Independence Day 2020 : जंग-ए-आजादी में प्रयागराज की दीवारें भी ब्रिटिश यातना की रही हैं गवाह

Independence Day 2020 प्रयागराज के चंद्रशेखर आजाद पार्क चौक स्थित नीम का पेड़ आनंद भवन खुशरोबाग और साउथ मलाका स्थित जेल देश की आजादी की लड़ाई के गवाह हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 15 Aug 2020 12:22 PM (IST) Updated:Sat, 15 Aug 2020 04:49 PM (IST)
Independence Day 2020 : जंग-ए-आजादी में प्रयागराज की दीवारें भी ब्रिटिश यातना की रही हैं गवाह
Independence Day 2020 : जंग-ए-आजादी में प्रयागराज की दीवारें भी ब्रिटिश यातना की रही हैं गवाह

प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 की जंग-ए-आजादी में प्रयागराज (पुराना इलाहाबाद) तथा उसकी ऐतिहसिक धरोहरों का महत्वपूर्ण, अविस्मरणीय व अमूल्य योगदान रहा है। यहां की गली-गली और दरों-दीवारें ब्रिटिश यातना के खिलाफ इलाहाबादी वीर सपूतों के हौसले की गवाह हैं। स्वाधीनता के लिए हुए 1857 के विद्रोह में यह जिला न केवल उत्तर-पश्चिम प्रांत में प्रवेश की कुंजी था, बल्कि गंगा और यमुना के संगम पर स्थित होने तथा अत्यधिक मात्रा में गोला-बारूद की उपस्थिति के कारण कूटनीतिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण था।

खुसरो बाग का स्वतंत्रता संग्राम से घनिष्ठ संबंध रहा है : डॉ. जमील

ईश्वर शरण पीजी कॉलेज के इतिहासकर डॉ. जमील अहमद बताते हैं खुल्दाबाद स्थित मुगलकालीन स्मारक खुसरो बाग का स्वतंत्रता संग्राम से घनिष्ठ संबंध रहा है। 1857 ई. के गदर में मौलवी लियाकत अली ने इसी खुसरो बाग को अपना मुख्यालय बनाकर से इलाहाबाद का नेतृत्व किया था। उन्हें अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफर ने दो फरवरी 1857 को इलाहाबाद का गवर्नर नियुक्त किया था। 6 जून 1857 को मौलवी लियाकत अली ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर शहर को अंग्रेजों से आजाद करा दिया था। उस समय अंग्रेजों के साथ विद्रोहियों की जंग खुशरूबाग से लेकर किले तक चली थी।

चंद्रशेखर आजाद पार्क को कौन भूल सकता है

चंद्रशेखर आजाद ने अल्फ्रेड पार्क में 27 फ़रवरी 1931 को अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए ब्रिटिश पुलिस अध्यक्ष नॉट बाबर और पुलिस अधिकारी विशेश्वर सिंह को घायल कर कई पुलिसजनों को मार गिराया और अंततः ख़ुद को गोली मारकर आजीवन आज़ाद रहने की कसम पूरी की। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई को धर्मयुद्ध समझने वाले काकोरी कांड से जुड़े ठाकुर रोशन सिंह को तत्कालीन मलाका जेल (अब एसआरएन चिकित्सालय) में 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी।

जंगे आजादी का मौन गवाह है चौक स्थित नीम का पेड़

चौक स्थित नीम का पेड़ जंगे आजादी का मौन गवाह है। सरकारी गजट के अनुसार 1857 ई में अंग्रेजों के खिलाफ गदर में 864 से अधिक भारतीयों को नीम पेड़ से फांसी पर लटकाया गया था। चौफटका-नीवां मोड़ के बीच जीटी रोड के किनारे स्थित फांसी इमली पर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इसकी टहनियों से बड़ी संख्या में क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी।

अल्फ्रेड पार्क के दक्षिणी कोने पर स्वाधीनता प्रेमी मेवातियों के गांव थे

शहर के मध्य बसे अल्फ्रेड पार्क के दक्षिणी कोने पर समदाबाद और छीतपुर नाम से स्वाधीनता प्रेमी मेवातियों के गांव थे। गदर के बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बागी घोषित करते हुए दोनों गांवों को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। उस जगह को संवार-सुधार कर कंपनी बसा दी गई और नया नामकरण, कंपनी बाग दिया। महारानी विक्टोरिया का 1 नवम्बर 1858 का प्रसिद्ध घोषणा पत्र 'मिण्टो पार्क' में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड केनिंग द्वारा पढ़ा गया था।

स्वराज की जंग का केंद्र बिंदु था आनंद भवन

आनंद भवन स्वाधीनता संग्राम और स्वराज की जंग का केंद्र बिंदु हुआ करता था। यहां महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, आचार्य कृपलानी, राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल जैसे नेताओं ने स्वतंत्रता संग्राम की नीतियों को तय किया। साथ ही देश को आजाद कराने के लिए युवाओं को निरंतर जागृत किया। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय ब्रिटिश सरकार ने सरकार के खिलाफ गतिविधि चलाने के आरोप में आनंद भवन को जब्त कर अपने कब्ज़े में लिया गया था। जो 1947 तक उनके कब्जे में रहा। आनंद भवन में कांग्रेस का राष्ट्रीय कार्यालय था, यही से कांग्रेस देश भर में कार्य किया करती थी। कांग्रेस पार्टी के तीन अधिवेशन यहाँ पर 1888, 1892 और 1910 में क्रमशः जार्ज यूल, व्योमेश चंद्र बनर्जी और सर विलियम बेडरबर्न की अध्यक्षता में हुए।

साउथ मलाका स्थित जेल में अंग्रेजों की सही यातना

साउथ मलाका स्थित जेल में कितने आजादी के सिपाहियों ने अंग्रेजों की यातना सही लेकिन देश को आजाद कराने में का संकल्प नहीं छोड़ा। यही नहीं स्वतंत्रता आंदोलन में इलाहाबाद के अनेक मठ-मंदिर, दरगाहों-खानकहीं ने भी अपना योगदान दिया।

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