Death Anniversary of Chandrasekhar Azad: आजाद की पिस्टल 'बमतुल बुखारा' से धुआं नहीं निकलता था, परेशान थे अंग्रेज
Death Anniversary of Chandrasekhar Azad अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की पिस्टल अब इलाहाबाद म्यूजियम में सुरक्षित रखी हुई है। कुछ साल पहले म्यूजियम के सेंट्रल हाल में शीशे की बनी सेल्फ में रखी थी। दो साल पूर्व बुलेटप्रूफ ग्लास के बॉक्स में बंदकर पिस्टल सेंट्रल हॉल के मध्य रखा गया।
प्रयागराज, जेएनएन। जिस पिस्टल से चंद्रशेखर आजाद ने 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए थे और अंतिम गोली खुद को मारकर वीरगति को प्राप्त हुए थे, वह अब इलाहाबाद संग्रहालय में सुरक्षित रखी है। कोल्ट कंपनी की इस पिस्टल से गोली चलने के बाद धुआं नहीं निकलता था। इसके चलते पेड़ों की ओट से आजाद गोलियां चलाते थे तो अंग्रेज यह नहीं जान पाते थे कि गोलियां कहां से चल रही हैं। आजाद शान से अपनी पिस्टल को बमतुल बुखारा कहते थे।
संग्रहालय में बुलेटप्रूफ कांच के बाक्स में सुरक्षित है पिस्टल
अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की पिस्टल अब इलाहाबाद म्यूजियम में सुरक्षित रखी हुई है। कुछ साल पहले म्यूजियम के सेंट्रल हाल में शीशे की बनी सेल्फ में रखी थी। दो साल पूर्व बुलेटप्रूफ ग्लास के बॉक्स में बंदकर पिस्टल को सेंट्रल हॉल के मध्य रखा गया। ऐसे में संग्रहालय में प्रवेश करने वाले हर शख्स का ध्यान आजाद की पिस्टल की तरफ बरबस ही जाता है।
आजाद की शहादत के बाद अंग्रेजों ने जब्त की थी पिस्टल
अंग्रेजों ने 27 फरवरी सन् 1931 को अल्फ्रेड पार्क (अब आजाद पार्क) में आजाद को चारों तरफ से घेर लिया था तो आजाद ने इसी पिस्टल से फायरिंग कर कई अंग्रेज अफसरों को मौत दी थी और कई को घायल कर दिया था। बाद में खुद को गोली मार ली थी। उस समय अंग्रेज सुपरिटेंडेंट जॉन नॉट बावर ने उक्त पिस्टल को जब्त कर लिया था। इलाहाबाद संग्रहालय के निदेशक डा. सुनील गुप्ता का कहना है कि देश को आजादी मिलने के बाद पिस्टल भारत सरकार को सौंप दी गई थी। तब से यह इलाहाबाद म्यूजियम में सुरक्षित रखी है।
गोली चलने के बाद इस पिस्टल से नहीं निकलता है धुआं
संग्रहालय के निदेशक सुनील गुप्ता के मुताबिक आजाद की पिस्टल अमेरिकन फायर आर्म बनाने वाली कोल्ट्स मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी ने 1903 में बनाई थी। जो अब कोल्ट पेटेंट फायर आम्र्स मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी के नाम से जानी जाती है। प्वाइंट 32 बोर की पिस्टल हैमरलेस सेमी आटोमेटिक है। इसमें आठ बुलेट की एक मैगजीन लगती है। सिंगल एक्शन ब्लोबैक सिस्टम (एक बार में एक गोली) वाली इस पिस्टल की मारक क्षमता 25 से 30 यार्ड है। खासियत है की गोली चलने के बाद इससे धुआं नहीं निकलता है जिससे चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेजों से मोर्चा लेने में सुविधा हुई थी। आजाद पेड़ों की ओट से लक्ष्य कर गोली चलाते थे। पिस्टल से धुआं न निकलने से अंग्रेज अफसर और सिपाही नहीं जान पाते थे कि वह कब किस पेड़ के पीछे हैं। आजाद ने अपनी इस पिस्टल को बमतुल बुखारा नाम दिया था।
लखनऊ म्यूजियम में थी 1976 से पहले आजाद की पिस्टल
म्यूजियम के निदेशक डा. सुनील गुप्ता कहते हैं कि आजाद की यह पिस्टल देश के लिए धरोहर है। पहले पिस्टल लखनऊ म्यूजियम में रखी थी। 1976 में उसे इलाहाबाद म्यूजियम में लाया गया। चंद्रशेखर आजाद जहां पर शहीद हुए थे, वर्तमान में उनकी आदम कद प्रतिमा लगा दी गई। उसके चारो तरफ सुंदरीकरण कराने के साथ लाइट आदि लगाई गई है। हालांकि वह पेड़ अब वहां नहीं है जिसके पीछे आजाद का मृत शरीर पड़ा था। बताते हैं कि उनकी मौत के बाद लोग उस पेड़ की पूजा करने लगे थे। भीड़ जुटने लगी थी जिससे भयभीत अंग्रेजी सरकार ने उस पेड़ को कटवा दिया था।