Injection Remdesivir: कोरोना वायरस संक्रमण में रामबाण नहीं यह इंजेक्शन, इसे लगाने के बाद भी जान गंवा रहे मरीज
Effect of Injection Remdesivir उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के साथ ही संगमनगरी प्रयागराज में कुछ डाक्टर इसे तरजीह दे रहे हैं और इसके दुष्प्रचार का आलम ऐसा है कि इस एंटी वायरल इंजेक्शन रेमडेसिविर की दवा बाजार में इसकी कालाबाजारी हो रही है।
प्रयागराज [अमरदीप भट्ट[। देश के साथ प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के जानलेवा होने के बीच में बेहद चर्चा में आए एंटी इंजेक्शन रेमडेसिविर की हकीकत कुछ अलग ही है। संक्रमितों के तीमारदार जहां इसको रामबाण मान रहे हैं, वहीं प्रख्यात चिकित्सकों की राय है कि इसको संजीवनी नहीं मानना चाहिए।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के साथ ही संगमनगरी प्रयागराज में कुछ डाक्टर इसे तरजीह दे रहे हैं और इसके दुष्प्रचार का आलम ऐसा है कि इस एंटी वायरल इंजेक्शन रेमडेसिविर की दवा बाजार में इसकी कालाबाजारी हो रही है। प्रामाणिक तौर पर कोई भी प्रतिष्ठित डाक्टर यह कहने के लिए तैयार नहीं है कि इस इंजेक्शन से किसी संक्रमित की जान बची है। ऐसे भी कुछ संक्रमित हैैं, जिन्हें छह डोज लगी पर उनके प्राण पखेरू नहीं बचाए जा सके।
कोरोना की दूसरी लहर जब से कहर बरपा रही है तब से रेमडेसिविर इंजेक्शन खास हो गया है। आलम यह है कि संक्रमित के तीमारदार इसके लिए एमआरपी (अधिकतम फुटकर मूल्य) से दो से तीन गुना कीमत भी देने के लिए तैयार रहते हैैं। एक-एक इंजेक्शन बहुमूल्य हो गया है। गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों का इलाज करने वाले सरकारी अस्पतालों के डाक्टर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि रेेमडेसिविर रामबाण नहीं है। स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय, तेज बहादुर सप्रू (बेली) अस्पताल सहित निजी अस्पतालों में अब तक दो दर्जन से अधिक ऐसे संक्रमितों की मौत हो चुकी है जिनकी जान बचाने के लिए यह इंजेक्शन लगाया गया था। एक्सपर्ट कहते हैं कि इस इंजेक्शन से जान बचने के ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं। इक्का-दुक्का केस अपवाद हो सकते हैं। इसे रामबाण बताते हुए दुष्प्रचार समझ से परे है।
प्रयागराज के दो मामले में यह अनुपयोगी ही साबित हुआ
केस-1
लूकरगंज निवासी राजेंद्र अवस्थी को कोरोना संक्रमण के बाद स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय में भर्ती कराया गया था। रेमडेसिविर के छह डोज लगाए जाने के बाद भी उनकी जान नहीं बचाई जा सकी।
केस -2
तेजबहादुर सप्रू (बेली) अस्पताल में भर्ती पुराना कटरा निवासी कौशलेंद्र कुशवाहा की सांसें मंगलवार को थम गईं। उन्हें लगाए गए रेमडेसिविर इंजेक्शन के चार डोज संजीवनी नहीं बन पाए।
मुझे नहीं लगता यह संजीवनी बूटी है: प्रयागराज के मुख्य चिकित्साधिकारी डा.प्रभाकर राय ने बताया कि इस इंजेक्शन के प्रयोग की एक निश्चित गाइडलाइन है। इसी के अनुरूप एसआरएन, बेली और रेलवे अस्पताल में इसकी सप्लाई की जा रही है। मुझे ऐसा नहीं लगता कि यह इंजेक्शन संजीवनी बूटी के समान है। यह फिलहाल आइसीयू में भर्ती अति गंभीर मरीजों को दी जा रही है।
क्या है रेमडेसिविर इंजेक्शन: एक एंटीवायरल दवा है, जिसे अमेरिका की दवा कंपनी गिलियड साइंसेज ने बनाया है। इसे करीब एक दशक पहले हेपेटाइटिस सी और सांस संबंधी वायरस का इलाज करने के लिए बनाया गया था, लेकिन इसे कभी बाजार में उतारने की मंजूरी नहीं मिली। अब कोरोना संक्रमण के इस दौर में रेमडेसिविर इंजेक्शन को जीवन रक्षक दवा के रूप में देखा जा रहा है। यही कारण है कि रेमडीसिविर इंजेक्शन को लोग महंगी कीमत पर भी खरीदने को तैयार हैं। रेमडेसिविर इंजेक्शन का इस्तेमाल कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में किया जाता है। हालांकि कोरोना के इलाज में इसके प्रभावी ढ़ंग से काम करने को किसी ने मान्यता नहीं दी है। नवंबर में डब्ल्यूएचओ ने भी कह दिया था कि रेमडेसिविर कोरोना का सटीक इलाज नहीं है। इसके बाद भी कोरोना संकट के बाद इसकी बिक्री में काफी उछाल आया है। भारत में इस दवा का प्रोडक्शन सिप्ला, जाइडस कैडिला, हेटेरो, माइलैन, जुबिलैंट लाइफ साइंसेज, डॉ रेड्डीज, सन फार्मा जैसी कई कंपनियां करती रही हैं। गिलियड साइंसेज कंपनी ने रेमडेसिविर को इबोला के ड्रग के रूप में विकसित किया था, लेकिन अब माना जाता है कि इससे और भी तरह के वायरस मर सकते हैं। इसी कारण इसमें नया नाम कोरोना वायरस का जुड़ गया है।