नए सिरे से दोबारा हुई जांच, कातिलों तक नहीं पहुंची आंच

वर्ष 2017 में डॉ. एके बंसल की हत्या के बाद विवेचना धीरे-धीरे शिथिल पड़ गई। पुलिस से लेकर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) तक के जतन नाकाफी साबित हुए। 2019 में डॉ. बंसल की पत्नी वंदना बंसल ने हत्याकांड की जांच सीबीआइ से कराने की मांग की। शासन ने आख्या मांगी तो पुलिस फिर सक्रिय हुई। नए सिरे से जांच शुरू हुई लेकिन आंच कातिलों तक नहीं पहुंच सकी।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 14 Jan 2021 10:42 PM (IST) Updated:Thu, 14 Jan 2021 10:42 PM (IST)
नए सिरे से दोबारा हुई जांच, कातिलों तक नहीं पहुंची आंच
नए सिरे से दोबारा हुई जांच, कातिलों तक नहीं पहुंची आंच

जागरण संवाददाता, प्रयागराज : वर्ष 2017 में डॉ. एके बंसल की हत्या के बाद विवेचना धीरे-धीरे शिथिल पड़ गई। पुलिस से लेकर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) तक के जतन नाकाफी साबित हुए। 2019 में डॉ. बंसल की पत्नी वंदना बंसल ने हत्याकांड की जांच सीबीआइ से कराने की मांग की। शासन ने आख्या मांगी तो पुलिस फिर सक्रिय हुई। नए सिरे से जांच शुरू हुई, लेकिन आंच कातिलों तक नहीं पहुंच सकी।

नए सिरे से जांच की शुरुआत करने के लिए कीडगंज पुलिस पहले अस्पताल पहुंची और उस चश्मदीद गार्ड से पूछताछ करना चाहा, जिसने शूटर को भागते हुए देखा था। गार्ड नवीननाथ तिवारी घटना वाले दिन अस्पताल में ड्यूटी पर थे। मगर अस्पताल जाने पर पता चला कि वे नौकरी छोड़कर चले गए हैं। तब अस्पताल प्रबंधन से उन्हें बुलाने को कहा गया, लेकिन नहीं आए जिससे बयान नहीं दर्ज हो सका। अलबत्ता पुलिस ने अस्पताल के कर्मचारियों समेत अन्य से पूछताछ करते हुए कुछ संदिग्ध बदमाशों को उठाया मगर विवेचना आगे चलकर फिर ठप पड़ गई। हालांकि हत्या के वक्त गार्ड ने पुलिस को बताया कि एक लंबा युवक जो मफलर पहने था, उसने ही चेंबर में घुसकर फायरिग की थी। 50 हजार से ज्यादा नंबर खंगाले

जीवन ज्योति अस्पताल के निदेशक व प्रसिद्ध सर्जन डॉ. एके बंसल की हत्या तब हुई थी, जब शहर में माघ मेले की तैयारी चल रही थी। रामबाग स्थित अस्पताल के बगल में रेलवे लाइन है। उधर से मुंबई रूट होने के कारण रोजाना कई ट्रेन गुजरती हैं। सर्विलांस टीम ने संदिग्ध नंबरों की पड़ताल शुरू की तो पुलिसर्किमयों को पसीना आ गया। अलग-अलग प्रदेश और शहर के रहने वाले मुसाफिरों के नंबर भी सामने आ गए, जिसमें कुछ को संदिग्ध माना गया। करीब 50 हजार से ज्यादा नंबरों की लोकेशन खंगाली गई और एक महीने बाद तीन नंबर मिले, जिनके तार हत्याकांड से जुड़ रहे थे। उन नंबरों के आधार पर पुलिस ने जांच का एंगल बदला और नए सिरे से विवेचना में नंबरों के जरिए भी पड़ताल शुरू हुई, लेकिन नतीजा सिफर रहा। नहीं खुल सका कार का रहस्य

हत्याकांड में लाल रंग की एक कार का रहस्य काफी दिनों तक बरकरार रहा। पुलिस का दावा था कि अस्पताल के पीछे खड़ी कार से ही शूटर भागे थे। पूछताछ में पता चला कि वह कार अस्पताल के ही एक कर्मचारी की है तो उसकी भूमिका संदिग्ध हो गई। उसे भी उठाकर एसटीएफ और क्राइम ब्रांच ने घंटों पूछताछ की। इसी बीच पुलिस के पास अस्पताल प्रबंधक से जुड़े एक शख्स ने कर्मचारी को परेशान न करने का दबाव बनाया था। लखनऊ से भी उसकी सिफारिश में फोन पुलिस तक पहुंचा था। काफी छानबीन के बाद भी यह पूरी तरह से साफ नहीं हो सका कि कार में सवार होने वाले सही व्यक्ति कौन थे?

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