इनके जज्बे को सलाम, फेफड़े दे गए जवाब पर नहीं मानी हार, दास्तां ट्रिपलआइटी की डॉ. कृष्णा मिश्रा की
वह डायविटीज की भी मरीज हैं। निमोनिया भी हुआ था। इसके बाद 19 मार्च को कोरोना वैक्सीन की पहली खुराक लगवाई। 30 मार्च को अचानक बुखार हो गया सूखी खांसी भी आने लगी। जांच कराने पर कोविड पॉजिटिव निकलीं। सीटी वैल्यू 13 थी। इसका अर्थ यह कि संक्रमण गहरा है।
प्रयागराज, जेएनएन। किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए धैर्य और साहस जरूरी है। सोंच सकारात्मक बनी रहे तो लड़ाई और भी आसान हो जाती है। इसका उदाहरण हैं, 83 वर्षीय ट्रिपलआइटी की प्रोफेसर डॉ. कृष्णा मिश्रा। वह करीब 20 दिनों तक कोरोना संक्रमण से जूझीं। उनके फेफड़े गंभीर रूप से संक्रमित हुए फिर भी उन्होंने कोरोना को मात दे दी।
अकेले रहती हैं और मरीज हैं मधुमेह की मगर नहीं मानी हार
कहती हैं कि प्रयागराज में अकेले रहती हैं। वह डायविटीज की भी मरीज हैं। उन्हें निमोनिया भी हुआ था। इसके बाद 19 मार्च को कोरोना वैक्सीन की पहली खुराक लगवाई। 30 मार्च को अचानक बुखार हो गया, सूखी खांसी भी आने लगी। जांच कराने पर कोविड पॉजिटिव निकलीं। सीटी वैल्यू 13 थी। इसका अर्थ यह कि संक्रमण गहरा है। तुरंत टेलीफोन से कई डॉक्टरों से राय ली। पीजीआई के डॉक्टर से भी संपर्क किया। वहां बेड मिल जाने का आश्वासन मिला, बावजूद इसके कुछ अन्य डॉक्टरों से राय ली। शांत दिमाग से सोंचा कि क्या ऐसा है जो अस्पताल में हो सकता है घर पर नहीं। मन में विचार आया कि घर पर भी सभी चीजें हो सकती हैं। बस कोई देखभाल करने वाला मिल जाए। निजी ड्राइवर इरफान व उनकी पत्नी ने पूरी मदद का आश्वासन दिया। उन्होंने ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन सिलिंडर सहित अन्य जरूरी संसाधन जुटा लिया। डॉक्टर की बताई दवाएं लेने के साथ इस दौरान मैने गहरी श्वांस लेना और छोडऩे का भी खूब अभ्यास किया। इससे ऑक्सीजन का स्तर जो गिर रहा था वह ठीक हो गया। भाप भी लेते रहे। करीब बीस दिन में ही सभी जांच रिपोर्ट दोबारा सामान्य हो गई। इस दौरान हमेशा सकारात्मक बनी रही। ऐसे तरल पदार्थ भी लिए जिससे ताकत मिले। इन सभी चीजों का लाभ मिला। ड्राइवर इरफान व उनकी पत्नी ने भी मेरा खूब ध्यान रखा। इन सभी चीजों की बदौलत मैने कोरोना को मात दे दी।