Allahabad University के पुरा छात्र शहीद लाल पद्मधर से जुड़े दस्तावेजों की तलाश में आए परिवारी जन
शहीद लाल पद्मधर से जुड़े दस्तावेजों की तलाश में सोमवार को उनके भतीजे बिग्रेडियर भूपेंद्र सिंह अपने छोटे भाई बिग्रेडियर देवेंद्र सिंह और बहन प्रेमलता ठाकुर तथा भांजी सोलन ठाकुर के साथ प्रयागराज पहुंचे। सेना से रिटायर होने के बाद वह लाल पद्मधर की जीवनी लिख रहे हैं
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरा छात्र शहीद लाल पद्मधर से जुड़े दस्तावेजों की तलाश में सोमवार को उनके भतीजे बिग्रेडियर भूपेंद्र सिंह अपने छोटे भाई बिग्रेडियर देवेंद्र सिंह और बहन प्रेमलता ठाकुर तथा भांजी सोलन ठाकुर के साथ प्रयागराज पहुंचे। सेना से रिटायर होने के बाद वह लाल पद्मधर की जीवनी पर पुस्तक लिख रहे हैं। इसके लिए विश्वविद्यालय के पुरा छात्र विनोद चंद्र दुबे की मदद ली है। अगले साल उनके जन्मतिथि पर यह पुस्तक पाठकों के बीच में उतारी जाएगी।
सतना से दस्तावेजों को जुटाने आए परिवार के लोग
मूलरूप से मध्यप्रदेश के सतना स्थित कृपालपुर गांव निवासी बिग्रेडियर भूपेंद्र ने बताया कि उनके पिता शंखधर चार भाई थे। सबसे बड़े लाल गदाधर सिंह फिर चक्रधर, शंखधर और सबसे छोटे लाल पद्मधर सिंह थे। लाल पद्मधर बीएससी की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय चले आए। यहां पढ़ाई के दौरान वह आजादी की लड़ाई से जुड़ गए। तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष कमलेश मल और यदुवीर सिंह के नेतृत्व में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने जुलूस निकाला था। 11 अगस्त को छात्रसंघ भवन पर छात्रों की विशाल सभा आयोजित की गई थी। 12 अगस्त को छात्रों का समूह कलक्ट्रेट पर तिरंगा लहराने के लिए जुटा। इन छात्रों में लाल पद्मधर भी शामिल थे, जिन्होंने तिरंगे को न झुकने देने की कसम खाई थी। तत्कालीन डीएसपी आगा ने लक्ष्मी टाकीज चौराहे पर छात्रों को आगे बढ़ने से रोका, लेकिन छात्र माने नहीं। तभी कलक्टर डिक्सन ने गोलियां चलाने का आदेश दिया। रणनीति के तहत छात्र लेट गए लेकिन तिरंगा कैसे लेटता। तिरंगे को लेकर पद्मधर खड़े रहे और गोलियां उन्हीं चीरती हुई निकल गईं और वह शहीद हो गए।
पार्थिव शरीर को इवि के अंदर ले जाने की नहीं मिली थी अनुमति
छात्र उनके पार्थिव शरीर को लेकर छात्रसंघ भवन पहुंचे। आगा भी छात्रसंघ भवन पहुंच गए। विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए उन्होंने प्राक्टर से अनुमति मांगी। अनुमति नहीं मिली तो तत्कालीन कुलपति डाक्टर अमर नाथ झा के पास गए। डाक्टर झा ने कहा यदि प्राक्टर ने अनुमति नहीं दी तो मैं भी नहीं दूंंगा। इसके बाद छात्रों ने डिक्सन का प्रतीकात्मक शव का जुलूस निकाला था। नारा देते रहे... डिक्सन का जनाजा है जरा झूम के निकले...। वह इन सभी वाकयों को किताब की शक्ल देना चाहते हैं। उन्होंने आश्चर्य जताया कि आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले छात्रसंघ का अस्तित्व ही खत्म कर दिया गया है।