अपने घर में अंधेरा और सबकी सुरक्षा का ढिंढोरा
एसएसपी आवास पर लगा सीसीटीवी कैमरा कई महीने से बंद है। एक अधिवक्ता ने जब आरटीआई के जरिए फुटेज मांगी तो पता चला कि सीसीटीवी कैमरा कई महीने से बंद पड़ा है।
प्रयागराज : पुलिस भले ही शहर और शहरवासियों की सुरक्षा का दावा करती है लेकिन उसका खुद ही अभाव में है। इसका पता चला जन सूचना अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी सेत्र इसमें पुलिस अफसरों ने खुद मानी है। सुरक्षा के मद्देनजर शहर में सीसीटीवी कैमरे लगवाने पर लाखों रुपये खर्च हुए।
थानों और अफसरों के कार्यालयों में कैमरे लगवाए गए। लापरवाही की हद यह है कि कमांड कार्यालय (एसएसपी आवास) का सीसीटीवी वर्ष 2015 से ही खराब है, जबकि वहां के सीसीटीवी कैमरे में घटनाक्रम का अहम साक्ष्य रिकार्ड माना जा रहा था। पुलिस की किरकिरी कराता यह मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है। न्यायालय की चौखट पहुंचा मामला 24 मार्च 2019 को सामने आया।
हाईकोर्ट के अधिवक्ता सुनील चौधरी झूंसी में मेडिकल छात्रा से दुष्कर्म, नैनी में डाक्टर पर हमला और याचिकाकर्ता रामसखी को सुरक्षा देने की मांग को लेकर एसएसपी आवास पहुंचे थे। सुनील चौधरी का आरोप है कि एसएसपी कार्यालय में उनसे गालीगलौज की गई। उनकी मां के बारे में अपशब्द कहे गए। अधिवक्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रार्थना पत्र भेजा।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन को पत्र लिखा कि यदि कोई कार्रवाई न हो तो मेरी सदस्यता खत्म कर दी जाए। अधिवक्ता ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की तो अदालत ने पुलिस अफसरों से जवाब मांगा। अधिवक्ता ने शपथ पत्र यह भी कहा कि एसएसपी आवास पर लगे सीसीटीवी की रिकार्डिग जांच के लिए ली जाए। फिर जन सूचना अधिकार (आरटीआइ) में मांग की कि 24 मार्च 2019 के शाम साढ़े सात बजे से रात साढ़े ग्यारह बजे के बीच की सीसीटीवी फुटेज मुहैया कराई जाए।
इस पर पुलिस महकमे ने जवाब दिया कि वर्ष 2015 से ही वहां का सीसीटीवी क्रियाशील नहीं है। पुलिस विभाग के इस जवाब पर अधिवक्ता ने फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सुनील चौधरी के पत्र पर सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिया। 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से उन्हें पीआइएल नंबर मुहैया कराया गया है। अब सुनवाई पर पुलिस के जवाब का इंतजार है।
आईजी मोहित अग्रवाल का कहना है कि थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश आए थे। सभी थानों में लगे हैं। एसएसपी आवास पर सीसीटीवी कैमरे खुद से किसी अधिकारी ने लगवा दिए होंगे। अब किसी को भी सीसीटीवी फुटेज मुहैया करा दिया जाए, ऐसा नहीं है। देखा जाएगा कि इस मामले में न्यायालय का क्या आदेश है।
थानों और अफसरों के कार्यालयों में कैमरे लगवाए गए। लापरवाही की हद यह है कि कमांड कार्यालय (एसएसपी आवास) का सीसीटीवी वर्ष 2015 से ही खराब है, जबकि वहां के सीसीटीवी कैमरे में घटनाक्रम का अहम साक्ष्य रिकार्ड माना जा रहा था। पुलिस की किरकिरी कराता यह मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है। न्यायालय की चौखट पहुंचा मामला 24 मार्च 2019 को सामने आया।
हाईकोर्ट के अधिवक्ता सुनील चौधरी झूंसी में मेडिकल छात्रा से दुष्कर्म, नैनी में डाक्टर पर हमला और याचिकाकर्ता रामसखी को सुरक्षा देने की मांग को लेकर एसएसपी आवास पहुंचे थे। सुनील चौधरी का आरोप है कि एसएसपी कार्यालय में उनसे गालीगलौज की गई। उनकी मां के बारे में अपशब्द कहे गए। अधिवक्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रार्थना पत्र भेजा।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन को पत्र लिखा कि यदि कोई कार्रवाई न हो तो मेरी सदस्यता खत्म कर दी जाए। अधिवक्ता ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की तो अदालत ने पुलिस अफसरों से जवाब मांगा। अधिवक्ता ने शपथ पत्र यह भी कहा कि एसएसपी आवास पर लगे सीसीटीवी की रिकार्डिग जांच के लिए ली जाए। फिर जन सूचना अधिकार (आरटीआइ) में मांग की कि 24 मार्च 2019 के शाम साढ़े सात बजे से रात साढ़े ग्यारह बजे के बीच की सीसीटीवी फुटेज मुहैया कराई जाए।
इस पर पुलिस महकमे ने जवाब दिया कि वर्ष 2015 से ही वहां का सीसीटीवी क्रियाशील नहीं है। पुलिस विभाग के इस जवाब पर अधिवक्ता ने फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सुनील चौधरी के पत्र पर सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिया। 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से उन्हें पीआइएल नंबर मुहैया कराया गया है। अब सुनवाई पर पुलिस के जवाब का इंतजार है।
आईजी मोहित अग्रवाल का कहना है कि थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश आए थे। सभी थानों में लगे हैं। एसएसपी आवास पर सीसीटीवी कैमरे खुद से किसी अधिकारी ने लगवा दिए होंगे। अब किसी को भी सीसीटीवी फुटेज मुहैया करा दिया जाए, ऐसा नहीं है। देखा जाएगा कि इस मामले में न्यायालय का क्या आदेश है।