Environment Day 2020 : ढूँढ़ते रह जाओगे, कल 'प्राणवायु' भी नहीं मिलेगी Prayagraj News

Environment Day 2020 विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की सार्थकता तभी है जब हम स्वयं पौधा लगायें और वृक्ष बनने तक उस पौधे की देखरेख करते रहें।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 10:21 PM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 10:21 PM (IST)
Environment Day 2020 : ढूँढ़ते रह जाओगे, कल 'प्राणवायु' भी नहीं मिलेगी Prayagraj News
Environment Day 2020 : ढूँढ़ते रह जाओगे, कल 'प्राणवायु' भी नहीं मिलेगी Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। आज जिस स्तर पर हमारा पर्यावरण दूषित होता जा रहा है, उसका एकमात्र कारण है, प्रकृति का दोहन। यही कारण है कि आज प्रकृति का प्रकोप समस्त स्थावर-जंगम के अस्तित्व पर भारी पड़ता दिख रहा है। अभी हाल ही में और वर्तमान में भी जिस रूप में प्रकृति का रौद्र रूप दिखा है, वह आनेवाले 'कल' के लिए कहीं से भी निरापद (सुरक्षित) नहीं दिख रहा और हमारे प्रकृतिविज्ञानी भी 'किंकर्त्तव्यविमूढ़' दिख रहे हैं।

    आज (5 जून) विश्व पर्यावरण-दिवस के अवसर पर बौद्धिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक तथा सामाजिक मंच 'सर्जनपीठ' की ओर से आयोजित 'वाट्सएप राष्ट्रीय पर्यावरण-दिवस समारोह' में देश के अनेक विषय-विशेषज्ञों ने इसी दिशा में अपने विचार व्यक्त किये थे।


बिना वृक्ष के सृष्टि की कल्पना नहीं की जा सकती

साहित्यकार-विचारक डॉ० संगीता बलवन्त (ग़ाज़ीपुर) का मत है, "विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की सार्थकता तभी है जब हम स्वयं पौधा लगायें और वृक्ष बनने तक उस पौधे की देखरेख करते रहें। बिना वृक्ष के सृष्टि की कल्पना की ही नहीं जा सकती है। पेड़-पौधों की उपयोगिता के कारण ही उन्हें हम 'देव' मानकर उनकी पूजा करते आ रहे हैं ।"

कोरोना वायरस महामारी ने वैश्विक पर्यावरण को पूरी तरह अपनी चपेट में लिया 

 शिक्षाविद् और समीक्षक डॉ० घनश्याम भारती (सागर) की मान्यता है, "वैश्विक महामारी कोरोना ने आज सम्पूर्ण विश्व में तबाही मचा दी है। इस महामारी ने वैश्विक पर्यावरण को पूरी तरह अपनी चपेट में ले लिया है। लाखों की संख्या में कोविड विषाणु से संक्रमित हो रहे हैं। कोरोना संक्रमण के प्रति जागरूकता का अभाव इसका कारण रहा है, अतः मेरी दृष्टि में कोविड तथा अन्य जीवाणुओं-विषाणुओं को पाठ्यक्रम में अनिवार्यतः रखा जाना चाहिए, ताकि बच्चे स्वयं जागरूक रहकर अन्य सभी को सतर्क कर सकें।''

 आज मनुष्य 'मनुष्य' से कटता जा रहा है

समारोह-संयोजक भाषाविद्- समीक्षक तथा पर्यावरण-विषयक २० पुस्तकों के लेखक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय (प्रयागराज) ने कहा, " मानव-समाज में परिव्याप्त अति भौतिकवादिता का ही परिणाम है कि आज मनुष्य 'मनुष्य' से कटता जा रहा है। भावना-संवेदना का इस स्तर पर स्खलन हो चुका है कि 'वैचारिक प्रदूषण' पग-पग पर दिख रहा है, जिसका परिणाम प्रत्यक्ष है :-- रक्त-सम्बन्ध अविश्वास के धरातल पर आ चुके हैं; क्षमाशीलता, दया, करुणा, ममता, सदाशयता, सौहार्द इत्यादिक उदात्त गुण तिरोहित होते जा रहे हैं। वृद्ध और वयोवृद्ध माँ-बाप वृद्धाश्रम-जैसे शरणालयों में जाने के लिए विवश हैं। इसका मूल कारण विचारों का सन्दूषण है, जो 'संवादहीनता' की ओर ले जाता है और सम्पूर्ण घर-परिवार के वातावरण को विषैला बना देता है, एतदर्थ प्रत्येक मनुष्य का परम दायित्व है कि प्रासंगिक विचार और व्यवहार करते समय उसकी शुचिता को भंग न होने दे।"

स्‍वास्‍थ्‍य के नाम पर व्‍यापारी जनता को भ्रमित कर प्‍लास्टिक के बोतल का हानिकारक पानी बेच रहे

    साहित्यकार और जलपर्यावरण-विशेषज्ञ डॉ० प्रदीप चित्रांशी (हैदराबाद) ने बताया, "पान, परचून की दुकानों, रेस्टोरेण्ट, बसअड्डा या फिर रेलवे स्टेशन हो, सभी जगह पर व्यापारियों के द्वारा जनता को भ्रमित कर उन्हें प्लास्टिक के पानी की बोतल को स्वास्थ्य के नाम पर खरीदने पर विवश किया जा रहा है। 'बिस्फेनाल ए' नामक हानिकारक रसायन, जो प्लास्टिक की बोतल बनाने में इस्तेमाल किया जाता है, शरीर के लिए कितना हानिकारक है? यह रसायन पानी में घुलकर, हानिकारक जीवाणु की संख्या बढ़ाता है, जिससे 'अल्माइजर' जैसे रोग का भी ख़तरा बढ़ जाता है। 

  पेड़ों से ही हमारा जीवन चलता है

   वरिष्ठ सम्पादक डॉ० अरुण कुमार पाण्डेय (दिल्ली) ने बताया," पर्यावरण दिवस मनाने का प्रचलन तब शुरू हुआ था जब मानव को साँस की किल्लत महसूस हुई थी और जैव- पारिस्थितिकी के बदलाव में उसे अपने अस्तित्व का संकट दिखने लगा था, जबकि वनस्पति- उपासना भारतीय संस्कृति का सनातन अभ्यास है, जो कारणसहित है। पेड़ों से हमें आक्सीजन, भोजन तथा जल मिलते हैं और इन्हीं से हमारा जीवन चलता है।

 हमें पर्यावरण की सुरक्षा और शुद्धता के प्रति जागरूक रहना होगा

   साहित्यकार आरती जायसवाल (रायबरेली) के अनुसार "अबाध गति में बढ़ते उद्योगों और मनुष्य-द्वारा प्रकृति के दोहन की प्रवृत्ति ने प्राणि-सभ्यता पर संकट का बादल ला खड़ा किया है। मनुष्य शुद्ध प्राणवायु, जल, अन्न तथा शुद्ध वातावरण के लिए भी तरस रहा है, इसलिए हमें पर्यावरण की सुरक्षा और शुद्धता के प्रति जागरूक रहना होगा।

भारतीय धर्मों में प्रकृति संरक्षण के बीज तत्त्व विद्यमान हैं 

    असिस्टेण्ट प्रोफ़ेसर डॉ० अरविन्द कुमार उपाध्याय (भदोही) के अनुसार, "पर्यावरण के बढ़ते संकट और उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण आज हमारे पर्यावरण की दुर्दशा हो रही है। सनातन धर्म और वैदिक ग्रंथों से लेकर अन्य भारतीय धर्मों में प्रकृति संरक्षण के बीज तत्त्व विद्यमान हैं; परन्तु मनुष्य उसका व्यावहारिक पक्ष समझना ही नहीं चाहता।''

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