ब्रिटिश हुकूमत से बगावत का साक्षी है प्रतापगढ़ का गौरा स्टेशन, हो रही अनदेखी

स्वतंत्रता आंदोलन में शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी से गौरा क्षेत्र की धरती भी खौल उठी थी। जगह-जगह ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बिगुल बजा था। फिर क्या था यहां क्रांतिकारियों ने ग्रामीणों को साथ लेकर केरोसिन छिड़ककर गौरा रेलवे स्टेशन को जला दिया।

By Edited By: Publish:Tue, 20 Oct 2020 05:26 PM (IST) Updated:Tue, 20 Oct 2020 05:26 PM (IST)
ब्रिटिश हुकूमत से बगावत का साक्षी है प्रतापगढ़ का गौरा स्टेशन, हो रही अनदेखी
क्रांतिकारियों ने ग्रामीणों को साथ लेकर केरोसिन छिड़ककर गौरा रेलवे स्टेशन को जला दिया।

प्रतापगढ़, जेएनएन। देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने में अनगिनत देश भक्तों ने बलिदान दिया। आजादी की इस लड़ाई में प्रतापगढ़ के भी स्वतंत्रता सेनानियों ने भी भरपूर योगदान व सहयोग दिया। यहां के आंदोलनकारी देश भक्तों ने अंग्रेजों के सामने सीना तानकर खुली बगावत करते हुए अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया था। उनकी बहादुरी के आगे भी अंग्रेज भी कांप गए थे। गांधी जी ने 1942 में आंदोलन को निर्णायक दिशा की ओर मोड़ा तो यहां भी बगावत की आग तेज हो गई।

फूंक दिया था गौरा रेलवे स्टेशन

तब क्रांतिकारियों ने प्रतापगढ़ के रानीगंज तहसील क्षेत्र के गौरा रेलवे स्टेशन को फूंक दिया था और रसद से भरी मालगाड़ी लूट ली थी। लोग अब भी स्वतंत्रता सेनानियों के उस कांड की चर्चा करते हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी से गौरा क्षेत्र की धरती भी खौल उठी थी। जगह-जगह ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बिगुल बजा था। फिर क्या था यहां क्रांतिकारियों ने ग्रामीणों को साथ लेकर केरोसिन छिड़ककर गौरा रेलवे स्टेशन को जला दिया। इस घटना की जानकारी पाने पर अंग्रेजी सरकार हिल गई थी। मौके पर दो घंटे बाद पहुंची पुलिस को वहां कोई न मिला। इस पर बौखलाई अंग्रेजी फौज ने घर-घर तलाशी ली। लोगों पर अत्याचार किए।

क्रांति स्थल की क्यूं हो रही अनदेखी

इस विरोध प्रदर्शन के नेतृत्वकर्ता भोजेमऊ निवासी राज मंगल ¨सह व पंडरी निवासी अंबिका सिंह के साथ ही गांव वालों की तलाश में छापे मारे। बाद में देश आजाद होने पर बेहदौल के राम अधार यादव, रहेटुआ परस रामपुर गांव के सीताराम मौर्य को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा मिला, बाकी गुमनाम होकर रह गए। उन्हें व उनके परिवार को अलग से पहचान भी नसीब नहीं हुई। इतना सब गौरव व इतिहास समेटे हुए गौरा रेलवे स्टेशन की काया सरकार न बदल सकी। इसे आजादी के संघर्ष के स्थल के तौर पर विकसित नहीं किया जा सका। यह अब भी असाधारण कहानी का साधारण स्टेशन ही है। लोग चाहते हैं कि इस स्थल का कायाकल्प हो। रेलवे इसे सजाए व संवारे। इससे दूर-दूर से लोग आजादी के दीवानों की यादों को जीवंत करने आएंगे, जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

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