Freedom Fighters : गवां दी जान पर गिरने नहीं दिया तिरंगा

Freedom Fighters गोली लगने के बाद भी उन्होंने तिरंगे को नहीं छोड़ा था। वह रीवा के राजा लाल कुंवर प्रताप के इकलौते पुत्र थे।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 06:53 PM (IST) Updated:Thu, 13 Aug 2020 08:09 AM (IST)
Freedom Fighters : गवां दी जान पर गिरने नहीं दिया तिरंगा
Freedom Fighters : गवां दी जान पर गिरने नहीं दिया तिरंगा

 प्रयागराज,जेएनएन।  संगमनगरी में देश की आजादी के लिए दीवानों के बलिदान के कई किस्से हैं। ऐसे ही बलिदानियों में हैैं इविवि छात्र लाल पद्मधर और अहियापुर निवासी 14 वर्षीय किशोर रमेश दत्त मालवीय। दोनों एक ही दिन वीरगति को प्राप्त हुए थे। शहर हर साल 12 अगस्त को इन बलिदानियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता है।

गोली लगने के बाद भी तिरंगे को हाथ से नहीं छोड़ा था

वर्ष 1942 में गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल फूंका था। आठ अगस्त से ही प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) में देशभक्ति की भावना हिलोर लेने लगी थी। चौथे दिन यानी 12 अगस्त 1942 को जगह जगह लोग तिरंगे संग सड़क पर उतर आए। अंग्रेजों भारत छोड़ो के गगनभेदी नारे लगने लगे। एक जुलूस इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सामने से निकाला गया। इसमें लाल पद्मधर भी थे। मनमोहन पार्क के पास प्रदर्शनकारियों को ब्रिटिश हुकूमत के सिपाहियों ने चेतावनी दी कि अगर आगे बढ़ोगे तो गोलियों से भून दिए जाओगे। इस पर लाल पद्मधर ने कहा -मारो, देखते हैं कि कितनी गोलियां फिरंगियों की बंदूकों में हैं..। बस, एक गोली लाल पद्मधर के सीने का चीरते हुए निकल गई। घायल पद्मधर को उनके साथी पार्क के पास स्थित पीपल पेड़ के नीचे ले गए। यहां उन्होंने अंतिम सांस ली। कहा जाता है कि गोली लगने के बाद भी उन्होंने तिरंगे को नहीं छोड़ा था। वह रीवा के राजा लाल कुंवर प्रताप के इकलौते पुत्र थे।

 आजादी इतनी सस्‍ते में नहीं मिलेगी

इविवि में मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने इस घटना से कुछ दिन पहले लाल पद्मधर और हेमवतीनंदन बहुगुणा को बुलाया था। कहा- आजादी इतनी सस्ते में नहीं मिलेगी, लगता है इसके लिए खून भी बहेगा..। उनकी बात से लाल पद्मधर जोश में आने के साथ ही जुनूनी हो गए थे।

अंग्रेजी फौज के सामने तिरंगा लहराते हुए लेकर निकले थे रमेश दत्‍त मालवीय

लाल पद्मधर की तरह अदम्य साहस का परिचय रमेश दत्त मालवीय (तिवारी) ने भी 12 अगस्त 1942 को दिया था। इस दिन लोकनाथ चौराहे के पास अंग्रेजी हुकूमत की बलूच रेजीमेंट के जवान तैनात थे। तिरंगे संग निकले जुलूस में आगे चल रहे रमेश दत्त मालवीय की झड़प सैनिकों से हुई तो उन्होंने ईंट उठाकर एक सिपाही के सिर पर दे मारी। सैनिकों ने उनके सीने पर गोली मार दी और वह वही वीरगति को प्राप्त हो गए।

महामना से प्रभावित होकर तिवारी की जगह लिखने लगे थे मालवीय

रमेश दत्त मालवीय के भतीजे वैद्य सुभाष तिवारी बताते हैं कि पांच जुलाई 1928 को अहियापुर मोहल्ले (मालवीय नगर) में रमेश दत्त का जन्म हुआ था। पिता वैद्य भानुदत्त तिवारी का पं. मदन मोहन मालवीय से करीबी संबंध था। महामना से ही प्रभावित होकर रमेशदत्त ने तिवारी की जगह मालवीय लिखना शुरू कर दिया। उनके नाना पं. राम अधार वाजपेयी भी स्वतंत्रता के आंदोलन में अग्रणी भूमिका में थे। इन सब बातों का असर बचपन से ही रमेशदत्त के मनो मस्तिष्क पर पड़ा और वह आजादी के दीवाने हो गए। 

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