High Court Order: गंगा किनारे बसे शहरों से प्रदूषण रोकने के लिए बताएं साइट प्लान

अधिकतम बाढ़ बिंदू से 500 मीटर के भीतर निर्माण पर रोक है। इसके बावजूद अवैध निर्माण होने पर कोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को बेहतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने हलफनामे को यह कहते हुए वापस कर दिया कि फोटोग्राफ स्पष्ट पठनीय नहीं है।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Mon, 06 Dec 2021 08:52 PM (IST) Updated:Mon, 06 Dec 2021 08:52 PM (IST)
High Court Order: गंगा किनारे बसे शहरों से प्रदूषण रोकने के लिए बताएं साइट प्लान
गंगा किनारे बसे 27 शहरों के दूषित पानी को गंगा में जाने से रोकने का प्लान बनाया जाना चाहिए।

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गंगा प्रदूषण मामले में राज्य सरकार को गंगा किनारे बसे शहरों पर साइट प्लान पेश करने का निर्देश दिया है। कहा है कि प्रदेश में लगभग एक हजार किलोमीटर लंबी गंगा किनारे बसे 27 शहरों के दूषित गंदे पानी को गंगा में जाने से रोकने का प्लान बनाया जाना चाहिए। तभी प्रदूषण खत्म हो सकेगा। कोर्ट ने कहा यह कोई एडवर्स लिटिगेशन नहीं है। सभी गंगा को स्वच्छ रखना चाहते हैं। जनता की भी उतनी ही भागीदारी है।

वाराणसी व प्रयागराज में गंगा किनारे अवैध निर्माण पर कोर्ट गंभीर

अधिकतम बाढ़ बिंदू से 500 मीटर के भीतर निर्माण पर रोक है। इसके बावजूद अवैध निर्माण होने पर कोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को बेहतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने प्राधिकरण के हलफनामे को यह कहते हुए वापस कर दिया कि लगे फोटोग्राफ स्पष्ट पठनीय नहीं है। वहीं, वाराणसी में गंगा पार नहर निर्माण व काशी विश्वनाथ कारीडोर निर्माण से गंगा घाटों के खतरे तथा कछुआ सेंचुरी को लेकर की गई न्यायमित्र अरुण कुमार गुप्ता की आपत्ति को कोर्ट ने गंभीरता से लिया। कहा कि नेचुरल कछुआ सेंचुरी को शिफ्ट करने की कोशिश समझ से परे है। कानपुर नगर, प्रयागराज व वाराणसी में नालों के बगैर शोधित गंगा में जाने व प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल पर भी विचार किया। याची अधिवक्ता, न्यायमित्र, केंद्र व राज्य सरकार, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जल निगम, नगर निगम, प्रोजेक्ट कार्पोरेशन आदि विपक्षियों से हलफनामे दाखिल किए गए। जिन्हें क्रमवार सेट करके उसे अगली सुनवाई छह जनवरी 2022को पेश करने का निर्देश दिया है। जनहित याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता तथा न्यायमूर्ति अजित कुमार की पूर्णपीठ सुनवाई कर रही है।

इससे पहले कोर्ट ने प्रयागराज में गंगा में गिर रहे नालों की स्थिति पर रिपोर्ट देने के लिए न्यायमित्र अरुण कुमार गुप्ता, याची अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव, मुख्य स्थायी अधिवक्ता जेएन मौर्य, केंद्र सरकार के अधिवक्ता राजेश त्रिपाठी की टीम को निरीक्षण कर रिपोर्ट पेश करने को कहा था। साथ ही आइआइटी कानपुर नगर व आइआइटी काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी रिपोर्ट मांगी थी।

छोड़ा जा रहा नालों का गंदा पानी

अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी व अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता शशांक शेखर सिंह ने कोर्ट को बताया कि प्रयागराज में 74 नालों में से 16 बंद कर दिये गये हैं। 10 अस्थायी तौर पर टैप किये गए हैं। नालों को बायो रेमेडियल से शोधित करके गंगा में जाने दिया जा रहा है। एक नयी एसटीपी निर्माण की मंजूरी दी गई है, जबकि याची अधिवक्ता वीसी श्रीवास्तव का कहना था कि प्रयागराज में 83 नाले हैं। एसटीपी में क्षमता से अधिक पानी जाने व ठीक से काम न करने के कारण गंदा पानी गंगा में छोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि यदि प्लास्टिक बैग बने ही नहीं तो इस्तेमाल कैसे होगा। सरकार की ड्यूटी है रोके। न्यायमित्र एके गुप्ता ने कहा कि प्रयागराज में 48नाले टैप नहीं है। उन्होंने नैनी में गंगा कछार में अवैध प्लाटिंग पर भी आपत्ति करते हुए पीडीए के अधिकारियों को कटघरे में खड़ा किया।

कुंभ व माघ मेला लगना कठिन

कोर्ट को बताया गया कि गंगा के दोनों तरफ से अवैध निर्माण होने से कुंभ व माघ मेला लगाना कठिन होगा। शहर में बाढ़ का खतरा बढ़ेगा। नव प्रयागम् आवासीय योजना पर सवाल खड़ा किया गया। एके गुप्ता ने गंगा में 50 प्रतिशत जल प्रवाह जारी रखने के आदेश है, लेकिन 20 प्रतिशत जल ही गंगा में आ रहा है। वरिष्ठ अधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी ने कहा कि अनुमति लेकर कोरीडोर का निर्माण किया जा रहा है। कोर्ट ने विद्युत शवदाह गृहों की स्थिति पर रिपोर्ट मांगी है।

सर्वे कराने की मांगी अनुमति

पीडीए के वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी ने कहा कि प्राधिकरण को सर्वे कराने की अनुमति दी जाय, जिससे अवैध निर्माण चिह्नित हो सके।

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