में समय कैसे गुजारें। तनाव, अवसाद, उदासी और निराशा। इससे बचाव के लिए बेहतर है कि समय रचनात्मक कामों में जैसे डायरी लेखन, बागवानी, भोजन पकाने के साथ ही अन्य काम में गुजारें। और उनमें भी सबसे अच्छा है किताबें पढ़ना। किताबों को दोस्त बना लीजिए तो ज्ञान भी बढ़ेगा और अच्छा लगेगा।
घबराहट और चिंता से अच्छा है पढ़ना
इस कोरोना काल में किताबें पढ़कर समय व्यतीत करने वालों की संख्या बढ़ी है। कालिंदीपुरम कॉलोनी में रहने वाले जेपी तिवारी हों या अल्लापुर निवासी मनोहर शुक्ला, गोविंदपुर के राकेश तिवारी हों या प्रीतम नगर कॉलोनी के सनातन पांडेय, इनका कहना है कि चिंता और घबराहट से तो कहीं अच्छा है कि किताबें पढ़कर समय व्यतीत करें। मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय से योग की पढ़ाई करने वाली हथिगहां के चम्पतपुर की निवेदिता शुक्ला कोरोनकाल में किताबों से गहरा लगाव कर बैठी हैं। अब वह घर पर ही ऑनलाइन क्लास से पढ़ाई कर रही हैं। इसके अलावा घर के कामकाज में भी तन्मयता से हाथ बंटा रही हैं।
राहुल सांकृत्यायन और सुभद्रा कुमारी की पढ़ी किताबें
निवेदिता ने बताया कि वह पाठ्यक्रम के अलावा राहुल सांकृत्यायन की सतमी के बच्चे, सुभद्रा कुमारी चौहान की पापी पेट और इलाचन्द्र जोशी की डायरी के नीरस पृष्ठ पढ़ चुकी हैं। इस वक्त वह अमरकांत की डिप्टी कलेक्टरी पढ़ रही हैं। इसके अलावा वह पाठ्यक्रम की भी किताबों को भरपूर वक्त देने के साथ रसोई से जुड़कर मास्टरशेफ बनने की कवायद में लगी हैं। निवेदिता ने बताया कि वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में इस वक्त जुटी हैं।