Dhyan Chand Death Anniversary: इलाहाबाद विश्वविद्यालय मैदान ने देखा है द्ददा की हाकी का जादू
Dhyan Chand Death Anniversary हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले हाकी के राष्ट्रीय खिलाड़ी रामबाबू द्ददा की पुण्य तिथि पर बड़ी भावुकता से उन्हे याद करते हैं। वह बताते हैं कि द्ददा का बचपन प्रयागराज में बीता था जिसके कारण हमेशा से उनका जुड़ाव बना रहा।
प्रयागराज, [अमरीश मनीष शुक्ल]। आज 3 दिसंबर को मेजर ध्यानचंद की पुण्यतिथि है, इसलिए प्रयागराज से जुड़े उनके संस्मरण को जानना आवश्यक हो जाता है। शहर में लोकनाथ की गलियों से पहलवानी के टिप्स लेकर निकले मेजर ध्यानचंद हाकी की दुनिया के बेताज बादशाह बने। उनकी स्टिक के जादू का गवाह संगम नगरी में स्थित इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय का स्टेडियम भी रहा है। हालांकि यह कोई राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं था, यहां मैत्री मैच ही खेला गया। इसमें कई स्थानीय हाकी के नामचीन खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था। स्थानीय खिलाड़ियों को प्राेत्साहित करने के लिए उनके साथ मैत्री मैच खेला था।
शिष्य रामबाबू ने गुरु ध्यानचंद को किया याद
मेजर ध्यानचंद से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले हाकी के राष्ट्रीय खिलाड़ी रामबाबू द्ददा की पुण्य तिथि पर बड़ी भावुकता से उन्हे याद करते हैं। वह बताते हैं कि द्ददा का बचपन प्रयागराज में बीता था, जिसके कारण हमेशा से उनका जुड़ाव बना रहा। वह हमेशा यहां के लोगों से आत्मीय जुड़ाव रखते थे। एक बार वह झांसी से कोलकाता जा रहे थे। इस दौरान उन्होंने प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में रुकने और लोगों से मिलने की इच्छा जाहिर की और कुछ ही घंटे में ही वे यहां पहुंच गए।
यूनिवर्सिटी मैदान पर खेला था मैच
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के खेल मैदान पर उन दिनों हाकी के कई खिलाड़ी जमकर पसीना बहाया करते थे और कई राज्यों में उनकी चमक बिखर चुकी थी। द्ददा के प्रयागराज आने की खबर मिली तो खिलाड़ी यूनिवर्सिटी मैदान पर जुटने लगे। द्ददा जब पहुंचे तो बहुत गर्मजोशी ने उनका स्वागत हुआ। खिलाड़ उनके साथ मेच खेलना चाहते थे तो द्ददा ने भी उनकी इच्छा पूरी कर दी और यहां पर हाकी का मैच हुआ।
खिलाड़ियों से हुए प्रभावित
द्ददा के शिष्य रामबाबू बताते हैं मैत्री मैच के दौरान स्थानीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन से वह बहुत प्रभावित थे। कई खिलाड़ियों को टिप्स देकर प्रोत्साहान भी दिया और फिर सभी को लगन और मेहनत से खेलते रहने की सीख देकर विदा हुए थे। इस तरह दो बार और द्ददा का यूनिवर्सिटी मैदान पर आना हुआ और उन्होंने मैत्री मैच भी खेला।
लोकनाथ की गलियों में गुजरा था बचपन
संगम नगरी का लोकनाथ चौराहा और लोकनाथ गली कौन नहीं जानता। यहां की गलियों से देश के ऐसे दिग्गजों का नाम जुड़ा है, जिनकी पहचान राष्ट्र की सीमाओं से पार निकल गई। ऐसा ही एक नाम है हाकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का। प्रयागराज में जन्मे ध्यानचंद का बचपन लोकनाथ की गलियों में ही बीता था। खेल की शुरूआती रूझान उनके मन मस्तिष्क में यहीं आया था।
मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय
जन्म- इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में 29 अगस्त 1905 में हुआ था।
मृत्यु- 3 दिसंबर 1979 में दिल्ली में हुई थी।
खेलने का स्थान- फारवर्ड।
सम्मान - मेजर ध्यानचंद को 1956 में पद्मभूषण से सम्मानित हुए। भारतीय ओलिंपिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था। इनके नाम पर ही खेल पुरस्कार भी अब दिया जाता है।
ध्यानचंद प्रयागराज से गए थे झांसी
पुराने शहर लोकनाथ में रहकर मेजर ध्यानचंद ने कक्षा छह तक की पढ़ाई की थी। इसके बाद उनका झांसी चला गया। अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के महामंत्री आनंद टंडन ने बताया कि उनके पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विश्वनाथ टंडन मेजर साहब के घर वालों के बारे में काफी कुछ बताया करते थे। भारती भवन के पास एक किराए के घर में ध्यानचंद का परिवार रहता था। उनके पिता समेश्वर सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सूबेदार थे। वह खुद हाकी के अच्छे खिलाड़ी थी। समेश्वर सिंह का तबादला झांसी होने के बाद पूरा परिवार झांसी चला गया।
पहले पसंद थी कुश्ती : आनंद टंडन
आनंद टंडन ने बताया कि लोकनाथ में पहले कई व्यायामशाला थी और उसका असर मेजर ध्यानचंद पर भी पड़ा। वह भी कुश्ती के खेल को बहुत पंसद करते थे और खेलते खेलते व्यायामशाला में जाकर कुश्ती के दांव पेच देखा करते थे। हालांकि उम्र जब बढ़ने लगी और समझ बढ़ी तो उन्हें झांसी जाना पड़ा, जहां उनका रिश्ता हाकी के साथ जुड़ा।