अकबर के किले में जाती थीं मालगाड़ियां, लोड होते थे गोला-बारूद, चीन और पाक से जंग में सीमा तक हुई थी सप्लाई

अकबर के किले के सामने सेना के परेड मैदान में आज भले ही रेलवे की पटरियां दिखाई नहीं देतीं लेकिन एक समय था जब परेड में रेलवे का नेटवर्क था। बकायदा क्रासिंग बनी हुई थीं। दरअसल किले में आयुद्ध भंडार हुआ करता था जहां कच्चा माल लेकर मालगाड़ियां आती थीं

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Tue, 02 Mar 2021 03:50 PM (IST) Updated:Tue, 02 Mar 2021 03:50 PM (IST)
अकबर के किले में जाती थीं मालगाड़ियां, लोड होते थे गोला-बारूद, चीन और पाक से जंग में सीमा तक हुई थी सप्लाई
किले में आयुद्ध भंडार हुआ करता था जहां कच्चा माल लेकर मालगाडिय़ां आती थीं

प्रयागराज, जेएनएन। अकबर के किले के सामने सेना के परेड मैदान में आज भले ही रेलवे की पटरियां दिखाई नहीं देतीं लेकिन एक समय था जब परेड में रेलवे का नेटवर्क था। बकायदा क्रासिंग बनी हुई थीं। दरअसल किले में आयुद्ध भंडार हुआ करता था जहां कच्चा माल लेकर मालगाडिय़ां आती थीं और बना हुआ आयुद्ध लोड करके यहां से जाती थीं। लोडिंग-अनलोडिंग का यह काम तो बहुत पहले ही बंद हो गया था किंतु ट्रैक और रेलवे फाटक दस साल पूर्व तक कायम थे।  

रामबाग स्टेशन से किले तक बिछाई गई थी दोहरी लाइन
उत्तर मध्य रेलवे के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी राकेश श्रीवास्तव बताते हैं कि रामबाग (अब प्रयागराज सिटी) रेलवे स्टेशन से अकबर के किले तक दो पटरियां बिछाई गई थीं जिसमें एक अप व दूसरी डाउन लाइन थी। किले के भीतर तक जाने वाली इन लाइनों से मालगाड़ियों का संचालन किया जाता था जिसमें किले के आयुद्ध गोदामों से माल लोडकर देश भर में सैन्य छावनियों तक पहुंचाया जाता था। मालगाड़ियों के रेक खड़े करने के लिए रामबाग के पास शेड भी बनाए गए थे। पीछे पटरियों का सिर इलाहाबाद जंक्शन तक जाता था।

पाक व चीन से युद्ध के दौरान किले से लोड होते थे आयुद्ध
आरके श्रीवास्तव बताते हैं कि पाक और चीन से 1965 व 1971 में हुए युद्ध के दौरान किले से भारी मात्रा में युद्ध सामग्री और ट्रकें, तोप को गुड्स ट्रेनों से लोड कर सीमा के करीब तक पहुंचाया जाता था। उस समय काफी संख्या में मालगाड़ियां किले में जाती थीं। बताते हैं कि उस समय किले में आयुद्ध कारखाना होता था जहां युद्धक सामग्री बनाकर भंडारण भी किया जाता था। सेना के ट्रकों की मरम्मत करने का कारखाना भी किले में था। जरूरत पर यहां से इनका मूवमेंट देशभर में होता था जिसमें मालगाड़ियां का अहम रोल हुआ करता था। समय के साथ रेलवे ट्रैक गैर उपयोगी हो गया।

परेड में थीं पांच क्रासिंग, होती थी स्नानार्थियों को दिक्कत
किले के भीतर जाने वाली दोनों रेल पटरियों पर परेड में चार क्रासिंग बनी थीं जिसमें से दो क्रासिंग अलोपीबाग स्थित फोर्ट रोड चौराहे से किला के समीप के चौराहे के बीच में और दो किला चौराहे से त्रिवेणी रोड पर थीं। एक क्रासिंग बैरहना से कीडगंज रोड पर थी। पटरियां और क्रासिंग (रेलवे फाटक) 2007-8 तक थीं। उपयोग में न होने के कारण 2010-11 में पटरियों और रेलवे फाटकों को हटा लिया गया। 70-80 के दशक मेें पटरियों का काफी उपयोग था, तब यात्रियों को सुरक्षा के लिए क्रासिंग बंद करनी पड़ती थी। कई बार देर तक क्रासिंग बंद रहती थीं जो स्नानार्थियों के लिए दिक्कत का सबब होती थीं।  

निगरानी के लिए किले में बनाए गए थे कई वॉच टावर
कर्मचारी नेता अजय भारती बताते हैं कि मालगाडिय़ों की निगरानी के लिए किले में बकायदा वॉच टावर बने थे जहां पर सेना के जवान तैनात होते थे। मालगाड़ियों को अंदर करने के बाद किले के दरवाजे बंद कर दिए जाते थे। दरवाजों के कुछ भीतर ही गुड्स शेड और गोदाम भी बनाए गए थे जहां पर माल की लोडिंग और अनलोडिंग की जाती थी। कई बार मालगाड़ियां किसी वजह से बाहर रुक जाती थीं तो सेना के हथियारबंद जवान उन्हें कवर किए रहते थे। वॉच टावरों पर सैनिक हमेशा तैनात रहते थे। तब किला और सड़क के बीच में कंटीले तार लगाए गए थे। बाद में वहां पर दीवार बना दी गईं।

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