औषधीय पौधा अकरकरा की खेती लाभदायक, 4 हजार लागत में किसानों को 50 हजार की आय संभव

अकरकरा का वानस्पतिक नाम एनासाइक्लस पाइरेथ्रम है यह एस्टरेशिया कुल का पौधा है। उत्पत्ति मूल रूप से अरब में हुई। आयुर्वेद में अकरकरा का उपयोग करीब चार सौ वर्षों से हो रहा है। औषधीय गुण अनगिनत हैं। इसके चूर्ण से आयुर्वेदिक होम्योपैथिक व यूनानी दवाएं बनाई जाती हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Mon, 13 Sep 2021 03:43 PM (IST) Updated:Mon, 13 Sep 2021 03:47 PM (IST)
औषधीय पौधा अकरकरा की खेती लाभदायक, 4 हजार लागत में किसानों को 50 हजार की आय संभव
प्रयागराज के किसान औषधीय पौधे अकरकरा की खेती शुरू करके अपनी आय बढ़ा रहे हैं।

प्रयागराज, [अतुल यादव]। औषधीय पौधा अकरकरा की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ गया है। इसका कारण भी है। एक बीघे में इसकी खेती करने में महज चार हजार रुपये की लागत आती है। छह माह बाद किसानों को 50 हजार रुपये आय भी हो जाती है। ऐसे में यह खेती किसानों को भा रही है। प्रयागराज के यमुनापार में करछना के कबरा और आसपास के कई गांवों में अकरकरा की खेती समृद्धि की राह बन रही है। इसकी शुरुआत हाई कोर्ट में सब रजिस्ट्रार आरपी पांडेय ने मां के निधन के बाद की। परंपरागत खेती को अलविदा कह अकरकरा की खेती में जुटे। वे 15 बीघे में इसकी खेती कर रहे हैं। उनकी देखादेखी कुछ और किसानों ने इस दिशा में पहल की।

आरपी पांडेय को ऐसे मिली खेती की जानकारी

करीब डेढ़ साल पहले केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीआइएमएपी), लखनऊ की वर्चुअल मीटिंग में सब रजिस्ट्रार को औषधीय पौधों की खेती के बारे में जानकारी मिली थी। कृषि विज्ञानी शैलेंद्र डांगी व भूपेंद्र सिंह का परामर्श तथा सहयोग लेकर उन्होंने अकरकरा की खेती शुरू की। कहते हैैं मां परंपरागत खेती पर जोर देती थीं। वह जब गुजर गईं तो लगा कि प्रयोग कर लेना चाहिए। उन्होंने आसपास के गांवों के किसानों को भी प्रेरित किया। उपज फायदे की लगी तो इस साल यमुनापार में करीब सौ बीघे में इसकी खेती की गई है।

इसकी खेती के लिए अक्टूबर-नवंबर मुफीद मौसम

अकरकरा की खेती अक्टूबर-नवंबर में होती है। आरपी पांडेय बताते हैैं कि उन्होंने एक बीघे के लिए तीन किलो बीज लिया था। बीज कई वैराइटी के हैैं जिनकी कीमत 500-1500 रुपये प्रति किलोग्राम तक है। एक बीघे में तीन ट्राली गोबर की खाद डलवाई थी। बोआई से पहले बीजों को गोमूत्र से 12 घंटे उपचारित कराया, इससे रोग नहीं लगा। इस औषधीय पौधे से जुड़ी खास बात यह है कि इसके लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। रबी के सीजन यानी सर्दी के मौसम में फसल हो जाती है। खाद का इस्तेमाल बहुत कम होता है। अकरकरा की जड़ पांच माह में खोदाई लायक हो जाती है। एक बीघे में तीन से चार कुंतल तक जड़ और करीब 20 किलो बीज प्राप्त होता है। बाजार में जड़ों की कीमत लगभग 20 हजार रुपये प्रति क्विंटल है।

अकरकरा में औषधीय गुण व रोगों का उपचार

अकरकरा का वानस्पतिक नाम एनासाइक्लस पाइरेथ्रम है, यह एस्टरेशिया कुल का पौधा है। उत्पत्ति मूल रूप से अरब में हुई। आयुर्वेद में अकरकरा का उपयोग करीब चार सौ वर्षों से हो रहा है। औषधीय गुण अनगिनत हैं। इसके चूर्ण से आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक व यूनानी दवाएं बनाई जाती हैं। लकवा, नपुंसकता, मिर्गी, गूंगापन, वात पित्त कफ नाशक माना जाता है इसे। रोग प्रतिरोधक क्षमता भी यह बढ़ाता है। ज्वर नाशक, मासिक धर्म, साइटिका, आर्थराइटिस, पायरिया, दांत दर्द, मसूड़ों का रोग, शरीर की सूजन कम करने, शक्ति वर्धक, सिर दर्द, सर्दी जुकाम, चर्म रोग, जीवाणुरोधी, पाचन, दमा संबंधी रोगों से निजात दिलाने में भी इससे बनी दवाओं का इस्तेमाल होता है।

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