COVID-19 ने छीन ली प्रतापगढ़ के इस परिवार की खुशियां, अब बेटी-बेटे के भविष्य को लेकर चिंतित है महिला
अजय के बुजुर्ग पिता रामनरेश विश्वकर्मा ने जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली। सब कुछ ठीक चलने लगा था। एक माह पूर्व कोरोना की चपेट में आकर रामनरेश की मौत हो गई। कुछ ही दिन बाद उनकी पत्नी संपति देवी का भी निधन हो गया। परिवार अनाथ हो गया है।
प्रयागराज, जेएनएन। कोरोना वायरस संक्रमण का सैलाब न जाने कितने घरों को प्रभावित किया। अनेकों लोगों की जिंदगी दोराहे पर आ गई हैं। परिवार के जिस शख्स की कोरोना से जान गई, उसकी टीस लोगों के मन में है। ऐसा ही दर्द प्रतापगढ़ जिले के कुंडा तहसील की रहने वाली तारा देवी को भी है। पांच साल पहले पति की मौत का गम अभी वे भूल भी न पाई थी कि कोरोना से एक माह पहले सास व ससुर का भी निधन हो गया। अब तीन बेटियों व एक बेटे के पालन-पोषण की जिम्मेदारी आ गई है। न शासन, प्रशासन से कोई मदद मिली और न ही किसी रिश्तेदार ही आगे आए।
बुजुर्ग ससुर के कंधे पर था परिवार का बोझ
कुंडा तहसील क्षेत्र के ताजपुर छोटी सरियावां गांव की तारा देवी के पति अजय कुमार विश्वकर्मा की पांच वर्ष पूर्व बीमारी से मौत हो गई थी। अजय के बुजुर्ग पिता रामनरेश विश्वकर्मा ने जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली। सब कुछ ठीक चलने लगा था, लेकिन भाग्य को कुछ और मंजूर था। एक माह पूर्व कोरोना की चपेट में आकर रामनरेश की मौत हो गई। कुछ ही दिन बाद उनकी पत्नी संपति देवी का भी निधन हो गया। इससे परिवार बेसहारा हो गया।
चार बेटी व एक बेटे की परवरिश कैसे होगी
अजय के चार बेटी व एक बेटा है। अब इन बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी अजय की पत्नी तारा देवी पर आ गई है। उनके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। सबसे बड़ी बेटी सविता विश्वकर्मा 17 वर्ष की है। दैनिक जागरण से वह अपना दर्द बयां करते हुए कहती है, बीए प्रथम वर्ष की पढ़ाई के लिए उसके बाबा ने नाम लिखाया था, लेकिन उनकी मौत के बाद अब उसकी पढाई नहीं हो पाएगी, क्योंकि पैसा उसके पास नहीं है। उसकी छोटी बहन अनामिका (13) कक्षा आठ की छात्रा है। वह बाबा की मौत के बाद से गुमसुम है। भाई आयुष विश्वकर्मा (12) कक्षा सात का छात्र है, जो अभी परिवार की जिम्मेदारी उठाने के नायक नहीं है। सबसे छोटी बहन प्राची (10) कक्षा पांच की छात्रा है।
अपनों ने साथ छोड़ा तो अब शासन, प्रशासन से मदद की उम्मीद
तारा देवी ने बताया कि ससुर व सास की मौत कोरोना से हुई। उनके जाने के बाद वह इस दुनिया में बेसहारा महसूस कर रही हैं। बच्चों के शिक्षा व खर्च चलाने के लिए कोई सहारा नहीं रह गया है। उन्हें शासन से कोई मदद नहीं मिली। रिश्तेदारों और परिचितों ने भी साथ छोड़ दिया है, किसके पास जाऊं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है।