धर्मविहीन राजनीति से बढ़ा भ्रष्टाचार : देवकीनंदन
हर युग में सत्ता में बैठने वाले को सनातन धर्म से मार्गदर्शन मिलता था।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज : हर युग में सत्ता में बैठने वाले को सनातन धर्म से मार्गदर्शन मिलता था। राजदरबार में राजगुरु का प्रमुख स्थान होता था। राजा कोई भी कदम उठाने से पहले राजगुरु की राय अवश्य लेते थे। इसी कारण हर वर्ग के लोग खुशहाल थे। राजनीति धर्मविहीन होने के बाद से भ्रष्टाचार बढ़ने लगा। विभिन्न समस्याओं ने भारत को जकड़ लिया। यह बातें प्रख्यात कथावाचक धर्मरत्न देवकीनंदन ठाकुर ने मंगलवार को यहां विश्व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन आडिटोरियम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में कहीं।
उन्होंने कहा कि धार्मिक व्यक्ति कभी किसी का अहित नहीं कर सकता। वह स्वयं की बजाय दूसरों का हित करेगा। धर्म मनुष्य का मानसिक, अध्यात्मिक व शारीरिक कल्याण का माध्यम है। लक्ष्मण रेखा भी है, जो मनुष्य को गलत कार्य करने से रोकती है। हर सनातनी को धर्म के प्रति कट्टर होने की सलाह देते हुए देवकीनंदन ठाकुर ने कहा कि 'धर्म व राष्ट्र सर्वोपरि' का भाव रखकर काम करना चाहिए। जीवन में सिर्फ भगवान के आश्रित रहो, सब आनंद में आ जाएगा। अच्छे व बुरे लोगों की संगत कर्मों के आधार पर मिलती है। जब कष्ट मिले तो समझना चाहिए कि मैं अपने कर्मों का फल भोग रहा हूं। क्रीम, पाउडर लगाने, महंगे कपड़े पहनने व लंबी गाड़ियों में चलने से कोई सुखी नहीं होता। जब तक अंत:करण शुद्ध, शांत व आनंद में न हो तब तक सब बेकार है। कथा वृतांत सुनाते हुए बोले, भागवत वही अमर कथा है जो भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी। कथा सुनना सबके भाग्य में नहीं होता। जब माता पार्वती ने कथा सुनाने की प्रार्थना की तो बाबा भोलेनाथ ने कहा कि पहले देखकर आओ कि कैलाश पर तुम्हारे-मेरे अलावा कोई और तो नहीं है। माता पूरा कैलाश देख आई पर शुक के अपरिपक्व अंडों पर उनकी नजर नहीं पड़ी। कथा के मध्य में पार्वती जी को निद्रा आ गई और शुक ने पूरी सुन ली। जीवन में श्याम नहीं तो आराम नहीं। भगवान को अपना परिवार मानकर उनकी लीलाओं में रमना चाहिए। गोविद के गीत गाए बिना शांति नहीं मिलेगी। धर्म, संत, मां-बाप और गुरु की सेवा करनी चाहिए। जितना भजन करोगे उतनी ही शांति मिलेगी। कथा में वरिष्ठ समाजसेवी नागेंद्र सिंह सम्मानित किए गए।