यूपी के हेल्थ सिस्टम पर हाई कोर्ट की तल्ख टिप्पणी- कोरोना संक्रमण के इलाज विफलता थर्ड वेव को न्योता

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि गांवों कस्बों में बहुत कम टेस्टिंग हो रही है। कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार के स्वास्थ्य सचिव से कहा है कि वह नौकरशाही के बजाय विशेषज्ञों से इस संबंध में व्यापक रिपोर्ट तैयार करा दाखिल करें।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Wed, 19 May 2021 08:55 AM (IST) Updated:Wed, 19 May 2021 08:56 AM (IST)
यूपी के हेल्थ सिस्टम पर हाई कोर्ट की तल्ख टिप्पणी- कोरोना संक्रमण के इलाज विफलता थर्ड वेव को न्योता
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गांवों और कस्बे में कोरोना संक्रमण फैलने और चिकित्सा सुविधाओं की कमी पर चिंता जताई है।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गांवों और कस्बे में कोरोना संक्रमण फैलने और चिकित्सा सुविधाओं की कमी पर चिंता जताते हुए कहा है कि जैसी व्यवस्था है, उसमें यही कहा जा सकता है कि लोगों का स्वास्थ्य भगवान भरोसे है। यदि संक्रमण का पता लगाकर इलाज करने में हम विफल रहे तो हम तीसरी लहर को निश्चित ही आमंत्रण दे रहे हैं।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा तथा न्यायमूर्ति अजित कुमार ने जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि गांवों कस्बों में बहुत, कम टेस्टिंग हो रही है। कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार के स्वास्थ्य सचिव से कहा है कि वह नौकरशाही के बजाय विशेषज्ञों से इस संबंध में व्यापक रिपोर्ट तैयार करा दाखिल करें।

वैक्सीनेशन पर अदालत का कहना था कि तीन माह के भीतर हर किसी को वैक्सीन लग जाए। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया है कि जो आयकरदाता हैं, वो स्वयं वैक्सीन खरीदें और दूसरों की मदद करें। साथ ही केंद्र सरकार निर्माताओं को ग्रीन सिग्नल दे, ताकि मेडिकल कंपनियां वैक्सीन का उत्पादन शुरू कर सकें। कोर्ट ने कहा कि यह समझ से परे है कि राज्य सरकार वैक्सीन क्यों नहीं बना रही है।

हाई कोर्ट ने निर्देश दिया है कि 20 बेड वाले सभी नर्सिंग होम और अस्पतालों के 40 फीसद बेड आइसीयू रखे जाएं। इसमें 25 फीसद वेंटिलेटर युक्त हों और 25 फीसद हाईफ्लो नोजल कैनुडा तथा 50 फीसद रिजर्व रखे जाएं। यह भी कहा है कि सभी 30 बेड वाले नर्सिंग होम व अस्पतालों में आक्सीजन प्लांट अनिवार्य हो। एसजीपीजीआइ लखनऊ, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ की तर्ज पर प्रयागराज, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर मेडिकल में चार माह में सुविधाएं विकसित की जाय। जमीन व फंड की कोई कमी न रहे।

अदालत ने बिजनौर, बहराइच, बाराबंकी, श्रावस्ती, जौनपुर, मैनपुरी, मऊ, अलीगढ़, एटा, इटावा, फीरोजाबाद व देवरिया के जिला जज को नोडल अधिकारी नियुक्त करने और नोडल अधिकारियों से रिपोर्ट पेश करने के लिए भी कहा है। मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज प्रयागराज के प्राचार्य से सेंट्रलाइज मानीटरिंग सिस्टम में कोविड व आइसीयू का ब्योरा तलब किया है।

बिजनौर में व्यवस्था नाकाफी बताई : बिजनौर जिले की आबादी और वहां के अस्पतालों की स्थिति का उदाहरण लेते हुए कोर्ट कहा है कि जो भी सुविधा है, वह नाकाफी है। 32 लाख की आबादी पर 10 हॉस्पिटल हैं। अभी तक सरकार ने 1200 सौ टेस्ट प्रतिदिन किए हैं, जो बहुत ही कम है। कम से कम चार या पांच हजार टेस्ट प्रतिदिन होने चाहिए।

सरकार ने बताया, कमेटी हुई गठित : राज्य सरकार व केंद्र सरकार ने अनुपालन रिपोर्ट दाखिल की। राज्य सरकार ने बताया कि तीन सदस्यीय पेन्डेमिक लोक शिकायत कमेटी का गठन कर दिया गया है। कोर्ट ने कहा कमेटी संबंधित जिले के नोडल अधिकारियों से चर्चा कर 24 से 48 घंटे के भीतर शिकायतों का निराकरण करें।

मरीज का अस्पताल से लापता होना घोर लापरवाही : मेरठ मेडिकल कालेज से संतोष कुमार (64) के लापता होने के मामले को कोर्ट ने घोर लापरवाही माना है। इस संबंध में दाखिल रिपोर्ट में बताया गया कि मरीज को भर्ती किया गया था, लेकिन पहचान नहीं हो सकी थी। इलाज के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। लावारिस के रूप में लाश का दाह संस्कार कर दिया गया। सरकार ने बताया कि दोषी पैरामेडिकल स्टाफ और डॉक्टर का एक साल का इन्क्रीमेंट रोक दिया गया है। कोर्ट ने अपर मुख्य सचिव (चिकित्सा स्वास्थ्य) को कड़ी कार्रवाई का निर्देश देते हुए हलफनामा मांगा है। कहा है कि जवाबदेही तय कर कड़ी कार्रवाई की जाए। मुख्य सचिव से इस बात का हलफनामा मांगा है कि संतोष के आश्रितों को सरकार कैसे मुआवजा देगी। अगली सुनवाई 22 मई को होगी।

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