Death anniversary of Upendranath Ashk : ममता कालिया के 'बेघर' से असहमत थे उपेंद्रनाथ अश्क Prayagraj News
Death anniversary of Upendranath Ashk उपन्यास पढ़कर अश्क ने सात-आठ पेज की चिट्ठी भेजी। लेखन को सराहा परंतु नायक पर तंज कसते हुए लिखा उसके हिसाब से उपन्यास का नाम गलत है। मैैं नाराज हुई और मैंने भी उन्हें चार-पांच पेज की चिट्ठी लिखी। शब्दों का युद्ध कई बार चला।
प्रयागराज, जेएनएन। उम्दा लेखक, जीवंत रिश्तों के पर्याय उपेंद्रनाथ 'अश्क' की पहचान उनकी बेबाकी भी थी। बिना संकोच अपनी बात कह देते थे। कथाकार ममता कालिया उनकी कड़वी टिप्पणी को आज भी नहीं भुला सकी हैैं। आत्मीय रिश्ता होने के बावजूद अश्क ने उनके उपन्यास 'बेघर' नाम से असहमति जता दी थी।
19 जनवरी 1996 को संगमनगरी में ही चिरनिद्रा में हुए लीन
उपेंद्रनाथ 1948 में पत्नी और तीन वर्ष के बेटे नीलाभ के साथ प्रयागराज आए। यहां महादेवी द्वारा स्थापित साहित्यकार संसद से जुड़़े। नीलाभ प्रकाशन शुरू किया। बहुत कुछ लिखा पढ़ा। संगमनगरी में ही वह 19 जनवरी 1996 को चिरनिद्रा में लीन हुए। उनकी पुण्यतिथि पर उनसे जुड़े संस्मरण ताजे हो जाते हैैं।
लेखन को सराहा पर नायक पर कसा तंज
ममता कालिया से जुड़ा प्रसंग भी याद आ जाता है। वर्ष 1971 में उनका पहला उपन्यास 'बेघर' नाम से प्रकाशित हुआ। प्रकाशक ने एक प्रति अश्क को भी भेंट की। बकौल ममता, उपन्यास पढ़कर अश्क ने सात-आठ पेज की चिट्ठी भेजी। लेखन को सराहा परंतु नायक पर तंज कसते हुए लिखा, 'उसके हिसाब से उपन्यास का नाम गलत है।' मैैं नाराज हुई और मैंने भी उन्हें चार-पांच पेज की चिट्ठी लिखी। शब्दों का युद्ध कई बार चला। अश्क ने मुझे खुला पत्र भी लिखा। उन पत्रों को 'चेहरे अनेक' नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। ममता कहती हैैं कि अश्क से हमारा आत्मीय जुड़ाव था, जब रवि (रवींद्र कालिया) प्रयागराज आए थे तो उनके घर में रुके थे। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित होने जा रहे ममता कालिया के उपन्यास 'छोड़ आए जो गलियां' में अश्क को लेकर भी टिप्पणी है।
ऐसे उपेंद्रनाथ बने 'अश्क'
पंजाब के जालंधर में 14 दिसंबर 1910 को जन्मे उपेंद्रनाथ अश्क पांचवी कक्षा में पढ़ते समय लाहौर से निकलने वाली पत्रिका 'आर्य भजन पुष्पांजलि' की प्रेरणा से भजन की तुकबंदी करने लगे। समालोचक रविनंदन सिंह बताते हैैं कि उपेंद्रनाथ आठवीं कक्षा में उर्दू गजल की ओर मुड़े और अपना उपनाम 'अश्क' रख लिया। आजर जालंधरी को उस्ताद बनाया और गजलें लिखने लगे। हाईस्कूल से उर्दू कहानी की ओर मुड़े। पहली रचना 'याद है वो दिन' लाहौर के साप्ताहिक समाचार पत्र 'गुरु घंटाल' में छपी। दूसरी कहानी लाहौर की ही पत्रिका 'प्रताप' में छपी। मुंशी प्रेमचंद व हरिकृष्ण प्रेमी की प्रेरणा से अश्क 1936 में हिंदी में लिखने लगे। पहली हिंदी कहानी खंडवा से माखनलाल चतुर्वेदी के संपादकत्व में प्रकाशित पत्रिका 'कर्मवीर' में छपी।
पड़ोसियों से था आत्मीय जुड़ाव
लूकरगंज निवासी रेलवे से रिटायर चंद्रप्रकाश मिश्र बताते हैं कि उपेंद्रनाथ हमारे पड़ोसी थे। मेरे पिता रामराज शर्मा के मित्र थे। उनका अक्सर घर आना होता। वो पिता जी को अपनी किताबों के बारे में बताते। मुझसे कहते थे कि 'साहित्य की किताबें पढ़ा करो और लिखने की आदत भी डालो।' हमें प्रेरित करते, लेकिन साहित्य में रुचि न होने के कारण मैं उनकी बात पर ध्यान नहीं देता था। इस पर कई बार मुझसे नाराज हो जाते थे। लूकरगंज में रहने वाले राजेश शर्मा बताते हैं कि मैंने बचपन में उपेंद्रनाथ को देखा था। बाहर से आने पर मोहल्ले वालों से खूब गप्पेबाजी करते थे। दूसरे शहरों से जुड़े वृतांत सुनाते। मुझे पढ़ाई करने को प्रेरित करते थे।
लूकरगंज निवासी रेलवे से रिटायर चंद्रप्रकाश मिश्र बताते हैं कि उपेंद्रनाथ हमारे पड़ोसी थे। मेरे पिता रामराज शर्मा के मित्र थे। उनका अक्सर घर आना होता। वो पिता जी को अपनी किताबों के बारे में बताते। मुझसे कहते थे कि 'साहित्य की किताबें पढ़ा करो और लिखने की आदत भी डालो।' हमें प्रेरित करते, लेकिन साहित्य में रुचि न होने के कारण मैं उनकी बात पर ध्यान नहीं देता था। इस पर कई बार मुझसे नाराज हो जाते थे। लूकरगंज में रहने वाले राजेश शर्मा बताते हैं कि मैंने बचपन में उपेंद्रनाथ को देखा था। बाहर से आने पर मोहल्ले वालों से खूब गप्पेबाजी करते थे। दूसरे शहरों से जुड़े वृतांत सुनाते। मुझे पढ़ाई करने को प्रेरित करते थे।
प्रमुख रचनाएं
-उपन्यास : गिरती दीवारें, शहर में घूमता आईना, गर्म राख, सितारों के खेल।
-कहानी संग्रह : सत्तर श्रेष्ठ कहानियां, जुदाई की शाम के गीत, काले साहब, पिंजरा।
-नाटक : लौटता हुआ दिन, बड़े खिलाड़ी , जय-पराजय, स्वर्ग की झलक, भंवर, अंजो दीदी।
-एकांकी संग्रह : अंधी गली, मुखड़ा बदल गया, चरवाहे।
-काव्य : एक दिन आकाश ने कहा, दीप जलेगा, बरगद की बेटी।
-संस्मरण: मंटो मेरा दुश्मन, फिल्मी जीवन की झलकियां
-आलोचना: अन्वेषण की सहयात्रा ।