इलाहाबाद हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, सेवानिवृत्ति के बाद राज्यपाल की अनुमति बगैर नहीं हो सकती विभागीय जांच

कोर्ट ने कहा है कि रेग्यूलेशन 351(ए) के अंतर्गत विभागीय नुकसान की वसूली के लिए सेवानिवृत्त होने से पहले आरोपपत्र दे देना जरूरी है। इसके बाद शुरू की गई कार्यवाही मनमानी मानी जाएगी। अनुच्छेद 309 के तहत कानून से ही अधिकार दिए जा सकते हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 12:31 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 02:35 PM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, सेवानिवृत्ति के बाद राज्यपाल की अनुमति बगैर नहीं हो सकती विभागीय जांच
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सेवानिवृत्ति के बाद विभागीय कार्रवाई के संबंध में महत्‍वपूर्ण आदेश दिया है।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सिविल सर्विस रेग्यूलेशन 351 (ए) के अंतर्गत वित्तीय क्षति की भरपाई के लिए कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने से पहले विभागीय कार्यवाही शुरू करनी चाहिए। सेवानिवृत्ति के बाद बिना राज्यपाल से अनुमोदन लिए विभागीय कार्यवाही संविधान के अनुच्छेद 300(ए) के विपरीत है। कानूनी कार्यवाही बगैर किसी को संपत्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। पेंशन खैरात नहीं है, यह कर्मचारी की सेवा का अधिकार है, जिसे बिना कानूनी प्रक्रिया के रोका नहीं जा सकता।

नौ फीसद ब्‍याज सहित परिलाभों के भुगतान का आदेश

इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने बिजली विभाग में कनिष्ठ अभियंता पद से सेवानिवृत्त याची को पेंशन आदि पाने का हकदार माना और विभाग को नौ फीसद ब्याज सहित सेवानिवृत्ति परिलाभोंं का दो माह में भुगतान करने का निर्देश दिया। साथ ही कहा है कि यदि आदेश का पालन नहीं किया गया तो छह फीसदी अतिरिक्त ब्याज सहित कुल 15 फीसद ब्याज का भुगतान करना होगा। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने अनिल कुमार शर्मा की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

याची को 25 हजार हर्जाना देने का भी निर्देश

कोर्ट ने कहा है कि रेग्यूलेशन 351(ए) के अंतर्गत विभागीय नुकसान की वसूली के लिए सेवानिवृत्त होने से पहले आरोपपत्र दे देना जरूरी है। इसके बाद शुरू की गई कार्यवाही मनमानी मानी जाएगी। अनुच्छेद 309 के तहत कानून से ही अधिकार दिए जा सकते हैं। निगम के प्रस्ताव व सर्कुलर से राज्यपाल के अधिकार प्रबंध निदेशक राज्य विद्युत निगम को नहीं दिए जा सकते। कोर्ट ने पेंशन का भुगतान न कर तीन साल परेशान करने पर दो माह में याची को 25 हजार रुपये हर्जाना भी देने का निर्देश दिया है। याची के खिलाफ सेवानिवृत्त होने के बाद यह कहते हुए विभागीय जांच कार्यवाही शुरू की गई कि उसने व उसके भाई ने मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति प्राप्त की थी। उसके खिलाफ बिजली चोरी की भी शिकायत की गई है।

बिजली विभाग से सेवानिवृत्ति के बाद निलंबन का मामला

याची चार जून 1974 को बिजली विभाग में पेट्रोलमैन पद पर नियुक्त हुआ था। बाद में उसे कनिष्ठ अभियंता पद पर पदोन्नति की गई। वह 31 दिसंबर 2018 को अमरोहा में बिजली विभाग से सेवानिवृत्त हुआ। इससे पहले 14 नवंबर 2018 को याची के खिलाफ शिकायत की गई। उसे 22नवंबर 2018 को निलंबित कर दिया गया। सेवानिवृत्त होने से पहले 28 दिसंबर 2018 को निलंबन वापस ले लिया गया।

यह था पूरा मामला

बिजली विभाग का कहना था कि मृतक आश्रित कोटे में परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी मिल सकती है। याची व इसके भाई दोनोंं ने नियुक्ति पा ली है। विभाग को आर्थिक नुकसान की वसूली का अधिकार है। प्रबंध निदेशक के अनुमोदन पर विभागीय कार्यवाही शुरू की गई है। निगम के प्रस्ताव पर जारी सर्कुलर से प्रबंध निदेशक को अनुमोदन का अधिकार प्राप्त है। कोर्ट ने इसे विधि सम्मत नहीं माना और कहा कि राज्यपाल के अनुमोदन का अधिकार प्रबंध निदेशक को सौंपने की कानूनी घोषणा नहीं की गई है। अदालत ने कहा कि सेवानिवृत्त होने के समय याची निलंबित नहीं था।उसके खिलाफ कोई विभागीय जांच कार्यवाही शुरू नहीं की गई थी। ऐसे में पेंशन आदि न देना अधिकार का अतिलंघन है।

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