Deepawali 2021: दीप पर्व पर फीकी पड़ी कुम्‍हारी कला को पटरी पर लाने की कोशिश, गढ़े जा रहे मिट्टी के दीये

Deepawali 2021 अब अधिक उम्र वाले ही कुम्‍हारी कला से जुड़े हैं। इनके परिवार के युवक इस पुश्तैनी व्यवसाय से खुद को अलग रख रहे हैं। वह रोजी रोटी के लिए अन्य व्यवसाय में लगे हैं। दीपावली निकट है ऐसे में वे मिट्टी के दीए आदि बनाने में जुटे हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Mon, 25 Oct 2021 03:38 PM (IST) Updated:Mon, 25 Oct 2021 03:38 PM (IST)
Deepawali 2021: दीप पर्व पर फीकी पड़ी कुम्‍हारी कला को पटरी पर लाने की कोशिश, गढ़े जा रहे मिट्टी के दीये
दीपावली पर मिट्टी के दीये आदि को बेचकर अपनी आर्थिक स्थिति ठीक करने का कुम्‍हार प्रयास कर रहे हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। दीपावली का त्‍योहार निकट है। ऐसे में अन्‍य दिनों में खाली बैठे कुम्‍हारों के चाक तेजी से चल रहे हैं। उनके साथ परिवार के सदस्‍य भी जुटे हैं। दिन रात मेहनत कर मिट्टी के दीये, खिलौने आदि बर्तन तैयार किए जा रहे हैं। उन्‍हें यह उम्‍मीद है कि दीप पर्व पर आ‍र्थिक लाभ होगा तो उनके घर में भी रोशनी हो सकेगी। वैसे भी दीप पर्व पर घर-आंगन से लेकर मंदिरों व चौबारों तक मिट्टी के दीपक जलेंगे। इससे गरीबों के घर में खुशियां जरूर आएंगी।

हाईटेक युग में कुम्‍हारी कला पर लगा ब्रेक

हाईटेक युग में मिट्टी बर्तनों के चलन पर बहुत हद तक खत्‍म हो चुका है। पहले दीपावली पर मिट्टी के दीये ही उपयोग में लाए जाते थे। धार्मिक व अन्य कार्यक्रमों में भी मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता था, लेकिन आज इनका प्रचलन बहुत कम हो गया है। इससे बहुतायत कुम्हारों का रोजगार समाप्त हो गया है। कुम्हारी कला के माहिर कुम्हारों की मिट्टी के बर्तन बनाने की कला धीरे-धीरे फीकी पड़ती जा रही है। बहुत कम लोग इस कला को जीवित रखे हैं।

प्रतापगढ़ में बुजुर्ग ही कुम्‍हारी कला से जुड़े हैं

प्रतापगढ़ जनपद में भी अब अधिक उम्र वाले ही चाक और आवां से जुड़े हैं। इनके परिवार के अधिकांश युवक इस पुश्तैनी व्यवसाय से खुद को अलग रख रहे हैं। वह रोजी रोटी के लिए अन्य व्यवसाय में लगे हैं। कुम्हारी से जुड़े लोग कहते हैं कि चाक के सहारे परिवार का गुजारा करना अब बहुत मुश्किल हो गया है।

सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया

नयापुरवा के कुम्हारन टोला के दयाराम प्रजापति कहते हैं कि आधुनिकता के दौर में मिट्टी के बर्तन की मांग कम हो ही गई है। सरकार ने भी कुम्हारों से वादा खिलाफी की है। सरकार ने कहा था कि कुम्हारों को मिट्टी के लिए पट्टे पर जमीन दी जाएगी, लेकिन आज तक किसी को भी जमीन नहीं मिली। हम लोगों को मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए बाहर से मिट्टी लानी पड़ती है। ऊपर से पुलिस भी अवैध खनन के नाम पर सुविधा शुल्क चाहती है। इतने के बाद भी हम लोग परंपरा के दीये गढऩा नहीं छोड़े, क्योंकि यह रोजी रोटी ही नहीं हमारी पहचान भी तो है।

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