सिर्फ शिल्प-कला व संस्कृति का संगम ही नहीं, भाषाई साझेदारी का भी अद्भुत प्लेटफार्म है शिल्प मेला Prayagraj News

10 दिसंबर तक ही शहर के एनसीजेडसीसी में शिल्‍प मेला लगा रहेगा। इसमें अपने उत्‍पादों के साथ विभिन्न राज्यों से आए व्‍यापारियों व लोक कलाकार अपनी छाप छोड़ रहे हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 08 Dec 2019 05:11 PM (IST) Updated:Sun, 08 Dec 2019 05:11 PM (IST)
सिर्फ शिल्प-कला व संस्कृति का संगम ही नहीं, भाषाई साझेदारी का भी अद्भुत प्लेटफार्म है शिल्प मेला Prayagraj News
सिर्फ शिल्प-कला व संस्कृति का संगम ही नहीं, भाषाई साझेदारी का भी अद्भुत प्लेटफार्म है शिल्प मेला Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (एनसीजेडसीसी) में लगा राष्ट्रीय शिल्प मेला केवल शिल्प कला और संस्कृति के संगम का नहीं बल्कि विभिन्न प्रांतों की भाषाई साझेदारी का भी अद्भुत प्लेटफार्म भी है। लोक कलाकार के लिए यह आयोजन किसी बड़े उत्सव से कम नहीं है। मुक्ताकाशी मंच पर सांस्कृतिक कलाओं की साझेदारी तो स्टाल पर उत्पादों की खरीद के दौरान कलाकारों और शिल्पियों को कभी अपने राज्य की भाषा तो कभी हिंदी के टूटे-फूटे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए हंसते- खिलखिलाते देखा जा सकता है।

देश भर के कलाकारों और शिल्प कारीगरों व व्यापारियों का समागम

एनसीजेडसीसी इलाहाबाद वैसे तो सात राज्यों का प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र है लेकिन यहां पहली दिसंबर से लगे राष्ट्रीय शिल्प मेले में 15 से अधिक राज्य हिस्सेदारी कर रहे हैं। उप्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, बिहार, राजस्थान, मणिपुर, उड़ीसा, असम, गुजरात, छत्तीसगढ़, मिजोरम और मुंबई (महाराष्ट्र) के अलावा कश्मीर, तमिलनाडू से भी कलाकारों और शिल्प कारीगरों व व्यापारियों का आगमन हुआ है। इनमें अधिकांश शिल्पी 10 साल से अधिक समय से प्रयागराज आ रहे हैं। इनमें कई राज्यों के लोगों का पहली बार तो कुछ का दोबारा या तीसरी बार मिलन हुआ। ऐसे में उत्साहपूर्वक एक दूसरे से बात करने का मौका हर किसी के लिए सुनहरे पल लेकर आया है।

भाषाओं का आदान-प्रदान भी नजर आ रहा

मेले में पटियाला (पंजाब) से जूती और चप्पल बेचने आए शिल्प व्यापारियों की दुकान पर असम से आईं लोक कलाकार पहुंच गईं। फिर क्या था, वहीं भाषाई आदान प्रदान शुरू हो गया। पहले तो असम की कलाकारों ने अपनी भाषा में जूती के दाम पूछे। इस पर व्यापारी हंसते हुए बोले कि वे असमी नहीं जानते, पटियाला वाले हैं। हंसी-ठहाकों का माहौल बना फिर दोनों के बीच ङ्क्षहदी में भी बातें शुरू हुईं।

कुछ यही नजारा पश्चिमी छोर पर स्टाल लगाए कोलकाता के बेडशीट व्यापारी और राजस्थान के जयपुर से आए कलाकारों के बीच दिखा। स्टाल पर पहुंचे ग्राहकों ने राजस्थान की क्षेत्रीय भाषा में बेडशीट के दाम पूछे तो व्यापारी ने पहले उन्हीं की भाषा मे जवाब दिया फिर ङ्क्षहदी जुबान में भी साझेदारी हुई। 

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