Magh Mela 2021: प्रयागराज संगम तट पर उमड़ा जनसैलाब, पौष पूर्णिमा पर श्रद्धालु लगा रहे आस्‍था की डुबकी

पूर्णिमा तिथि 27 जनवरी की रात 12 32 बजे लगकर 28 जनवरी की रात 1232 बजे तक रहेगी। दिनभर गुरुपष्य नक्षत्र और सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग है। मकर राशि में सूर्य गुरु शुक्र व शनि का संचरण होगा।

By Rajneesh MishraEdited By: Publish:Thu, 28 Jan 2021 06:30 AM (IST) Updated:Thu, 28 Jan 2021 02:10 PM (IST)
Magh Mela 2021: प्रयागराज संगम तट पर उमड़ा जनसैलाब, पौष पूर्णिमा पर श्रद्धालु लगा रहे आस्‍था की डुबकी
पौष पूर्णिमा पर संगम व अन्य घाटों पर श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगा रहे हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। तीर्थराज प्रयाग का संगम तट गुरुवार को पौष पूर्णिमा पर आस्था के जन प्रवाह का साक्षी बना। इसके साथ ही गृहस्थों का अखंड तप कल्पवास गुरुवार की भोर से ही पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ आरंभ हो गया। जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति, पूर्वजों की तृप्ति व मोक्ष की प्राप्ति की संकल्पना साकार करने के लिए संगम तीरे माहभर अर्थात माघी पूर्णिमा (27 फरवरी) तक कल्पवास चलेगा। समस्त आराध्य व पितरों को नमन करके रेती में धूनी रमाकर गृहस्थ तपस्वी की भांति जप-तप, अनुष्ठान व त्याग करेंगे।

कल्पवासी घर-गृहस्थी का मोह छोड़कर प्रयागराज में संगम तट पर आए हैं। कोरोना संक्रमण का भय, भीषण ठंड भी उनकी आस्था नहीं डिगा पाई। बड़ी संख्‍या में श्रद्धालु संगम के पवित्र जल में डुबकी लगा रहे हैं। श्रद्धालुओं की भीड़ लगातार संगम की ओर चली आ रही है। संगम व अन्य घाटों पर श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगा रहे हैं। प्रशासन के मुताबिक सुबह दस बजे तक लगभग एक लाख श्रद्धालुओं ने पुण्‍य डुबकी लगाई है। अब श्रद्धालुओं की भीड़ और बढ़ेगी।

आज दिनभर पूर्णिमा का प्रभाव

पूर्णिमा तिथि 27 जनवरी की रात 12: 32 बजे लगकर 28 जनवरी की रात 12:32 बजे तक रहेगी। दिनभर गुरुपष्य नक्षत्र और सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग रहेगा। मकर राशि में सूर्य, गुरु, शुक्र व शनि का संचरण होगा। धर्म सिंधु और निर्णय सिंधु के अनुसार एक राशि में चार ग्रहों का संचरण शुभ व सौभाग्यदायक है। इस पुण्य बेला में संकल्प लेकर अनुष्ठान आरंभ करने वालों की समस्त कामनाएं पूर्ण होंगी। कल्पवास शुरू करने वाले साधकों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। पितर भी तृप्त होंगे।

प्रयागराज में अनादीकाल से चली आ रही है कल्‍पवास की परंपरा

प्रयागराज में कल्पवास की परंपरा अनादिकाल पुरानी है। इसका महात्म्य प्राचीन काल में किए जाने वाले राजसूय यज्ञ के बराबर माना जाता है। लोकतांत्रिक युग में पुण्य लाभ की कामना के वशीभूत होकर कल्पवासी यहां आते हैं। उन्हें न सुविधा की फिक्र है, न अव्यवस्था की चिंता। भाव सिर्फ एक है कि उनकी तपस्या में कोई कमी न रहने पाए। कल्पवासी आचार्यनगर, दंडी स्वामीनगर, खाकचौक नगर के अलावा तीर्थपुरोहितोंके शिविर में आसरा ले रहे हैं। गृहस्थ समस्त मोह-माया से मुक्त होकर भजन-पूजन करेंगे। जमीन में घासफूस डालकर उसमें शयन करेंगे। दिन में तीन बार गंगा स्नान, एक समय भोजन व दिनभर धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन, प्रवचन सुनने में समय व्यतीत करेंगे।  

21 नियम का पालन करना अनिवार्य

ज्‍योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि पद्मपुराण, अग्नि पुराण व स्कंद पुराण में कल्पवास की महिमा का बखान है। बताया गया है कि प्रयागराज में माघ मास में देवता स्वर्गलोक से प्रयागराज आते हैं। यही कारण है कि इस कालखंड में किए गए अनुष्ठान का फल जल्द प्राप्त होता है। एक माह कल्पवास करने वालों की समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं, उनके कुल भी तर जाते हैं। पुराणों में कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं। 

यह है कल्पवास के नियम

1-झूठ न बोलना, 2-सदैव सत्य बोलना, 3-घर-गृहस्थी की चिंता से मुक्त रहना, 4-गंगा में सुबह, दोपहर व शाम को स्नान करना, 5-शिविर के बाहर तुलसी का पौधा लगाना व जौ बोना, 6-तुलसी व जौ को प्रतिदिन जल अॢपत करके आरती करना, 7-ब्रह्मचर्य का पालन करना, 8-खुद या पत्नी का बनाया सात्विक भोजन करना,  9-सत्संग में भाग लेना, 10-इंद्रियों में संयम रखना, 11-पितरों का पिंडदान करना, 12-हिंसा से दूर रहना, 13-विलासिता से दूर रहना, 14-परनिंदा न करना, 15-जमीन पर सोना, 16-भोर में जगना, 17-किसी भी परिस्थिति में मेला क्षेत्र न छोडऩा, 18-धाॢमक ग्रंथों व पुस्तकों का पाठ करना, 19-आपस में धाॢमक चर्चा करना, 20-प्रतिदिन संतों को भोजन कराकर दक्षिणा देना, 21-गृहस्थ आश्रम में लौटने के बाद भी कल्पवास के नियम का पालन करेंगे। 

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