Corona Curfew Effect in Pratapgarh: मुंबई में कारखाने की नौकरी छूटी तो रवि बन गए चना ठेले वाले
Corona Curfew Effect in Pratapgarh एक ठेले की व्यवस्था करके चना बेचना शुरू किया। ठेला लगाकर अपना परिवार पालने लगा। उसने बताया कि वहां से कम ही सही लेकिन अपने घर-गांव में सुकून से दो जून की रोटी मिल जा रही है। कुछ न कुछ कमाई रोज हो रही है।
प्रयागराज, जेएएन। जीने-खाने के सैकड़ों तरीके होते हैं। बस व्यक्ति को हिम्मत नहीं हारना चाहिए। जो लोग हालात का रोना रोते हैं, वह हमेशा परेशान रहते हैं। जो मुश्किलों से टकराकर रास्ता बनाते हैं, उनको दाल-रोटी के लिए गिड़गिड़ाना नहीं पड़ता। संघर्ष की ऐसी ही मिसाल पेश कर रहा है परियावां बाजार का रहने वाला रवि साहू।
यह युवा मुंबई में कारखाना बंद हो जाने पर चने बेचकर अपनी जरूरतें पूरी कर रहा है। परिवार भी पाल रहा है।
माता-पिता के देहांत के बाद गए थे मुंबई
कुछ वर्ष पहले जब इसके माता-पिता का देहांत हो गया तो गांव में कुछ करने के लिए नहीं था। पूंजी भी नहीं थी। ऐसे में काम-धंधे की तलाश में मुंबई चला गया। वहां पर कपड़े की फैक्ट्री में काम करने लगा, लेकिन पिछले वर्ष कोरोना वायरस महामारी के चलते पूरा देश लॉकडाउन में चला गया। इसका असर मुंबई में जोरों पर दिखा।
कोरोना की लहर में बंद हुआ कारखाना
किसी तरह पिछला वर्ष काट लिया, लेकिन जब इधर भी कोरोना के चलते फिर से सरकार ने मुंबई को लाकडाउन कर दिया तो अब मुंबई जैसे महंगे शहर में बैठकर खाना मुश्किल हो गया। कोई पूंजी बची नहीं थी। ऐसे में रवि वापस अपने गांव परियावां आ गया।
कमाई भले कम हो लेकिन अपने घर में है सुकून
बिना देर किए उसने एक ठेले की व्यवस्था करके चना बेचना शुरू कर दिया। ठेला लगाकर अपना परिवार पालने लगा। उसने बताया कि वहां से कम ही सही, लेकिन अपने घर-गांव में सुकून से दो जून की रोटी मिल जा रही है। कुछ न कुछ कमाई रोज हो रही है। अगर यहां अच्छा धंधा जम गया तो दोबारा मायानगरी की ओर कदम नहीं बढ़ाएगा। हमेशा के लिए मुंह मोड़ लेगा।