115 साल पुराना हुआ गंगा नदी पर बना कर्जन पुल, जानिए कब गुजरी थी इस पुल से आखिरी और पहली ट्रेन Prayagraj News

रेल और सड़क यातायात के लिए पुल को असुरक्षित बताते हुए रेलवे ने 1998 में इस पुल को बंद करने व गिराने का निर्णय लिया। बंद होने के पहले पुल से अंतिम टे्रन प्रयागराज से लखनऊ जाने वाली गंगा-गोमती एक्सप्रेस गुजरी थी।

By Rajneesh MishraEdited By: Publish:Wed, 02 Dec 2020 04:34 PM (IST) Updated:Wed, 02 Dec 2020 04:34 PM (IST)
115 साल पुराना हुआ गंगा नदी पर बना कर्जन पुल, जानिए कब गुजरी थी इस पुल से आखिरी और पहली ट्रेन Prayagraj News
वर्ष 1998 में गंगा नदी पर बने कर्जन पुल से सड़क और रेल यातायात बंद कर दिया गया।

प्रयागराज, जेएनएन । प्रयागराज से फैजाबाद व लखनऊ रेलमार्ग पर गंगा नदी पर बने कर्जन पुल की आयु इस साल 115 वर्ष हो गई है। रेल यातायात के लिए यह पुल 15 जून सन् 1905 को खोला गया था। तब इस रेलखंड का संचालन अवध व रुहेलखंड रेलवे करती थी। इस पुल से सड़क यातायात 20 दिसंबर 1905 को शुरू हुआ था। वर्ष 1998 में इस पुल से सड़क और रेल यातायात बंद कर दिया गया। इसे टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई थी लेकिन अभी तक उक्त दिशा में कुछ हो नहीं सका।

लार्ड कर्जन के नाम पर हुआ था इस दो मंजिला पुल का नामकरण

सन् 1899 से 1905 तक वायसराय रहे लार्ड कर्जन के नाम पर इस पुल का नामकरण कर्जन किया गया था। 1901 में इसके निर्माण को स्वीकृति मिली व जनवरी 1902 में निर्माण शुरू हुआ। पुल में 61 मीटर लंबे गर्डर और 15 पिलर का प्रयोग किया गया है। पुल के नीचे की ओर सिंगल ब्राड गेज रेलवे लाइन है जबकि ऊपर सड़क। गंगा पर बने इस पुल की लंबाई 5 किमी. है। पुल के ऊपरी हिस्से में बनी सड़क की चौड़ाई 15 फिट है जबकि दोनों तरफ चार फिट एक इंच चौड़े दो फुटपाथ हैं।

1998 में बंद होने के पहले पुल से गुजरने वाली अंतिम टे्रन थी गंगा-गोमती

रेल और सड़क यातायात के लिए पुल को असुरक्षित बताते हुए रेलवे ने 1998 में इस पुल को बंद करने व गिराने का निर्णय लिया। बंद होने के पहले पुल से अंतिम टे्रन प्रयागराज से लखनऊ जाने वाली गंगा-गोमती एक्सप्रेस गुजरी थी। शहर के उत्तरी हिस्से में बना यह रेल कम सड़क पुल शहर के सबसे पुराने नैनी ब्रिज 1865 और जिले में टोंस नदी पर बने सबसे पुराने पुल के बाद तीसरा सबसे पुराना पुल है। वर्ष 1998 में भारी यातायात के लिए इसे निषिद्ध कर रेल व रोड यातायात के लिए बंद कर दिया गया। शुरू में दो पहिया वाहन और पैदल आवागमन की अनुमति थी।

मोतीलाल नेहरू सेतु था अधिकारिक नाम, कम लोग ही जानते हैं

शहर को फैजाबाद और लखनऊ रेल मार्ग से लिंक करने वाले इस पुल का  आजादी के बाद अधिकारिक नामकरण मोतीलाल नेहरू सेतु किया गया था। लेकिन स्टील के बने इस पुल को लोग लार्ड कर्जन पुल के नाम से ही जानते थे और आज भी इसी नाम से जानते हैं। बहुत कम ही लोग होंगे जिनको इस पुल का अधिकारिक नाम मालूम होगा।

पुल को गिराने की रेलवे की योजना का हुआ था जमकर विरोध

रेल और सड़क यातायात के लिए पुल को कमजोर और असुरक्षित बताते हुए रेलवे ने इसको गिराने की योजना तैयार की थी लेकिन इस पुल को ऐतिहासिक धरोहर बताते हुए शहर के लोग विरोध में आगे आ गए और पुल को संरक्षित करने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। 2017 में दीपावली के मौके पर शहर के लोगों ने पुल को बचाने के उद्देश्य से दीया और मोमबत्ती भी जलाया।

टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित करने की बनाई गई है योजना

साल 2020 में कर्जन पुल 115 साल का हो गया, दो साल पहले 2018 में रेलवे ने इसके संरक्षण के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की मांग पर उसेे सौंपने का निर्णय लिया था। उत्तर रेलवे के पाथ-वे अभियंता विजय मिश्रा बताते हैं कि प्रदेश सरकार ने पुल को टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया था। खिलौना टे्रन चलाने के साथ स्काई वॉक बनाने की भी योजना थी। ब्रिज पर खूबसूरत स्पॉट के साथ ही समीप कृतिम झील बनाकर पैडल बोट चलाने की सुविधा देने की भी बात हो रही थी लेकिन अभी तक पुल का स्थानांतरण नहीं हो सका है।

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