Indian Railway: सौ साल पहले दिल्ली से हावड़ा जाने में लगते थे 29 घंटे, अब 19 घंटे में ही पूरा हो रहा है सफर

धीमी गति से ट्रैक पर छुकछुक कर दौड़ती-भागती रेलगाड़ी आज चौकड़ी भर रही है। इनकी तेज गति के आगे किलोमीटरों की दूरी कुछ ही घंटों में सिमट जा रही हैं। गति के मामले में भी ट्रेनों ने अपने शुरूआत से लेकर काफी प्रगति की है।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Mon, 25 Jan 2021 10:00 AM (IST) Updated:Mon, 25 Jan 2021 11:16 AM (IST)
Indian Railway: सौ साल पहले दिल्ली से हावड़ा जाने में लगते थे 29 घंटे, अब 19 घंटे में ही पूरा हो रहा है सफर
वर्ष 1864 में कोलकाता (हावड़ा) से दिल्ली में शाहदरा के बीच पहली ट्रेन चली थी।

प्रयागराज, जेएनएन। भारत में मुंबई से थाने के बीच 16 अप्रैल 1853 में पहली ट्रेन चली थी तब से रेलवे ने ट्रेनों के संचालन से यात्री सेवा के विविध क्षेत्रों में काफी विकास किया। धीमी गति से ट्रैक पर छुकछुक कर दौड़ती-भागती रेलगाड़ी आज चौकड़ी भर रही है। इनकी तेज गति के आगे किलोमीटरों की दूरी कुछ ही घंटों में सिमट जा रही हैं। गति के मामले में भी ट्रेनों ने अपने शुरूआत से लेकर काफी प्रगति की है। 1906 तक की बात करें तो दिल्ली से हावड़ा (कोलकाता) की दूरी पूरी करने में मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों को लगभग 29 घंटे लग जाते थे लेकिन यह दूरी अब लगभग 19 घंटे में पूरी हो जाती है। राजधानी श्रेणी की ट्रेनें तो और भी कम वक्त लगाती हैं।

ट्रेनों को गतिमान करने में रंग लाया था जनरल स्ट्रेची का प्रयास

देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय ईस्ट इंडियन रेलवे तेजी से पटरियां बिछाने व ट्रेनों को चलाने में जुटी हुई थी। 1853 में बांबे से थाने के बीच पहली टे्रन चलने के बाद पूरे देश में रेलवे ट्रैक बिछाने के काम ने तेजी पकड़ ली थी। वर्ष 1864 में कोलकाता (हावड़ा) से दिल्ली में शाहदरा के बीच पहली ट्रेन चली थी। उत्तर मध्य रेलवे के वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी डॉ.अमित मालवीय बताते हैं कि 1876 तक यह दूरी पूरी करने में मेल ट्रेनें लगभग 38 घंटे लेती थीं। टे्रनों के मंथर गति से चलने का क्रम 1889 तक जारी रहा। इस साल जनरल सर रिचर्ड स्ट्रेची भारत आए थे जो ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी के चेयरमैन भी थे। उन्होंने देश में कई जगह ट्रेनों से भ्रमण किया व उनकी धीमी गति को लेकर नाराजगी जताई और गति को बढ़ाने के उपाय करने को कहा।

ट्रैक में कर्व और कई स्टापेज खत्म करने के बाद बढ़ी  की गति

जनरल सर रिचर्ड स्टे्रची ने कोलकाता से दिल्ली के बीच पाया कि टै्रक में कई कर्व यानी घुमाव हैं, कुछ स्टापेज भी ज्यादा लगे जिसे समाप्त करने का उन्होंने सुझाव दिया जिसके बाद इस दूरी को पूरा करने में टे्रनों को तकरीबन 32 घंटे लगने लगे। इसी तरह कुछ और सुधारात्मक कदम उठाने के बाद 1906 में यह समय घटकर 28-29 घंटे तक पहुंच गया। तब से करीब 115 साल हो गए। अब हावड़ा से दिल्ली पहुंचने में मेल व एक्सप्रेस टे्रनों को 17 से 18 घंटे लग रहे हैं। राजधानी श्रेणी की टे्रनें कुछ और कम वक्त लगाती हैं।

अब और जल्दी पूरा होगा दिल्ली से हावड़ा का सफर

दिल्ली से हावड़ा यानी कोलकाता के बीच का सफर अब और भी जल्दी पूरा होगा। दरअसल इस रेलमार्ग पर टे्रनों की गति को 160 किमी. प्रति घंटे करने पर काम चल रहा है जिसके एक दो साल में पूरा होने की उम्मीद की जा रही है। अमित मालवीय बताते हैं इस रूट पर उत्तर मध्य रेलवे क्षेत्र में वर्तमान में ट्रेनों की गति 130 किमी प्रति घंटा कर दी गई है, इसका भी प्रभाव अब दिखाई देगा। यात्रियों का सफर पहले से जल्दी पूरा होगा।

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