नहीं रहे इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा

इतिहासकार प्रो. लाल बहादुर वर्मा का रविवार रात निधन हो गया। उनका इलाज देहरादून के एक अस्पताल में चल रहा था। कोरोना से ठीक होने के बाद किडनी की बीमारी से पीड़ित हो गए थे। प्रो.वर्मा मौजूदा दौर के उन गिने-चुने लोगों में से थे जिनकी पुस्तकें देश के अधिकतर विश्वविद्यालयों के किसी न किसी पाठ्यक्रम में पढ़ाई जा रही हैं। वह लंबे समय तक इलाहाबाद में रहे तकरीबन चार वर्ष पहले देहरादून शिफ्ट हो गए थे।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 17 May 2021 07:02 PM (IST) Updated:Mon, 17 May 2021 07:02 PM (IST)
नहीं रहे इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा
नहीं रहे इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा

जागरण संवाददाता, प्रयागराज : इतिहासकार प्रो. लाल बहादुर वर्मा का रविवार रात निधन हो गया। उनका इलाज देहरादून के एक अस्पताल में चल रहा था। कोरोना से ठीक होने के बाद किडनी की बीमारी से पीड़ित हो गए थे। प्रो.वर्मा मौजूदा दौर के उन गिने-चुने लोगों में से थे, जिनकी पुस्तकें देश के अधिकतर विश्वविद्यालयों के किसी न किसी पाठ्यक्रम में पढ़ाई जा रही हैं। वह लंबे समय तक इलाहाबाद में रहे, तकरीबन चार वर्ष पहले देहरादून शिफ्ट हो गए थे।

10 जनवरी 1938 को बिहार के छपरा जिले में जन्मे प्रो. वर्मा ने प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद 1953 में हाईस्कूल की परीक्षा जयपुरिया स्कूल आनंदनगर गोरखपुर से पास की थी। स्नातक 1957 में किया। इस दौरान वह छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे। लखनऊ विश्वविद्यालय से 1959 में स्नातकोत्तर करने के बाद 1964 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्रो. हरिशकर श्रीवास्तव के निर्देशन में एंग्लो इंडियान कम्युनिटी इन नाइनटीन सेंचुरी इंडिया पर शोध कर पीएचडी की उपाधि हासिल की। 1968 में फ्रेंच सरकार की छात्रवृत्ति पर पेरिस में आलियास फ्रासेज में फ्रेंच भाषा की शिक्षा हासिल की। गोरखपुर और मणिपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने के बाद 1990 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अध्यापन कार्य करते हुए यहीं से सेवानिवृत्त हुए। हिदी, अंग्रेजी और फ्रेंच में डेढ़ दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं

इतिहासबोध नामक पत्रिका बहुत दिनों तक प्रकाशित करने के बाद अब इसे बुलेटिन के तौर पर प्रकाशित करते रहे। गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज अहमद गाजी ने बताया कि इनकी हिदी, अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा में डेढ़ दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, इसके अलावा कई अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा की किताबों का अनुवाद भी किया है। 20वीं सदी के लोकप्रिय इतिहासकार एरिक हाब्सबॉम की इतिहास श्रृखला द एज आफ रिवोल्यूशन का अनुवाद किया था, जो काफी चíचत रहा। उनकी प्रमुख पुस्तकों में अधूरी क्रातियों का इतिहासबोध, इतिहास क्या, क्यों कैसे, विश्व इतिहास, यूरोप का इतिहास, भारत की जन कथा, मानव मुक्ति कथा, जिंदगी ने एक दिन कहा था और कांग्रेस के सौ साल आदि हैं। जिन किताबों का हिन्दी में अनुवाद किया है, उनमें प्रमुख रूप से एरिक होप्स बाम की पुस्तक क्रातियों का युग, कृष हरमन की पुस्तक विश्व का जन इतिहास, जोन होलोवे की किताब चीख और फ्रेंच भाषा की पुस्तक फासीवाद सिद्धात और व्यवहार है। युवाओं के मन में दुनिया बदलने का सपना जगाया

प्रो. लाल बहादुर वर्मा के निधन पर तमाम गणमान्य लोगों ने शोक संवेदना जताई। समालोचक रविनंदन सिंह ने कहा वह वैश्विक चिंतक, इतिहासकार, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं बुद्धिधर्मी थे। अपनी विचारधारा को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध एवं स्पष्ट थे। गीतकार यश मालवीय ने कहा कि उनकी रिक्तता की भरपाई असंभव है। वे जितने बड़े विद्वान थे उतने ही बड़े इंसान थे। रंगकर्मी अनिल रंजन भौमिक ने कहा कि प्रो. वर्मा ने हम जैसे हजारों युवाओं के मन में दुनिया बदलने का सपना जगा दिया। संध्या नवोदिता कहती हैं कि प्रो. वर्मा दुनिया को बदलने के लिए इतिहास लिखते थे।

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