Shilp Mela: राष्ट्रीय शिल्प मेले में सुर लय और ताल से रोज सज रही सांस्कृतिक संध्या

गुजरात और पंजाब से आए कलाकारों की रंगारंग प्रस्तुतियों के बीच प्रयागराज की लोक गायिका प्रियंका चौहान और उनके साथी कलाकारों ने सुगम संगीत से अलग ही छाप छोड़ी। राष्ट्रीय शिल्प मेले में वैसे तो दोपहर बाद से ही भीड़ उमड़ने लगती है।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Wed, 08 Dec 2021 08:30 AM (IST) Updated:Wed, 08 Dec 2021 08:30 AM (IST)
Shilp Mela: राष्ट्रीय शिल्प मेले में सुर लय और ताल से रोज सज रही सांस्कृतिक संध्या
प्रयागराज के शिल्प मेला में गुजरात और पंजाब के कलाकारों ने दी रंगारंग प्रस्तुति

प्रयागराज, जेएनएन। उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (एनसीजेडसीसी) में लगे राष्ट्रीय शिल्प मेले का माहौल ही मंगलवार शाम डांडिया, ढेढ़िया, गरबा और भांगड़ा के साथ नाच उठा। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला का पूर्व निर्धारण कुछ ऐसा था जिसमें सैकड़ों लोगों को पंडाल में डटे रहने को मजबूर होना पड़ा।

दोपहर से ही उमड़ने लगते हैं मेले में शहरी

गुजरात और पंजाब से आए कलाकारों की रंगारंग प्रस्तुतियों के बीच प्रयागराज की लोक गायिका प्रियंका चौहान और उनके साथी कलाकारों ने सुगम संगीत से अलग ही छाप छोड़ी। राष्ट्रीय शिल्प मेले में वैसे तो दोपहर बाद से ही भीड़ उमड़ने लगती है। हरियाणा के सुदूर अंचल से आए कलाकारों ने बीन की मनोहारी धुन से लोगों को और भी आकर्षित किया। विभिन्न आंचलिक व्यंजन भी मेले में गए लोगों को अपनी ओर लुभा रहे हैं। शाम को मंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारंभ शहर उत्तरी क्षेत्र के विधायक हर्षवर्धन बाजपेई ने किया। केंद्र के निदेशक ने उनका स्वागत किया। मुख्य अतिथि ने सामाजिक रीति-रिवाजों पर लोकगीतों की बानगी और गंगा-जमुनी तहजीब से सराबोर लोकनृत्यों के चलन पर भी प्रकाश डाला। सुरों से सजा मंचशिल्प हाट का मुक्ताकाशी मंच शाम ढलते ही सुर, लय और ताल से सराबोर हो उठा।

विवाह संस्कार के गीतों ने भी लोगों का मन मोहा

जौनपुर से आए भोजपुरी गायक अवनीश तिवारी ने अपने दल के साथ जोरदार प्रस्तुति से सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत की। उनके दल द्वारा गाए गए विवाह संस्कार गीत ‘केतना बताई सुख ससुरे कगोरि रे’ व ‘पिया तोहरे दरसवा निजोर लागी रे’ को दर्शकों ने खूब पसंद किया। दूसरी प्रस्तुति प्रयागराज की सुपरिचित गायिका सुश्री प्रियंका सिंह चौहान के द्वारा गणेश वंदना ‘घर में पधारो गजानन जी’ और गोस्वामी तुलसीदास रचित भजन ‘राम जपो, राम जपो बांवरे’ से हुई। इसके बाद लोकगीत लागे सेंहुरा से मतिया पियार बिरना, पूर्वी झूमर झनझन झनकेला बिछुवा झंझरवा तथा लोकगीत पनिया के जहाज से पलटनिया बनि अइहा पिया, सुनाकर माहौल में सुगम संगीत का रस घोला। लोकनृत्यों की श्रृंखला में हिमांचल प्रदेश से आए कलाकारों में राजकुमार और उनके दल ने किन्नौर के नाटी नृत्यों की प्रस्तुति की। भगवान योगेश्वर के बाल रूप को समर्पित डांडिया रास की प्रस्तुति गुजरात से आये नितिन दवे और उनके साथियों ने दी। समृद्ध पंजाब की माटी की महक को भांगड़ा और जिंदुआ नृत्य के रूप में कलाकारों ने प्रस्तुत किया। झारखंड से आए कलाकारों ने खसवा छऊ नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसे दर्शकों खूब सराहा। इसके बाद प्रयागराज की वरिष्ठ सुपरिचित नृत्यांगना कृति श्रीवास्तव व उनके दल ने पूर्वी लोकनृत्य तथा दोआबा क्षेत्र के पारंपरिक ढेढ़िया नृत्य की प्रस्तुति दी गयी।

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