घर की जिम्मेदारी पर भारी पड़ी महामारी

घर का खर्च और बहन की शादी की जिम्मेदारी कंधे पर है। ऐसे में कमाई का कोई जरिया भी न होने पर मेहनत की एक कश्ती पर सवार दो दोस्त पटना से निकले थे। ट्रेन में सवार होकर सीधे प्रयागराज पहुंचे। यहा काम की तलाश में हफ्तेभर भटकते रहे। जेब में रुपये भी खत्म हो गए थे। इस बीच उन्हें एक फल के गोदाम में देखरेख का काम मिल गया। लेकिन बदकिस्मती ने यहा भी साथ नहीं छोड़ा चार माह में ही रोजगार छिन गया। दोनों घर लौट गए।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 13 May 2021 06:54 PM (IST) Updated:Thu, 13 May 2021 06:54 PM (IST)
घर की जिम्मेदारी पर भारी पड़ी महामारी
घर की जिम्मेदारी पर भारी पड़ी महामारी

जागरण संवाददाता, प्रयागराज : घर का खर्च और बहन की शादी की जिम्मेदारी कंधे पर है। ऐसे में कमाई का कोई जरिया भी न होने पर मेहनत की एक कश्ती पर सवार दो दोस्त पटना से निकले थे। ट्रेन में सवार होकर सीधे प्रयागराज पहुंचे। यहा काम की तलाश में हफ्तेभर भटकते रहे। जेब में रुपये भी खत्म हो गए थे। इस बीच उन्हें एक फल के गोदाम में देखरेख का काम मिल गया। लेकिन, बदकिस्मती ने यहा भी साथ नहीं छोड़ा चार माह में ही रोजगार छिन गया। दोनों घर लौट गए।

दरअसल, पटना के रहने वाले सोनू कुमार और दिलो कुमार दोस्त हैं। सपने पूरे करने के लिए वे फरवरी में प्रयागराज आए थे। उन्हें काम भी मिल गया। लेकिन, कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमण बढ़ा तो कामकाज ठप हो गए। ऐसे में फल गोदाम के मालिक ने हिसाब कर कहा कि अभी घर जाओ। हालात सुधरने के बाद आना। जंक्शन पर ट्रेन के इंतजार में बैठे सोनू बताते हैं कि फल के गोदाम में देखरेख करने का काम मिला था और 400 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी मिलती थी। बड़ी बहन की शादी के लिए रुपये जुटाने हैं। इसलिए घर से निकले थे। लेकिन, काम बंद हो गया। दिलो कुमार ने बताया कि बड़ा बेटा होने के नाते उनके कंधों पर भी घर की जिम्मेदारी है। खेत नहीं है इसलिए माता-पिता गाव के एक बड़े किसान की खेती का काम देखते हैं। लेकिन उतने में गुजारा नहीं हो पाता था। इसलिए कमाई के लिए रोजगार तलाशते हुए यहा पहुंचे थे। अब लौटना पड़ रहा है।

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