भड़काऊ भाषण मामले में डा. कफ़ील खान को फिलहाल इलाहाबाद हाई कोर्ट से मिली राहत

याची अधिवक्ता का कहना था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत लोक सेवक के विरूद्ध बिना सरकार की अनुमति लिए आपराधिक केस नहीं चलाया जा सकता। मजिस्ट्रेट का आदेश सुप्रीम कोर्ट व कानूनी उपबंधों के खिलाफ होने के कारण रद्द किया जाए।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Thu, 26 Aug 2021 08:01 PM (IST) Updated:Thu, 26 Aug 2021 08:37 PM (IST)
भड़काऊ भाषण मामले में डा. कफ़ील खान को फिलहाल इलाहाबाद हाई कोर्ट से मिली राहत
चार्जशीट पर मजिस्ट्रेट के संज्ञान लेने की कार्यवाही रद्द, पुलिस की तकनीकी प्रक्रिया की खामियों का लाभ

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर के डा कफील अहमद खान को फिलहाल राहत दी है। इन्हें पुलिस की तकनीकी प्रक्रिया की खामियों का लाभ मिला है। हाई कोर्ट ने सरकार से अभियोजन चलाने की अनुमति लिए बगैर चार्जशीट पर सीजेएम अलीगढ़ द्वारा संज्ञान लेने की कार्यवाही रद्द कर दी है। सरकार से अभियोजन चलाने की अनुमति मिलने के बाद ही जूडिशियल मजिस्ट्रेट को नियमानुसार कार्यवाही के लिए पत्रावली वापस भेज दी है।

सरकार से अभियोजन चलाने की अनुमति के बाद चल सकेगा केस

हाई कोर्ट ने कहा है कि सरकार से अनुमति मिलने के बाद डा कफील खान के खिलाफ आपराधिक केस चल सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने डा कफ़ील खान की याचिका पर दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार, अधिवक्ता मनीष कुमार सिंहव शांभवी शुक्ला तथा राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल व अपर शासकीय अधिवक्ता पतंजलि मिश्र ने पक्ष रखा। याची के खिलाफ सीएए के विरोध में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आयोजित सभा में भड़काऊ और देश विरोधी भाषण देने के आरोप में एफआइआर दर्ज कराई गई और पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की। सीजेएम ने रिपोर्ट पर संज्ञान भी ले लिया जिसकी वैधता को चुनौती दी गई थी।

लोक सेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकारी अनुमति जरूरी

याची अधिवक्ता का कहना था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत लोक सेवक के विरूद्ध बिना सरकार की अनुमति लिए आपराधिक केस नहीं चलाया जा सकता। मजिस्ट्रेट का आदेश सुप्रीम कोर्ट व कानूनी उपबंधों के खिलाफ होने के कारण रद्द किया जाए। सरकार की तरफ से कहा गया कि आरोप निर्मित करते समय यदि अभियोजन चलाने की अनुमति नहीं मिलती तो कार्यवाही रद्द की जा सकती है। अभी संज्ञान लेने के आदेश के खिलाफ याचिका पोषणीय नहीं है। मगर कोर्ट ने बिना सरकार की अनुमति लिए मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने के आदेश को रद्द कर दिया है।

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