Freedom Movement of India: केएन काटजू ने प्रयागराज में Azad Hind Fauj के अधिकारियों के मुकदमे की पैरवी की थी
अधिवक्ता विजय शंकर मिश्र बताते हैं कि डॉ. कैलाशनाथ काटजू ने प्रयागराज में आजाद हिंद फौज के अधिकारियों का केस लड़ा था। उन्होंने शाहनवाज ढिल्लो तथा सहगल पर चले मुकदमे मेरठ षडयंत्र प्रकरण बिलसिया प्रकरण जैसे पेचीदा और महत्वपूर्ण मुकदमों की पैरवी की।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले क्रांतिवीरों के मुकदमे की पैरवी के लिए एक से एक बढ़कर वकील थे। इन्हीं में से एक थे कैलाशनाथ काटजू। वे 1914 में कानपुर से प्रयागराज आए थे। उन्हें प्रयागराज लाने तथा मदद करने वाले डॉ. तेजबहादुर सप्रू थे। उनके अधीन ही उन्होंने वकालत शुरू की थी। उस समय हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सर हेनरी रिचर्डस थे। काटजू ने आजाद हिंद फौज के अधिकारियों के मुकदमे की पैरवी की थी।
इलाहाबाद विश्वविद्याल से मिली थी डाक्टर आफ लॉ की उपाधि
इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपर स्थाई महाधिवक्ता रहे विजयशंकर मिश्र बताते हैं कि डॉ. कैलाशनाथ काटजू को 1919 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डाक्टर आफ लॉ की उपाधि मिली थी। इसके पूर्व यह उपाधि केवल तीन लोगों सतीश चंद बनजी (1902) , सर तेजबहादुर सप्रू (1903) तथा सुरेंद्रनाथ सेन (1912) को मिली थी। हिंंदू हास्टल में अपने निवास के बारे में अपने संस्मरण में डॉ. काटजू ने लिखा है कि जब हिंदू छात्रावास बन रहा था तो उस समय तमाम विद्यार्थी छात्रावास परिसर में एक बंगले में रह रहे थे। जब हिंदू छात्रावास बन गया तो एक दिन प्रात: महामना मदन मोहन मालवीय आए और कहा कि आप लोग चलकर छात्रावास में रहिए। हम 62 छात्र नवनिर्मित हिंदू छात्रावास में गए और मनपंसद कमरे में रहने लगे। मालवीय जी प्राय: छात्रावास में आकर छात्रों से पूछते थे, उन्हें कोई परेशानी तो नहीं है।
मेरठ षडयंत्र प्रकरण में भी की थी पैरवी
अधिवक्ता विजय शंकर मिश्र बताते हैं कि डॉ. काटजू ने आजाद हिंद फौज के अधिकारी शाहनवाज, ढिल्लो तथा सहगल पर चले मुकदमे, मेरठ षडयंत्र प्रकरण, बिलसिया प्रकरण जैसे पेचीदा और महत्वपूर्ण मुकदमों की पैरवी की। मेरठ षडयंत्र प्रकरण की सुनवाई में न्यायमूर्ति सुलेमान तथा न्यायमूर्ति यंग ने एक कीर्तिमान स्थापित किया था। इसमें मेरठ षडयंत्र प्रकरण के अभियुक्तों की ओर से पैरवी डॉ. काटजू ने की थी। उन्होंने पांच दिनों में अपनी बहस पूरी की। अभियोजन पक्ष से मुंबई के प्रख्यात बैरिस्टर मिस्टर कैप थे। उन्होंने दो दिन का समय लिया। सुलेमान तथा जस्टिस यंग ने आठवें दिन लगातार छह घंटे फैसला लिखकर एक कीर्तिमान कर दिया।
जेल से छूटकर आने पर घर पर लगती थी मुवक्किलों की भीड़
विजय शंकर मिश्र बताते हैं कि डॉ. काटजू जब जेल से छूटकर आते तो उनके घर पर मुवक्किलों की भीड़ लग जाती और कुछ दिनों में ही उनकी प्रैक्टिस पहले जैसी हो जाती थी। डॉ. काटजू अपने संस्मरणों की पुस्तक द डेज आई रिमेम्बर में अपने समकालीन वकीलों, न्यायधीशों तथा पैरवी किए मुकदमों के बारे में विस्तार से लिखा है।