Durga Puja 2021: चतुरपुर में दुर्गा, लक्ष्मी, गणेश की मूर्तियां संवारने में जुटे हैं पश्चिम बंगाल के मू्र्तिकार

बाबूगंज बाजार स्थित चतुरपुर मोहल्ले में दुर्गा लक्ष्मी गणेश तथा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां बड़े पैमाने पर बनाई जाती हैं। मूर्ति कलाकार यहां दिन रात मूर्तियों को रंग रूप देने के लिए जुटे रहते हैं तब जाकर नवरात्र पर बड़े पैमाने पर मूर्तियों की मांग पूरा कर पाते हैं ।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Sun, 03 Oct 2021 04:57 PM (IST) Updated:Sun, 03 Oct 2021 04:57 PM (IST)
Durga Puja 2021: चतुरपुर में दुर्गा, लक्ष्मी, गणेश की मूर्तियां संवारने में जुटे हैं पश्चिम बंगाल के मू्र्तिकार
कलाकार मूर्तियों को रंग और आकार देने के लिए दिन-रात एक किए हैं ।

प्रयागराज, जागरण संवाददाता।  नवरात्र के दिनों में प्रयागराज मंडल के जिले में लगने वाले दुर्गा पंडालों में इस बार प्रतापगढ़ के चतुरपुर की मूर्तियां आकर्षण का केंद्र होंगी। मूर्तियों के ढांचे में लगने वाला सामान जहां देसी होगा, वहीं मूर्तियों को सजाने एवं संवारने का मटेरियल कोलकाता की मंडियों का है। नवरात्र में अब जब चंद दिन ही हैं। मूर्तियों को तैयार करने वाले कलाकार मूर्तियों को रंग और आकार देने के लिए दिन-रात एक किए हैं ।

रात-दिन लगे हैं मूर्तियों को संवारने में कारीगर

नवरात्र के दिनों में मां दुर्गा की विभिन्न रूपों की पूजा की धूम मची रहती है। छोटे बड़े सभी बाजारों में दुर्गा पूजा के लिए बड़े-बड़े पंडाल लगाए जाते हैं। इनमें महंगी से महंगी और अच्छी से अच्छी देवी देवताओं की भी मूर्तियां लगाई जाती हैं। दुर्गा पूजा समिति के सदस्य भी पंडालों में मां दुर्गा की अच्छी से अच्छी मूर्ति लगाने के लिए पहले ही कलाकारों के संपर्क में रहते हैं। इलाके के बाबूगंज बाजार स्थित चतुरपुर मोहल्ले में भी दुर्गा, लक्ष्मी, गणेश तथा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां बड़े पैमाने पर बनाई जाती हैं। मूर्ति कलाकार यहां दिन रात मूर्तियों को रंग और रूप देने के लिए जुटे रहते हैं, तब जाकर नवरात्र पर बड़े पैमाने पर मूर्तियों की मांग को पूरा कर पाते हैं ।

पश्चिम बंगाल से भी आए हैं मूर्तिकार

मूर्ति कलाकार आरपी सिंह की देखरेख में तैयार होने वाली इन मूर्तियों को रंग रूप देने के लिए पश्चिम बंगाल और सुल्तानपुर से मूर्ति कलाकार बुलाए गए हैं । वे मूर्तियों को सुंदर रूप और रंग दे रहे हैं। इन्हीं में से एक बंगाली कलाकार असीम कर्मकार बताते हैं कि वह नवरात्र बीतने के बाद अपने घर पश्चिम बंगाल चले जाते हैं और अप्रैल माह में ही पुनः यहां मूर्तियों को तैयार करने के लिए आ जाते हैं। शुरुआत में पहले मिट्टी बांस और धान की भूसी से मूर्तियों के ढांचे को तैयार किया जाता है। मई जून के महीने में उसे भली भांति सुखाया जाता है। उसके बाद उसमें रंग भरा जाता है। फिर देवी जी का श्रृंगार किया जाता है।

कोलकाता से लाया जाता है सजावट का सामान

सुल्तानपुर के कलाकार अर्जुन कुमार ने बताया कि देवी के ढांचे को तैयार करने के लिए सामान जहां स्थानीय स्तर पर ही तैयार कर लिया जाता है, वहीं उनके सजावट और श्रृंगार का पूरा सामान कोलकाता की मंडियों से मंगाया जाता है । उन्होंने बताया कि देवी के सजाने और संवारने के लिए प्रयुक्त होने वाले साजो सामान की कोलकाता में बड़ी-बड़ी मंडियां हैं। वहां से ही सामान लेने में सहूलियत मिलती है । मूर्ति कलाकार आरपी सिंह बताते हैं कि मूर्तियों की बिक्री में मुनाफा कमाने का उद्देश्य कम से कम रहता है। प्रयास यह होता है कि मूर्तियों को तैयार करने में लगने वाला लागत और हम कलाकारों का खर्च निकल जाए, यही हमारे लिए पर्याप्त होता है। कार्यशाला में माता की बड़ी मूर्तियां जहां आठ से दस हजार तक बिकती हैं। वहीं छोटी मूर्तियां साढ़े तीन हजार से पांच हजार तक बिक जाती हैं। कार्यशाला में तैयार मूर्तियों की छटा देखते ही बन रही है।

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