मैं इलाहाबाद संग्रहालय, आज 90 साल का हो गया हूं, आप भी जानिए अंग्रेज शासनकाल से आज तक का मेरा इतिहास

मैं इलाहाबाद संग्रहालय हूं। 90 साल पहले 28 फरवरी 1931 को मेरी पैदाइश हुई थी। मेरा जन्म तब हुआ था जब देश अंग्रेजों का गुलाम था। इसका फायदा उठाकर अंग्रेज हमारे देश की कीमती धरोहरों को अपने मुल्क ले जा रहे थे। जिनमें प्राचीन मूर्तियां पेंटिंग्स किताबें सिक्के आदि थे।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Sun, 28 Feb 2021 06:56 PM (IST) Updated:Sun, 28 Feb 2021 06:56 PM (IST)
मैं इलाहाबाद संग्रहालय, आज 90 साल का हो गया हूं, आप भी जानिए अंग्रेज शासनकाल से आज तक का मेरा इतिहास
28 फरवरी 1931 को म्यूनिसिपल बोर्ड के एक कमरे में मेरा (संग्रहालय) पुनर्जन्म हुआ

प्रयागराज, जेएनएन। मैं इलाहाबाद संग्रहालय हूं। आज से 90 साल पहले 28 फरवरी 1931 को मेरी स्थापना हुई थी। मेरा जन्म तब हुआ था जब देश अंग्रेजों का गुलाम था। इसका फायदा उठाकर अंग्रेज हमारे देश की कीमती धरोहरों को अपने मुल्क ले जा रहे थे। जिनमें प्राचीन मूर्तियां, पेंटिंग्स, किताबें, सिक्के आदि थे। इसके पीछे एक बड़ी वजह थी कि प्राचीन धरोहरों को संजोने के लिए तब कोई उचित स्थान नहीं था।

1863 में पड़ी थी नींव
सामूहिक राय पर कंपनी बाग परिसर में सन 1863 में पब्लिक लाइब्रेरी के साथ मेरी नींव (इलाहाबाद संग्रहालय) रखी गई, 1878 में अस्तित्व में आ गया था लेकिन तीन साल तक मैं संकट से घिरा रहा। उस दौरान मुझे बंद कर दिया गया था जिसका परिणाम हुआ कि मेरे भीतर समाहित हो चुकी धरोहरों की देखरेख न होने से वे क्षतिग्रस्त होने लगीं।

28 फरवरी 1931 में असली जन्म
देखरेख में लापरवाही की जानकारी तत्कालीन इलाहाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड के अध्यक्ष रहे पंडित जवाहर लाल नेहरू को हुई तो काफी व्यथित हुए। उन्होंने पंडित बृजमोहन व्यास, मदनमोहन मालवीय, आरसी टंडन आदि से सलाह कर धरोहरों को बचाने की ठानी। उनके प्रयास से 28 फरवरी 1931 को म्यूनिसिपल बोर्ड के एक कमरे में मेरा (संग्रहालय) पुनर्जन्म हुआ। मेरी देखरेख करने वाले डाक्टर राजेश मिश्र कहते हैं कि मेरा असली बर्थडेट यही है। कौशांबी, भरहुत, खजुराहो आदि जगहों से खोदाई से निकलीं प्राचीन मूर्तियां, मृदभांड आदि मुझमे समाहित किए गए। धीरे-धीरे धरोहरों की संख्या बढऩे लगी तो मेरे गर्भगृह में सहेजने के लिए जगह भी कम पड़ने लगी। मुझे अपने लिए नए घर की आवश्यकता थी।

1953 में मुझे मिला नया घर
15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी शासन से देश को आजादी मिली तो मेरी भी सुध ली गई और 14 दिसंबर को देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कंपनीबाग (अब चंद्रशेखर आजाद पार्क) में मुझे (संग्रहालय) नया घर उपलब्ध कराने का निर्णय लिया। सन् 1953 में मैं अपने नए घर में आ गया। बड़ी जगह में आ जाने पर मेरा और अधिक विस्तार हुआ। अब मुझे लोग देखने भी आने लगे, प्रशंसा सुनकर मैं खिल उठा। धरोहरों की संख्या काफी बढ़ गई। वर्तमान में मेरे गर्भ में 18 गैलरी हैं जिनमें हजारों कलाकृतियां हैं जिनमें मूर्तियों से लेकर, प्राचीनकाल के अस्त्र-शस्त्र, राजाओं व राजनेताओं के इस्तेमाल किए गए कपड़े, बेशकीमती साहित्य बर्तनों का खजाना भरा है।

मुझमे यह बात है खास
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 1948 में हत्या होने के बाद उनकी अस्थियां जिस वाहन से संगम ले जाई गईं थी वह यहां पर मौजूद है। तीस हजार से अधिक सोना, चांदी व कांस्य मुद्राएं भी हैं। शुंगयुगीन भरहुत की कलाकृतियां, कौशांबी की बुद्ध प्रतिमा, गांधार कला शैली की बोधिसत्व प्रतिमा, खोह का एकमुखी शिवलिंग, भूमरा के गुप्तयुगीन शिव मंदिर के अवशेष, रूसी चित्रकार निकोलस रोरिक, बंगाल के मशहूर चित्रकार असित हालदार, जेमिनी राय, अवनींद्रनाथ टैगोर, जर्मनी के पेंटर अनागाॢगक के चित्र और अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की पिस्तौल, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू सहित कई नामचीन नेताओं के कपड़े सुरक्षित हैं। आज 28 फरवरी 2021 है। हर साल की तरह मेरा जन्मदिन मनाया जा रहा है। कोरोना संक्रमण को देखते हुए कोई बड़ा आयोजन नहीं होगा। मेेरे बारे में जानकारी देने के अलावा गीत-भजन की प्रस्तुतियां होंगी। वर्तमान में मेरी देखरेख से जुड़े निदेशक डॉ. सुनील गुप्ता ने ऐसा ही मुझे बताया है। उनका कहना है कि मेरा इतिहास गौरवमयी था, जिसको वे आगे बढ़ाने में लगे हैं।

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